अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार (Imperfect Competitive Market) - अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, प्रकार, एकाधिकार, द्वयाधिकार तथा अल्पाधिकार बाजार Notes in Hindi

अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार (Imperfect Competitive Market) : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, प्रकार, एकाधिकार, द्वयाधिकार तथा अल्पाधिकार बाजार Notes in Hindi


💐 अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार 💐

अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार

अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार की परिभाषा

➡️ पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार के बीच की स्थिति एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता होती है।

➡️प्रो. चैंबरलीन ने 1933 में The Theory of Monopolistic Competition में एकाधिकारात्म प्रतियोगिता का विचार किया।

फेयर चाइल्ड - यदि बाजार उचित प्रकार से संगठित ना हो, यदि क्रेता और विक्रेता ओं के पारस्परिक संपर्क में कठिनाई उत्पन्न होती हो तथा अन्य व्यक्तियों द्वारा खरीदी गई वस्तुओं और दिए गए मूल्यों को ज्ञात करने में समर्थन ना हो तो ऐसे ही स्थिति को हम अपूर्ण प्रतियोगिता कहते हैं।


अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार की विशेषताएं

1. अल्प संख्या में क्रेता व विक्रेता :

➡️ अपूर्ण प्रतियोगिता में क्रेता और विक्रेता की संख्या कम होती है और व्यक्तिगत क्रेता विक्रेता वस्तु की कीमत को प्रभावित कर सकते हैं।

2. वस्तु की इकाइयों में अंतर :

➡️ आपको ने प्रतियोगिता में विभिन्न क्रेता हो द्वारा निर्मित वस्तुएं में कुछ अंतर होता है जोकि आकार, रंग, रूप, किस्म, पैकिंग में ब्रांड, ट्रेडमार्क, विक्रेता के व्यवहार अथवा दुकान की स्थिति के कारण हो सकता है।

➡️इसमें निकट स्थानापन्न उपलब्ध होती है।

3. अज्ञानता : 

➡️ क्रेताओ और विक्रेताओं की अज्ञानता के कारण अपने प्रतियोगिता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

➡️ उन्हें बाजार का पूर्ण ज्ञान ना होने के कारण अलग-अलग मूल्यों पर वस्तुओं का क्रय विक्रय करना पड़ता है।

4. क्रेताओ में आलस्य :

➡️ कर्ताओं को यह पता होता है कि कौन सी वस्तु किस स्थान पर सस्ती मिल रही है फिर भी वह आलस्य के कारण अपने आस पास से ही महंगी वस्तु का क्रय कर लेते हैं।

5. अधिक यातायात व्यय :

➡️ एक ही वस्तु को विभिन्न स्थानों पर लाने ले जाने में ऊंची यातायात में आती है अतः एक ही वस्तु के विभिन्न स्थानों पर अनेक वाली परिचालित होते हैं।


अपूर्ण प्रतियोगिता के प्रकार

1. एकाधिकृत / एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता

2. द्वि अल्पाधिकर / द्वयाधिकार प्रतियोगिता

3. अल्पाधिकार या अल्प विक्रेताधिकार प्रतियोगिता


एकाधिकृत / एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता

➡️ वह अवस्था जिसमें विक्रेताओं वस्तुओं में इतना विभेद पाया जाता है कि वह एक दूसरे की पूर्ण स्थानापन्न नहीं होती।

चैंबरलिन - एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता बाजार का वह रूप है जिसमें बहुत ही छोटी फर्में होती है और उनमें से प्रत्येक मिलती जुलती वस्तुएं बेचती है परंतु वस्तुएं एकरूप नही होती है और वस्तुओ में थोड़ा अंतर होता है।

प्रो. रिचर्ड H. लेफ्टवीच - एकाधिकारात्मक प्रतिस्पर्धा के बाजार में एक विशेष किस्म की वस्तु के अनेक विक्रेता होते हैं तथा एक विक्रेता की वस्तु किसी न किसी रूप में दूसरे विक्रेता से भिन्न होती है जब विक्रेताओं की संख्या इतनी अधिक होती है कि एक विक्रेता के कार्यों का दूसरे विक्रेता के कार्यों पर कोई स्पष्ट प्रभाव ना पड़े तो यह उद्योग एकाधिकारात्मक प्रतिस्पर्धा का उद्योग बन जाता है।


एकाधिकृत प्रतियोगी बाजार की विशेषताएं

1. स्वतंत्र विक्रेताओं की अधिक संख्या।

2. एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता के अंतर्गत वस्तुओं में विभेद पाया जाता है।।

3. बाजार में गैर मूल्य प्रतियोगिता विद्यमान है।

4. नहीं फर्मों का प्रवेश एवं बहिर्गमन।

5. दीर्घ काल में इस प्रतियोगिता में सामान्य लाभ प्राप्त होता है क्योंकि फर्मों का प्रवेश व तंत्र एवं बहिर्गमन आसान हो जाता है।

6. विज्ञापन एवं विक्रय लागतो की उपस्थिति।

7. कर्ताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान का अभाव होना।

8. प्रत्येक धर्म को अपनी नीति होती है। पूर्ण प्रतियोगिता की भांति एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में फर्म कीमत प्राप्तकर्ता होता है।


अल्पकालीन संतुलन

1.असामान्य लाभ :

➡️जब AR > AC

         AC < AR हो।

➡️जब औसत आगम औसत लागत से अधिक होता है तो फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होता है।


2.सामान्य लाभ :

➡️ जब AR = AC हो, जब औसत आगम औसत लागत के बराबर होता है तो फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है।

3. हानि :

➡️जब, AC > AR, जब अवसर लागत औसत आगम से अधिक होता है तो फर्म को हानि होती है।


दीर्घकालीन संतुलन

सामान्य लाभ :

  • जब, AC = AR हो, दीर्घकाल में फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है जब औसत लागत और औसत आगम बराबर हो जाते हैं।


द्वि अल्पाधिकर / द्वयाधिकार प्रतियोगिता

➡️बाजार की वह स्थिति जिसमें किसी एक ही सर्वथा समान अथवा लगभग समान वस्तु के दो उत्पादक होते हैं।

➡️ दोनों की वस्तुएं एक दूसरे के प्रतियोगिता करती है तथा उत्पादन कार्य में स्वतंत्र होते हैं।

डॉ. जोन - द्वी विक्रेता एकाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी एक ही सर्वथा सामान अथवा लगभग समान वस्तु के दो उत्पादक होते हैं जो अपने बीच कीमत अथवा उत्पादन मात्रा के विषय में किसी भी प्रकार के समझौते से बाध्य नहीं होते।


द्वयाधिकार बाजार की विशेषताएं

1. यह एक ऐसी स्थिति का द्योतक है जिसमें केवल दो ही उत्पादक होते हैं।

2. दोनों सर्वथा समान अथवा लगभग समान वस्तु का विक्रय करते हैं।

3. दोनों ही अपने उत्पादन कार्य में स्वतंत्र होते हैं तथा दोनों की वस्तुएं एक दूसरे से प्रतियोगिता करती हैं।

4. दोनों विक्रेताओं के बीच पारस्परिक निर्भरता पाई जाती है।

5. द्वयाधिकार नामक बाजार स्थित एकाधिकार के निकट मानी जाती है क्योंकि कुछ विशेषताएं का अधिकार जैसी है।

6. जब दो विक्रेता एक रूप एवं एक गुण जैसी वस्तुएं भेजते हैं तब उसे विशुद्ध द्वयाधिकार कहते हैं।


अल्पाधिकार या अल्प विक्रेताधिकार प्रतियोगिता

➡️ जब किसी बाजार में वस्तु के उत्पादन या विक्रय पर कुछ फर्मों का आधिपत्य होता है तो उसे अल्पाधिकार की अवस्था कहते हैं।

➡️Oligo तथा Poly ग्रीक भाषा के शब्द है जिसका अर्थ अल्प तथा विक्रेता होता है।

मेयर्स - अल्पाधिकार बाजार की उस अवस्था को कहते हैं जहां विक्रेताओं की संख्या इतनी कम होती है कि प्रत्येक विक्रेता बाजार की कीमत पर प्रभाव डालता है तथा प्रत्येक विक्रेता इस बात को जानता है।

प्रो. स्टिगलर - अल्पाधिकार वह स्थिति होती है जिसमें कोई फर्म अपनी बाजार नीति कुछ निकट प्रतियोगिता के संभावित व्यवहार पर स्थापित करती हैं।

प्रो. लेफ्टविच - बाजार की उस दशा को अल्पाधिकार कहते हैं जिस में थोड़ी संख्या में विक्रेता पाए जाते हैं तथा प्रत्येक विक्रेता की क्रियाएं दूसरों के लिए महत्वपूर्ण होती है।


अल्पाधिकार बाजार की विशेषताएं

1. अल्पाधिकार बाजार में विक्रेताओं की संख्या अल्प होती हैं।

2. अल्पाधिकार बाजार में कीमत स्थिरता पाई जाती हैं।

3. अल्पाधिकार बाजार में उद्योग में नई फर्म का प्रवेश कठिन होता है।

4. अल्पाधिकार की दशा में प्रायः सभी पर विज्ञापन और विक्रय प्रोत्साहन पर अधिक ध्यान देती है।

5. अल्पाधिकार बाजार में फर्म समरूप एवं विभेदित दोनों प्रकार की वस्तुओं का निर्माण करती है।

6. बाजार के अन्य प्रकारों की तुलना में अल्पाधिकार की स्थिति में फर्मों की मांग वक्र बहुत अनिश्चित होती हैं।

7. अल्पाधिकार में उत्पादन कार्य में लगी हुई सभी फर्म एक दूसरे पर निर्भर होती है अर्थात एक दूसरे पर आश्रित होती हैं।

8. फर्मों में एकरूपता का अभाव पाया जाता है।


अल्पाधिकार बाजार में कीमत निर्धारण

1. स्वतंत्र कीमत निर्धारण : 

➡️ सामान्य रूप से बाजार में स्वतंत्र प्रतियोगिता होती है जिसके कारण उद्योग एवं सर में अपने-अपने मूल्य निर्धारण करने में स्वतंत्र होती है।

➡️ सभी भर में बाजार से अधिक लाभ कमाने के चक्कर में कम मूल्य पर वस्तुएं भेजना प्रारंभ करती है जिस कारण कमजोर पर मैं बाजार से बाहर हो जाती हैं।

2. गुड बंदी के अंतर्गत मूल्य निर्धारण :

➡️ स्वतंत्र मूल्य निर्धारण की हानियां, अनिश्चितताओं तथा सुरक्षा आदि उत्पन्न होती है उससे बचने के लिए अल्फा अधिकारी पर में मूल्य तथा उत्पादन की मात्रा के संबंध में कभी कभी आपस में समझोता कर लेती है जिसे गुड बंदी कहते हैं।

पूर्ण गुटबंदी -

➡️ इसके अंतर्गत एक केंद्रीय संस्था की स्थापना की जाती है जिसे कार्टेल कहते हैं।

➡️ कार्टेल के द्वारा गुट की सभी फर्मों के लिए उत्पादन की मात्रा तथा मूल्य निर्धारित किया जाता है और व्यक्तिगत फर्मों की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती हैं।

➡️ कार्टेल उत्पादन की मात्रा और मूल्य उस बिंदु पर निर्धारित करती है जहां पर उद्योग के कुल सीमांत लागत उद्योग के कुल सीमांत आगम के बराबर हो जाती हैं। (MC = MR)

अपूर्ण गुटबंदी -

➡️ इसके अंतर्गत उद्योग की समस्त पर में वस्तु के मूल्य और उत्पादन की मात्रा के संबंध में भले आदमियों का समझौता कर लेती है।

➡️ प्रत्येक फर्म को कुछ सीमा तक कीमत और उत्पादन मात्रा निर्धारण के स्वतंत्रता होती है परंतु मूल्य युद्ध से बचने के लिए आपसी सहमति का रास्ता बनाया जाता है।

3. मूल्य नेतृत्व के अंतर्गत मूल्य निर्धारण :

➡️ मूल्य नेतृत्व उसी स्थिति को कहते हैं जिसमें किसी एक फर्म द्वारा तय किए गए मूल्य को अन अल्पाधिकार फर्में स्वीकार कर लेती हैं।

➡️ जो फर्में मूल्य निर्धारण और परिवर्तन की पहल करती है उसे मूल्य नेता कहते हैं।

➡️बाकी सभी फर्में नेता के मूल्य का अनुसरण करती है उन्हें मूल्य अनुयाई कहते हैं।

आर्थर बर्न्स - यदि एक ही फर्म द्वारा सदैव या प्रायः मूल्य में परिवर्तन किए जाते हैं और अन्य विक्रेता मूल्य के इन्हीं परिवर्तनों का अनुसरण करते हैं तो इस प्रकार की मूल्य स्पर्धा मूल्य नेतृत्व के अंतर्गत आती हैं।

➡️ मूल्य नेतृत्व वह नीति है जिसमें उद्योग के अधिकार दिखाया उसके एक सदस्य द्वारा निर्धारित किए गए मूल्य को अपनाते हैं।

➡️ मूल्य नेतृत्व के अंतर्गत नेतृत्व करने वाली फर्म बड़ी होती है तथा वस्तु के कुल उत्पादन में उसका बड़ा हिस्सा होता है।

➡️ शेष फर्में छोटे आकार की होती है जो कम मात्रा में उत्पादन करती हैं।

➡️ अतः सभी छोटी फर्में बड़ी एवं अनुभवी फर्मों द्वारा निर्धारित मूल्य पर विक्रय करती है।

➡️ यह नीति सत्ता शक्तिशाली के हाथ में के सिद्धांत पर आधारित है।

➡️जैसे भारत में सेल (SAIL) इस्पात उद्योग में मूल्य नेतृत्व का उदाहरण।

➡️MC1 = पहली फर्म की सीमांत लागत।

➡️बिंदु E1 पर संतुलन की स्थिति में OQ1 मात्रा का उत्पादन Q1P1 कीमत पर करती है।

➡️MC2 = दूसरी फर्म की सीमांत लागत।

➡️बिंदु E2 पर संतुलन की स्थिति में OQ2 मात्रा का उत्पादन Q2P2 कीमत पर करती है।

➡️पहली फर्म की लागत कम तथा उत्पादन अधिक है।

➡️अतः पहली फर्म मूल्य नेता होगी।


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