गुप्त वंश - चंद्रगुप्त प्रथम - समुद्र गुप्त - चंद्रगुप्त द्वितीय गुप्त वंश का विघटन chandragupt pratham - samudragupt - chandragupt dvitiy prachin Bharat PDF Download
गुप्त वंश / गुप्त काल
राजनीतिक इतिहास
➤गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की थी जो संभवतया वैश्य जाति से संबंधित थे ।
➤वे मूलतः मगध ( बिहार ) तथा प्रयाग ( पूर्वी उ.प्र . ) के वासी थे ।
➤ उसके पुत्र घटोत्कच जिसने महाराजा की उपाधि धारण की थी , एक छोटा - मोटा शासक प्रतीत होता है , किन्तु उसके विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है ।
चन्द्रगुप्त प्रथम🔥
➤गुप्त वंश की वास्तविक नींव चन्द्रगुप्त प्रथम के शासनकाल में ( सन् 319 से 334 ) पड़ी ।
➤ सन् 319 में उसके राज्यारोहरण को गुप्त साम्राज्य का प्रारम्भ माना जाता है ।
➤समस्त अभिलेखों में इसी का उल्लेख मिलता है तथा उनके सामंतो में भी उसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी ।
➤उसका विवाह लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमारदेवी से हुआ था ।
➤ चन्द्रगुप्त द्वारा जारी की गई स्वर्ण मुद्राओं की श्रंखला में इस घटना को वर्णित किया गया है ।
➤प्रतीत होता है कि इस वैवाहिक सम्बन्ध ने गुप्त सम्राट को वैधता , सम्मान तथा शक्ति प्रदान की ।
➤चन्द्रगुप्त का साम्राज्य मगध ( बिहार ) , साकेत ( आधुनिक अयोध्या ) तथा प्रयाग ( वर्तमान इलाहाबाद ) तक विस्तत था ।
➤उसकी राजधानी पाटलिपुत्र ( वर्तमान पटना ) थी
समुद्रगुप्त🔥
➤समुद्रगुप्त ( सन् 335-375 ) चन्द्रगुप्त प्रथम का उतराधिकारी बना ।
➤समुद्रगुप्त ने युद्ध तथा विजय की नीति का अनुसरण किया एवं अपने साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार किया ।
➤उसकी उपलब्धियों का सम्पूर्ण विवरण उसके राजदरबारी कवि हरिसेन द्वारा संस्क त में लिखे गए वर्णन में लिपिबद्ध किया गया है ।
➤यह आलेख इलाहाबाद के निकट एक स्तंभ पर वर्णित है ।
➤यह समुद्रगुप्त द्वारा जीते गए वंशों तथा क्षेत्रों के नाम को बतलाती है ।
➤उसने हर जीते हुए क्षेत्र के लिए भिन्न नीतियाँ अपनाई थीं ।
➤गंगा यमुना दोआब में उसने दूसरे राज्यों को बलपूर्वक सम्मिलित करने की नीति का अनुसरण किया ।
➤ उसने नौ नागा शासकों को पराजित कर उनके राज्य को अपने साम्राज्य में मिलाया ।
➤तत्पश्चात् वह मध्य भारत के वन प्रदेशों की ओर बढ़ा जिनका उल्लेख ' अतवीराज्य ' के रूप में मिलता है ।
➤इन कबायली क्षेत्रों के शासक पराजित हुए तथा दासत्व को बाध्य हुए ।
➤इस क्षेत्र का राजनीतिक द ष्टि से भी व्यापक महत्त्व हैं क्योंकि इससे दक्षिण भारत को मार्ग जाता था ।
➤ इसने समुद्रगुप्त को दक्षिण की ओर कूच करने में सक्षम किया तथा पूर्वीतट को जीतते हुए , बारह शासकों को पराजित करते हुए वह सुदूर काँची ( चेन्नई के निकट ) तक पहुँच गया ।
➤समुद्रगुप्त ने राज्यों को बलपूर्वक अपने साम्राज्य में सम्मिलित करने के स्थान पर उदारता का परिचय दिया तथा उन शासकों को उनके राज्य वापस लौटा दिए ।
➤दक्षिण भारत के लिए राजनीतिक समझौते की नीति इसलिए अपनाई गई क्योंकि उसे ज्ञात था कि एक बार उत्तर भारत में अपने क्षेत्र में लौटने के पश्चात इन राज्यों पर नियन्त्रण स्थापित रखना दुष्कर होगा ।
➤ अतः उसके लिए इतना पर्याप्त था कि ये शासक उसकी सत्ता को स्वीकारें तथा उसे कर तथा उपहारों का भुगतान करें ।
➤इलाहाबाद अभिलेख के अनुसार पाँच पड़ोसी सीमावर्ती प्रदेश तथा पंजाब एवं पश्चिम भारत के नौ गणतन्त्र समुद्रगुप्त की विजयों से भयभीत हो गए थे ।
➤उन्होंने बिना युद्ध किए ही समुद्रगुप्त को धन तथा करों का भुगतान करना तथा एवं उसके आदेशों का पालन करना स्वीकार कर दिया था ।
➤अभिलेख से यह भी ज्ञात है कि दक्षिण - पूर्वी एशिया के भी कई शासकों से समुद्रगुप्त को धनादि प्राप्त होता था ।
➤मुख्य रूप से यह माना जाता है कि हालांकि उसका साम्राज्य एक विस्त त भू - खण्ड तक फैला हुआ था , किन्तु समुद्रगुप्त का प्रत्यक्ष प्रशासनिक नियन्त्रण मुख्य गंगा घाटी में था ।
➤ वह अपनी विजय का उत्सव अश्वबलि देकर मनाता था अश्वमेध एवं इस अवसर पर अश्वमेध प्रकार के सिक्के ( बलि को वर्णित करते सिक्के ) जारी करता था ।
➤ समुद्रगुप्त केवल विजेता ही नहीं , बल्कि एक कवि , एक संगीतकार तथा शिक्षा का महान संरक्षक था ।
➤संगीत के प्रति उसका प्रेम उसकी उन मुद्राओं से मुखरित होता है , जिसमें उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है ।
चंद्रगुप्त द्वितीय🔥
➤समुद्रगुप्त के पश्चात् उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय उसका उत्तराधिकारी बना ।
➤उसे चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है ।
➤उसने मात्र अपने पिता के साम्राज्य का विस्तार ही नहीं किया , बल्कि इस युग के अन्य वशों के साथ वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी स्थिति को भी सुढृ किया ।
➤उसने नागा राजकुमारी कुवेरनाग से विवाह किया तथा उसे प्रभावती नामक पुत्री भी थी ।
➤ प्रभावती का विवाह दक्षिण में शासन कर रहे वाकाटक वंश के शासक रुद्रसेन द्वितीय से हुआ था ।
➤अपने पति की म त्यु के उपरान्त कलावती ने अपने पिता की सहायता से अपने अवयस्क पुत्र के संरक्षक के रूप में शासन किया था ।
➤ वाकाटक क्षेत्र पर नियंत्रण चंद्रगुप्त द्वितीय के लिए वरदान सिद्ध हुआ , क्योंकि अब वह अपने अन्य शत्रुओं पर और बेहतर तरीके से आक्रमण कर सकता था ।
➤उसकी महानतम सैन्य उपलब्धि पश्चिमी भारत में 300 वर्षों से शासन कर रहे शासक साम्राज्य पर विजय रही ।
➤इस विजय के फलस्वरूप गुप्त साम्राज्य की सीमाएं भारत के पश्चिमी तट तक पहुंच गईं।
➤मेहरौली , दिल्ली में स्थित एक लौह स्तंभ से हमें संकेत मिलते हैं कि उसके साम्राज्य में उत्तर - पश्चिम भारत तथा बंगाल के भी राज्य थे ।
➤उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारणा की थी अर्थात् सूर्य के समान बलशाली ।
➤ चंद्रगुप्त द्वितीय कला तथा साहित्य के संरक्षण के लिए विख्यात है ।
➤उसके दरबार में नवरत्न हुआ करते थे ।
➤संस्कृत के महान कवि तथा नाटककार कालिदास इनमें सर्वाधिक चर्चित रहे ।
➤चीनी बौद्ध तीर्थयात्री फाह्यान ( सन् 404-411 ) ने उसके शासन काल में भारत की यात्रा की थी ।
➤उसने पांचवी शताब्दी के लोगों के जीवन का विवरण दिया है ।
गुप्त वंश का विस्तार 🔥
गुप्त वंश का विघटन / पतन🔥
➤ इस भाग में हम उन कारणों का विवरण करेंगे जो गुप्त साम्राज्य के पतन के लिये उत्तरदायी थे :
1 ) हुण आक्रमण :
➤कुमारगुप्त प्रथम के शासन काल से ही उत्तर पश्चिमी सीमाओं पर हुणों ने आक्रमण करना शुरू कर दिया ।
➤हुण मध्य एशिया का एक कबीला था जो सफलतापूर्वक विभिन्न दिशाओं में बढ़ रहा था और जिसने उत्तर पश्चिम , उत्तरी और पश्चिमी भारत में कई स्थानों पर अपने राज्यों की स्थापना कर ली थी ।
➤हालांकि इस समय में उनके आक्रमणों को निष्क्रिय कर दिया गया था ।
➤ परन्तु पांचवी शताब्दी सी . ई . के अंत में हुण सरदार तोरमण ने पश्चिमी एवं केन्द्रीय भारत के अधिकतर भागों में अपना आधितत्य स्थापित कर लिया ।
➤उसके बेटे मिहिरकुल ने अपने आधिपत्य को और आगे बढ़ाया ।
➤ इस प्रकार हुणों का आक्रमण , विशेषकर उत्तर - पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों में , गुप्त प्रभुत्व के लिये बहुत घातक साबित हुआ ।
2 ) प्रशासनिक कमजोरियां :
➤ जिन पराजित राजाओं ने गुप्त शासकों के सामन्तीय प्रभुत्व को स्वीकार कर लिया उन स्थानीय सरदारों या राजाओं को पुनः स्थापित करने की नीति का अनुसरण गुप्त राजाओं ने किया ।
➤वास्तव में , इन क्षेत्रों पर कठोर और प्रभावकारी नियंत्रण को स्थापित करने के लिये कोई प्रयत्न नहीं किये गये ।
➤इस प्रकार यह स्वाभाविक ही था कि जब कभी भी उत्तराधिकार के प्रश्न या कमज़ोर राजा को लेकर गुप्त साम्राज्य में कोई संकट होता तो इसके अन्दर ही स्थानीय सरदार अपने स्वतंत्र प्रभुत्व को पुनः स्थापित कर लेते ।
➤इससे प्रत्येक गुप्त सम्राट के लिये एक समस्या होती और उसे अपने प्रभुत्व को पुनर्स्थापित करना पड़ता ।
➤लगातार सैनिक अभियानों के कारण राज्य के कोष पर अतिरिक्त भार पड़ता था ।
➤ पांचवी शताब्दी सी.ई. के अंत और छठी शताब्दी सी.ई. के प्रारंभ में , कमज़ोर सम्राटों का लाभ उठाते हुए बहुत सी स्थानीय शक्तियों ने पुनः अपने प्रभुत्व को स्थापित कर लिया और समय मिलने पर अपनी स्वतंत्रता को घोषित कर दिया ।
3) गुप्त शासकों ने ब्राह्मणों को भूमि दान के पत्र जारी किये और इस प्रक्रिया के दौरान उन्होंने अपने राजस्व एवं प्रशासनिक अधिकारों को दान मिलने वालों के पक्ष में समर्पित कर दिया।
4) ऐसा विश्वास किया जाता है कि सामंत व्यवस्था के अंतर्गत सामंतों ने , जो केन्द्रीय शक्ति के सहायक के रूप में शासन करते थे , गुप्त काल में अपनी शक्ति को मज़बूत करना शुरू कर दिया ।
5. गुप्त साम्राज्य के अंतर्गत बड़ी संख्या में सामंतों की उपस्थिति यह स्पष्ट करती है कि उन्होंने गुप्त आधिपत्य से स्वतंत्र रूप से अपनी शक्ति को मज़बूत किया ।
6) शाही परिवार के आंतरिक विभाजनों ने स्थानीय सरदारों या नियंत्रकों के हाथों में शक्ति के सुदृढ़ीकरण और साम्राज्य की कमज़ोर प्रशासनिक व्यवस्था ने गुप्त साम्राज्य के विघटन में योगदान किया ।
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