गुप्तकालिन सांस्कृतिक जीवन - कला - चित्रकला, वास्तुकला - मूर्तिकला - साहित्य Gupt Vansh Prachin Bhartiy itihas
गुप्त वंश / गुप्त काल
सांस्कृतिक जीवन 🔥
➤गुप्तकालीन सांस्कृतिक जीवन का अध्ययन विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है
1. शिक्षा :
➤ शिक्षा की दृष्टि से यह काल महत्वपूर्ण है , इसी युग में महान् नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई और बुद्धगुप्त आदि ने उसके विकास में प्रोत्साहन दिया ।
➤ वेदों की शिक्षा के साथ ही पुराण , स्मृति , तर्क , दर्शन , न्याय , व्याकरण , ज्योतिष आदि शिक्षा के प्रमुख अंग थें ।
➤शैक्षिक विकास में श्रेणी , नियम आदि ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।
➤इस काल में बनारस , बल्लभी , नासिक में आदि में भी विश्वविद्यालय थे ।
➤शैक्षिक विकास के कारण ही हमें इस काल में विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण विकास दिखाई देता है ।
2. विज्ञान एवं ज्योतिष :
➤ज्योतिष के क्षेत्र में इस काल का प्रमुख विद्वान आर्यभट्ट था ।
➤उसने यह सिद्ध किया कि पृथ्वी अपनी धुरी में घूमती है ।
➤उसकी प्रसिद्ध रचना ' आर्यभटटीयम् ' थी ।
➤इस काल का दूसरा गणितज्ञ तथा ज्योतिषी वाराहमिहिर था । वह धातु - विज्ञान का पण्डित था । उसकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘ वृहत संहिता ‘ है इसमें उसने ज्योतिष तथा वनस्पति विज्ञान का विवेचन किया है ।
➤इसके अतिरिक्त उसने लघुजातक , वृहज्जातक तथा पंचसिद्धान्तिका की भी रचना की ।
3. गणित :
➤ इस काल में गणित के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई ।
➤दशमलव प्रणाली का प्रचार इसी समय हुआ ।
➤आर्यभट्ट का ' आर्यभट्टीयम ' अंकगणित , बीजगणित तथा रेखागणित के अनेक सिद्धान्त प्रतिपादित करता है ।
➤आर्यभट्ट ने पाइ का मान निकाला और वर्गमूल तथा घनमूल निकालने की विधि प्रतिपादित की ।
4. आयुर्वेद :
➤ आयुर्वेद का इस काल में अत्यधिक विकास हुआ ।
➤इसी समय रस - चिकित्सा का प्रारंभ हुआ ।
➤चरक तथा सुश्रुत इस काल के प्रसिद्ध चिकित्सक थे ।
➤पशु चिकित्सा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य हुआ और पलकाप्व ने ' हस्तायुर्वेद ' की रचना की ।
➤धन्वतरि इस काल का श्रेष्ठ चिकित्सक था ।
➤इस काल में चीर - फाड़ का विज्ञान भी विकसित हुआ ।
➤श्रेष्ठांग संग्रह , सुश्रुत संहिता , चरक संहिता आदि इस काल के महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं ।
5. रसायन शास्त्र :
➤रसायन के क्षेत्र में भी विशिष्ठता प्राप्त हुयी थी , यद्यपि इस सम्बन्ध में निश्चित प्रमाण नहीं है ।
➤तथापि महरौली का लौह - स्तंभ तथा भागलपुर जिले से प्राप्त साढ़े सात फीट ऊँची बुद्ध की ताम्र मूर्ति इस काल की धातु - विज्ञान की उन्नति की परिचायक है ।
कला🔥
➤गुप्तकालीन कला का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है ।
1. वास्तुकला :
➤कुछ स्तूप और मन्दिर इस काल की वास्तुकला के उदाहरण है ।
➤इस काल के मन्दिरों को ऊँचे चबूतरे में निर्मित किया जाता था जिसके चारों ओर सीढियां होती थी ।
➤प्रारंभ में मन्दिरों की छतें चपटी होती थी ।
➤गर्भ गृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ बनाये जाते थे , जो ऊपर से ढखे रहते थे ।
➤मन्दिरों की छत चार स्तंभों पर टिकी रहती थी ।
➤स्तंभों के ऊपर वर्गाकार पत्थर का एक टुकड़ा रखा रहता था ।
➤ प्रत्येक पत्थर पर सामान्यतः चार - चार सिंह एक दूसरे से पीठ सटाये हुए दिखाये जाते थें ।
➤इस काल में ईंट तथा पत्थर दोनों के ही मन्दिर बनाये गये ।
➤मन्दिरों में अलंकरण हेतु व्याल , गंगा - यमुना , कीर्तिमुख , पुष्पपत्र , गवाक्ष आदि की मूर्तियां उत्कीर्ण की जाती थी ।
➤इस काल की वास्तु कला के दर्शन-
- भूभरा के शिव मन्दिर ,
- देवगढ के दशावतार मन्दिर ,
- भीतरगांव का मन्दिर ,
- टिबुआ का बिष्णु मन्दिर ,
- नचना का पार्वती मन्दिर ,
- धमेख स्तूप ,
- अजन्ता की गुफाओं ( 16,17,19 )
- उदयगिरी की गुफा
2. मूर्तिकला :
➤यह काल मूर्तिकला के चर्मोत्कर्ष का काल था ।
➤कुषाण काल में जन्म लेने वाली विभिन्न शैलियों का विस्तृत रूप इस काल में दिखाई देता है ।
➤गुप्तकाल में मूर्ति निर्माण के तीन केन्द्र थे पाटलिपुत्र , सारनाथ और मथुरा ।
➤इस काल में पाषाण , धातु और मिट्टी की मूर्तियां बनायी गयी है ।
➤ गुप्त युग में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित , पौराणिक जैन मूर्तियां और धर्मनिरपेक्ष मूर्तियों बनायी गयीं ।
➤इन मूर्तियों में भद्रता , आध्यात्मिकता , सरलता अनुपातशीलता , तथा सौन्दर्यप्रियता दिखाई देती है ।
➤भारतीयकरण इन मूर्तियों की एक अन्य विशेषता है ।
➤प्रमुख मूर्तियों में -
- बुद्ध मूर्ति ,
- सुलतानगंज की बुद्ध मूर्ति ,
- मथुरा की खडी बुद्ध मूर्ति ,
- देवगढ की विष्णुमूर्ति ,
- उदयगिरि की बाराहअवतार की मूर्ति ,
- मथुरा की विष्णु मूर्ति ,
- काशी की कार्तिकेय मूर्ति ,
- कौशाम्बी की सूर्य - मूर्ति।
3. चित्रकला :
➤गुप्त काल में फ्रेस्को और टेम्परा दोनों ही प्रणालियों का विकास हुआ ।
➤चित्रकला के अंग के रूप में रूप - भेद , प्रभाण , भाव , लावण्य - योजना , सादृश्य तथा वर्णिक भेद का विधान मिलता है ।
➤गुप्त काल की चित्रकला में कलाकार का नाम अज्ञात है , रेखा प्रधानता , प्राचीरांकन , असाम्प्रदायिकता , अभिव्यक्ति प्रधानता तथा सौन्दर्य बोध के दर्शन होते हैं ।
➤इस काल की चित्रकला की उत्कृष्टता का पता अजन्ता , एलोरा , बाघ तथा श्रीलंका से प्राप्त चित्रों में होता है ।
➤अजन्ता के चित्रों में मरती हुई राजकुमारी , माता और पुत्र तथा बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण के चित्र विशेष दर्शनीय है ।
➤इसके अतिरिक्त मुद्रा , धातु - विज्ञान , संगीत , नृत्य तथा अभिनय के क्षेत्र में भी गुप्त काल में महत्वपूर्ण अभिवृद्धि हुई ।
➤संक्षेप में कहा जा सकता है कि संस्कृतिक दृष्टि से गुप्त काल भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल था ।
साहित्य🔥
➤किसी युग को महान् बनाने मे उस काल के साहित्य का महत्वपूर्ण हाथ होता है ।
➤गुप्त काल की महानता का अधिकांश श्रेय भी इस काल के साहित्य को ही जाता है ।
1. काव्य :
➤इस काल के कवियों को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है , प्रथम वे जिनके बारे में केवल अभिलेखीय ज्ञान है , इस श्रेणी में हरिषेण , वीरसेन तथा वत्सभट्टि उल्लेखनीय है ।
➤दूसरे वर्ग में वे कवि आते हैं जिनके ग्रंथ हमें प्राप्त हैं । इनमें कालिदास एवं भारवि प्रमुख थे ।
➤कालिदास की प्रमुख कृतियां कुमारसंभवम् , मेघदूतम् , रधुवंशम् आदि है ।
➤भारवि ने किरातार्जुनीयम् की रचना की ।
➤भट्टी ने “ भट्टिकाव्य ' लिखा ।
➤प्रसिद्ध कवि मातृगुप्त काश्मीर के सम्राट थे ।
2. नाटक :
➤इस काल में संस्कृत के तीन महान् नाटककार हुए- कालिदास , शूद्रक और विशाखदत्त ।
➤कालिदास ने तीन नाटक लिखे- मालविकाग्निमित्रम् , विक्रमोर्वशीयम् और अभिज्ञानशाकुन्तलम् ।
➤शूद्रक ने मृच्छकटिकम् की रचना की कुछ विद्वान मुद्राराक्षस और वीरचन्द्रगुप्तम् के रचयिता विशाखदत्त को भी गुप्तकाल का मानते है ।
3. कथा :
➤इस काल में विष्णुशर्मा ने पंचतन्त्र की रचना की और हितोपदेश भी इसी काल में रचा गया ।
➤' वासवदत्तानाल्यधारा ' के लेखक सुबन्धु भी इसी काल में हुए थे ।
4. अन्य साहित्य :
➤गुप्त काल में चन्द्रगोमिन ने ' चन्द्रव्याकरण ' , अमरसिंह ने ' अमरकोश ' , दण्डी ने ' काव्यादर्श ' की रचना की ।
➤इसी समय महाभारत , याज्ञवल्क्य , नारद , कात्यायन और वृहस्पति स्मृतियों के नवीन संस्करण निकाले गये ।
➤ईश्वरकृष्ण ने ' सांख्यकारिका , दिंगनाथ ने ‘ प्रमाण समुच्चय ‘ , बुद्धघोष ने विशुद्ध मार्ग ' आदि का प्रणयन किया ।
➤इसी समय भामह का ‘ काव्यालंकार ‘ कामन्दक का ‘ नीतिशास्त्र ‘ तथा वात्सायन का ‘ कामसूत्र ‘ लिखे गये ।
➤स्पष्ट है कि विशाल एवं श्रेष्ठ साहित्य के कारण ही गुप्तकाल की तुलना यूनान के पेरीक्लियन युग , इग्लैण्ड के एलिजबेथियन युग और चीन के तुंग काल से की जाती है ।
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Ancient Indian History