व्यापारिक मार्ग Vyaparik Marg - Prachin Bhartiy Itihas Notes in Hindi

व्यापारिक मार्ग - खोज का युग - प्रमुख व्यापारिक मार्ग Notes in Hindi 


व्यापारिक मार्ग : 🔥

➤पुरातन काल से ही वस्तुओं का परिवहन उनके उत्पादन स्थलों से उनकी खपत वाले स्थलों तक व्यापार मार्गों के जरिये किया जाता था । 

➤मसालों और नमक जैसी दुर्लभ वस्तुएँ केवल कुछ क्षेत्रों में ही उपलब्ध थीं । 

➤ये दुर्लभ वस्तुएँ व्यापार मार्गों के विकास के लिए सबसे बड़ी प्रेरक शक्ति थीं लेकिन एक बार जब ये मार्ग विकसित और स्थापित हो गए।

➤ये संस्कृ ति , धर्म , परम्परा , भाषा , ज्ञान , विचार और कभी - कभार तो विषाणुओं और जीवाणुओं के आदान प्रदान के भी माध्यम बने । 

➤मध्यकाल में वस्तुओं का परिवहन स्थल मार्गों और जल मार्गों के जरिये किया जाता था । 

➤व्यापार मार्गों के जरिये व्यवसाय का प्रसार करने में अरब व्यापारियों ने प्रमुख भूमिका निभायी । 

➤केन्द्रीय एशिया में व्यापार मुख्यतः स्थल मार्गों के जरिये ही होता था । 

➤भूमध्यसागरीय क्षेत्र ईरान , भारत और चीन से काफिला मार्गों के जरिये सम्बद्ध था । 

➤मुस्लिम व्यापारियों ने गुजरात , सिन्ध और सैमूर ( मुम्बई के निकट ) में व्यापारिक चौकियाँ स्थापित की थीं । 

➤उस समय के प्रमुख बन्दरगाह थे जोर , जिद्दा ( लाल सागर के बन्दरगाह ) , उबुल्लाह ( फारस की खाड़ी ) , सिराफ , बसरा , यमन , मस्कट और ओमान आदि । -

➤इतिहास में रेशम मार्ग और मसाला मार्ग दो सर्वाधिक प्रसिद्ध व्यापार मार्ग हैं ।

खोज का युग :🔥

➤" खोज के युग " ( अन्वेषण ) ने अमेरिका , यूरोप , अफ्रीका और एशिया के बीच महत्वपूर्ण वाणिज्यिक सम्बन्ध उत्पन्न किए । 

➤आन्तरिक व्यापार का संचालन बाल्टिक , अटलांटिक , भूमध्यसागर , अरब सागर और हिन्द महासागर के जरिये होता था ।

➤भूमध्यसागर को पार करने के लिए चार व्यापार मार्गों की सूची बनायी गयी है । 

➤इनमें से दो व्यापार मार्ग हिन्द महासागर से होकर गुजरते थे और दो मार्ग स्थलमार्ग थे । 

➤एक व्यापार मार्ग का प्रारम्भ चीन से होता था और दक्षिणी साइबेरिया के स्टेपीज ( घास के मैदानों ) से होते हुए इस मार्ग का समापन काला सागर पर होता था । 

➤दूसरा व्यापार मार्ग चीन से शुरू होता था और तुर्किस्तान के मरुस्थल से होते हुए ईरान तक जाता था तथा फारस की खाड़ी को जोड़ता था । 

➤इस व्यापार मार्ग में समुद्री और स्थलीय मार्ग अंतर्संबंधित थे । 

➤अन्य मार्ग भी थे जो हिन्द महासागर से होकर गुजरते थे ; जैसे भारत से मलक्का और उसके बाद ईस्ट इण्डीज जाने वाले मार्ग , जो फारस की खाड़ी पर आपस में मिल जाते थे । 

➤इसके अतिरिक्त भी बहुत सारे व्यापार मार्गों का अस्तित्व था जो इंग्लैण्ड , फ्रांस , ट्राय ( Troyes ) और कॉम्पियन ( Compiegne ) आदि को आपस में जोड़ते थे । 

➤नहरों और नदियों के जाल के कारण हालैण्ड व्यापार के एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में उभरा । 

मसाला मार्ग :🔥

➤ जापान के पश्चिमी तट ➡️ इण्डोनेशियाई द्वीपसमूह ➡️ भारत ( के चारों ओर ) ➡️ मध्य एशिया ➡️ भूमध्यसागरीय क्षेत्र ( के आरपार ) ➡️ यूरोप तक के समुद्री मार्ग।

➤यह पूरब को पश्चिम से जोड़ने वाला समुद्री मार्ग था । 

➤व्यापार ( व्यावसायिक पर्यटन ) और साहस ( पर्यटन का भाग ) के लिए उत्साही और बहादुर नाविकों और अन्वेषकों द्वारा इन खतरनाक समुद्री मार्गों के जरिये यात्राएँ की जाती थीं । 

➤मसाला मार्ग के विकास का मुख्य कारण यह था कि उन दिनों भारत और दक्षिण एशियाई देशों के मसालों की यूरोपीय देशों में बहुत माँग थी । 

➤व्यापारिक वस्तुएं - दालचीनी , तेजपत्ता ( कैसिया ) , इलायची , अदरक , काली मिर्च , हल्दी , अफीम , हाथी दाँत , रेशम , कपड़े , चीनी मिट्टी धातुएँ और मूल्यवान तथा अर्द्धमूल्यवान रत्न | 

➤लोगों , विचारों , दर्शन , जीवनशैली , भोजन , आदतों , कपड़ों , ज्ञान , तकनीक , धर्म , विश्वासों , संस्कृति , विशेषज्ञता तथा वैज्ञानिक और कलात्मक कौशलों का भी आदान प्रदान होता था । 

➤मसाला शब्द के लिए spice शब्द का प्रयोग होता है जो लैटिन शब्द " Species " से निकला है और जिसका अर्थ है " विशेष मूल्य की वस्तु " । 

➤उन दिनों में मसाले सर्वाधिक मूल्यवान होने के कारण : 

भोजन को स्वादिष्ट बनाना ( पकाना ) 

एक परिरक्षक के रूप में चिकित्सकीय और आध्यात्मिक मूल्य 

आनुष्ठानिक धार्मिक समारोहों में उपयोगी 

हवा को शुद्ध करने वाला ( सुगन्धित करने वाला ) 

प्रतिष्ठा और राजसीपन

मसालों का आकार छोटा होता था 

ये शुष्क होते थे और इनको लाना ले जाना आसान था।

➤3000 ई . पू . में शुरू होने वाले मसालों के व्यापार के प्रमाण को मुजरिस ( केरल , भारत ) बन्दरगाह पर खोजा जा सकता है , जिसे " मसालों की भूमि " या " भारत का मसाला बागान " कहा जाता था । 

केरल से जुड़े मार्ग की पहचान करना इस सम्बन्ध में इतना अधिक महत्वपूर्ण था कि इसके लिए वास्को डि गामा , क्रिस्टोफर कोलम्बस और अन्य अन्वेषकों ने अपना सारा जीवन खर्च कर दिया । 

➤भारत और श्रीलंका को जाने वाले समुद्री मार्गों पर पहले भारतीयों और इथियोपियाई लोगों का नियन्त्रण था तथा बाद में इस्लाम के उभार के साथ अरब व्यापारियों ने समुद्री मार्गों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना शुरू कर दिया । 

➤खोज के युग ने मसालों के व्यापार मार्ग पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिए पुर्तगालियों , डचों अंग्रेजों और स्पेनी लोगों के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दीं ।

रेशम मार्ग :🔥

➤यह प्राचीन काल के सर्वाधिक प्रसिद्ध व्यापार मार्गों में से एक था जो चीन को रोम से जोड़ता था । 

➤रेशम व्यापार मार्ग के जरिये रेशम का व्यापार किया जाता था । 

➤रेशम चीन से जाता था और रोम से बदले में सोना , चाँदी और ऊन प्राप्त होता था । 

➤यह मार्ग चीन में जियान ➡️ चीन की दीवार ➡️ पामीर पर्वतों ( अफगानिस्तान ) ➡️ लीवैण्ट ( भूमध्यसागर का पूर्वी क्षेत्र ) तक जाता था । 

➤लीवैण्ट में भूमध्यसागरीय बन्दरगाहों के लिए वस्तुएँ लादी जाती थीं । 

➤यह मार्ग ज्ञान , तकनीक , धर्म और कलाओं के लिए भी एक प्रमुख माध्यम बना । 

➤मार्ग के बीच में पड़ने वाले समरकन्द ( उज्बेकिस्तान ) जैसे कुछ केन्द्र बौद्धिक मिश्रण से युक्त महत्वपूर्ण स्थल बन गए ।

➤ चीन से रोम तक की दूरी लगभग चार हजार मील थी इसलिए किसी एक व्यापारी के लिए यह सम्भव नहीं था कि यह पूरी दूरी वह स्वयं तय कर सके । 

➤कोई व्यापारी रेशम व्यापार मार्ग के किसी विशिष्ट हिस्से में माल के परिवहन के लिए विशेषज्ञता रखता था जो माल को आगे की यात्रा के लिए दूसरे किसी व्यापारी को सौंप दिया करता था । 

➤रोमन साम्राज्य के ढहने के कारण चौथी शताब्दी ई . में रेशम व्यापार मार्ग असुरक्षित हो गया । 

➤तेरहवीं शताब्दी में मंगोलों ने इस मार्ग को पुनर्जीवित किया ।

➤ रेशम मार्ग के जरिये ही अन्वेषक मार्को पोलो ने चीन की यात्रा की थी और ऐसा करने वाला वह यूरोप का पहला व्यक्ति बना था । 

➤प्लेग पैदा करने वाले जीवाणुओं का प्रसार भी रेशम व्यापार मार्ग के जरिये ही हुआ था ।

➤ रेशम कीट पालन 4000-3000 ई . पू . में ही प्रारम्भ हो गया था । 

➤दक्षिणी चीन रेशम कीट पालन के प्राचीन और सर्वाधिक प्रसिद्ध केन्द्रों में से एक था । 

➤प्रारम्भिक दिनों में रेशम इतना अधिक मूल्यवान होता था कि यह मुद्रा का कार्य करता था । 

➤पाँचवीं शताब्दी तक रेशम निर्माण की प्रक्रिया की गुप्त रूप से चीनियों द्वारा रक्षा की जाती थी । 

➤रेशम निर्माण चीन की अनेक ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ हुआ करता था । 

➤हान राजवंश के काल में रेशम निर्माण एक प्रमुख उद्योग तथा विशेषज्ञतायुक्त प्रमुख क्षेत्र बन गया था । 

➤बाद में भारत और जापान भी रेशम उत्पादक क्षेत्रों के प्रमुख केन्द्र बन गए । 

➤मध्य एशिया ( रेशम मार्ग ) के आरपार जाने वाले काफिला मार्ग से रेशम का व्यापार होता था । 

➤यह चीन से सीरिया और उसके बाद रोम तक जाता था । 

➤भारत से कच्चा रेशम और कपड़े फारस जाते थे । 

➤फारस पूरब और पश्चिम के बीच के प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों में से एक बन गया था । 

➤रोम , यूनान , मिस्र और सीरिया में रेशम की बुनाई और रंगाई का विकास एक कला के रूप में किया गया । 

➤कहा जाता कि चीन में रहने वाले फारस के दो संन्यासियों ने बाँस के डण्डे के भीतर रेशम कीटों को छुपाकर उनकी तस्करी की थी और उसे इस्तानबुल ( कुस्तुनतुनिया ) तक ले गए थे , जिसके कारण रेशम कीट पालन का यूरोपीय व्यवसाय प्रारम्भ हुआ।

➤रेशम मार्ग के जरिये अनेक वस्तुओं का व्यापार किया गया - रेशम , साटन ( Satin ) और अन्य तरीके के उत्कृष्ट धागे , दास , मसाले , औषधियाँ , इत्र , कस्तूरी , चीनी मिट्टी और काँच के सामान तथा आभूषण आदि । 

➤यह मार्ग प्राचीन चीन , भारत , फारस , एशिया माइनर और भूमध्यसागरीय देशों से होकर गुजरता था । 

➤इसने घुमक्कड़ों , शासकों , योद्धाओं , मिशनरियों , तीर्थयात्रियों , दुकानदारों और व्यापारियों के बीच तकनीकी सांस्कृतिक और वाणिज्यिक विनिमय के लिए अनुकूल परिस्थितियों उत्पन्न की । 

➤रेशम मार्ग पर व्यापारिक गतिविधि चीन , रोम , अरब , फारस , मिस्र और भारत जैसी महान सभ्यताओं के विकास में एक उल्लेखनीय कारक थी ।

इत्र मार्ग :🔥

➤रोम , यूनान और मिस्र के लोग सुगन्धित रेजिन ( फ्रैंकइनसेंस ) और लोहबान के बहुत शौकीन थे जो यमन और ओमान ( अरब प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग ) में पाया जाता था । 

➤सुगन्ध के लिए इस सुगन्धित रेजिन और लोहबान को जलाया जाता था तथा इत्र के रूप में भी इनका उपयोग किया जाता था । 

➤अन्तिम संस्कार के समय भी शव लेपन के लिए इन चीजों का उपयोग किया जाता था । 

➤इत्र मार्ग का विकास अरब लोगों द्वारा किया गया था जो ऊँटों के जरिये मूल्यवान इत्र का परिवहन भूमध्यसागर तक किया करते थे ।

➤ पेड़ों से उनका रस निकालकर और फिर उसे धूप में सुखाकर इत्र को तैयार किया जाता था । 

➤यहाँ तक कि प्लिनी , दि एल्डर ( रोमन इतिहासकार ) ने भी अपने लेखन में सुगन्धित रेजिन और लोहबान के व्यापार का उल्लेख किया है । 

➤नौकाओं की डिजाइन में उन्नति और समुद्री मार्गों के विकास के साथ प्रथम शताब्दी ई . तक यह प्राचीन स्थलीय मार्ग निरर्थक हो गया ।

तृणमणि ( Amber ) मार्ग ( व्यापार वाले मनके ) :🔥

➤ तृणमणि मनकों को बाल्टिक क्षेत्र से शेष यूरोप तक ले जाने के लिए रोमन लोगों ने तृणमणि मार्ग का विकास किया था । 

➤तृणमणि मनकों का उपयोग सजावट की वस्तु के रूप में किया जाता था और चिकित्सकीय उद्देश्यों के लिए भी ये मूल्यवान थे । 

➤बाल्टिक सागर उत्तम गुणवत्ता वाले तृणमणि मनकों के लिए प्रसिद्ध है जिनका निर्माण लाखों वर्ष पूर्व आच्छादित जंगलों के डूब जाने से हुआ था । 

➤प्राचीन तृणमणि मार्ग के अवशेष पोलैण्ड में देखे जा सकते हैं , जहाँ पर एक मार्ग का नाम ही " तृणमणि राजमार्ग ( Amber Highway ) " है। 

चाय मार्ग ( चाय - अश्व मार्ग ) :🔥

➤चाय मार्ग का विकास चीन की चाय और तिब्बती यौद्धिक अश्वों के परिवहन के लिए किया गया था । 

➤यह मार्ग चीन के हेंगडुआन पर्वतों से शुरू होकर तिब्बत होते हुए भारत तक विस्तृत था।

➤दुर्गम क्षेत्रों और बहुत सारी नदियों के भूभाग के कारण यह मार्ग सर्वाधिक खतरनाक मार्ग था । 

➤सांग ( Song ) राजवंश ( 960-1279 ई . ) के काल में अधिकतम व्यापार इसी खतरनाक मार्ग के जरिये किया जाता था । 

समुद्री मार्गों में वृद्धि के साथ - साथ चाय मार्ग का महत्व हाशिये पर चला गया । 

नमक मार्ग :🔥

➤पुरातन काल से ही नमक का प्रयोग परिरक्षक और रोगाणुरोधक के रूप में तथा भोजन में स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है । 

➤प्राचीन काल में यह एक दुर्लभ खनिज पदार्थ था इसलिए जो स्थान नमक के मामले में समृद्ध थे।

➤यह मार्ग ओस्टिया ( रोम के पास ) से लेकर इटली होते हुए एड्रियाटिक तट तक जाता था । 

➤नमक के महत्व को सैलरी ( Salary ) " शब्द से पहचाना जा सकता है । 

➤सैलरी शब्द का प्रयोग रोमन सैनिकों के वेतन के लिए किया जाता था । 

➤एक अन्य महत्वपूर्ण नमक मार्ग लूनबर्ग ( उत्तरी जर्मनी ) से ल्यूबेक ( जर्मन तट ) तक विस्तृत था । 

➤उत्तरी जर्मनी का क्षेत्र उत्तरी यूरोप के लिए नमक के प्रमुख स्रोतों में से एक था । 

मरुस्थलों के आरपार व्यापार ( ट्रांस - सहारा व्यापार मार्ग ) : 🔥

➤उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी अफ्रीका के बीच सहारा मरुस्थल में अनेक आड़े - तिरछे व्यापारिक सम्पर्क मार्ग मौजूद थे ।

➤ इस मार्ग पर स्वर्ण , दासों , नमक , कपड़ों , शुतुरमुर्ग के पंखों , यूरोपीय बन्दूकों आदि के परिवहन के लिए ऊँटों का प्रयोग किया जाता था ।

➤ इस्लाम , अरबी ज्ञान , शिक्षा और भाषा का प्रसार इस मार्ग के जरिये घटित हुआ था । 

➤इस मार्ग ने राज्य निर्माण और मौद्रिक प्रणाली के विकास को भी प्रोत्साहित किया । 

➤यूरोपीय लोगों द्वारा अटलांटिक के आरपार किए जाने वाले व्यापार के उद्भव के साथ यह आन्तरिक मार्ग हाशिये पर चला गया।

➤वस्तुएँ और सम्पदा आन्तरिक भूस्थलों से तटीय क्षेत्रों की दिशा में जाने लगीं ।

 कांस्ययुगीन व्यवसाय ( टिन मार्ग ) :🔥

➤ कांसे जैसी मजबूत और उपयोगी धातु को बनाने के लिए टिन को ताँबे के साथ गलाकर मिलाना पड़ता है । 

➤इस तकनीक ने टिन की माँग पैदा कर दी जो बहुत सारी जगहों पर नहीं पाया जाता था । 

➤एक टिन मार्ग कॉर्नवाल की टिन खानों ( ब्रिटेन के दक्षिण - पश्चिम में ) से लेकर फ्रांस होते हुए यूनान और इसके भी आगे तक जाता था ( ईसा की पहली सहस्राब्दी ) । 

➤व्यापारिक चौकियों के रूप में अनेक पहाड़ी किलों की अवस्थिति इस तरीके के व्यापार मार्ग के अस्तित्व को स्पष्ट करती है । 

➤पुरातात्विक अभिलेख भी उत्तरी यूरोप और भूमध्यसागर के बीच टिन मार्ग के अस्तित्व की पुष्टि करते हैं ।

 उत्तरपथ और दक्षिणपथ :🔥

➤भारतीय उपमहाद्वीप के दो प्रमुख व्यापार मार्ग उत्तरपथ और दक्षिणपथ थे । 

➤उत्तरपथ उत्तरी और उत्तरी - पश्चिमी तथा दक्षिणपथ मध्य भारत और दक्षिणी प्रायद्वीप में अवस्थित था । 

➤उत्तरपथ को " उत्तरी उच्च पथ " भी कहा जाता है । 

➤इस व्यापार मार्ग में समस्त उत्तरी पश्चिमी भारत , उत्तरी भारत , पूर्वी भारत तथा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विन्ध्य तक का क्षेत्र शामिल था । 

➤यह मार्ग बंगाल , बिहार , गोरखपुर , बिजनौर , सहारनपुर , जालन्धर , लाहौर और तक्षशिला आदि को जोड़ता था । 

➤इसका दक्षिणी हिस्सा लाहौर , दिल्ली , हस्तिनापुर , वाराणसी , इलाहाबाद , पाटलिपुत्र और राजगीर आदि को जोड़ता था । 

➤मणिभद्र यक्ष उत्तरापथ के व्यापारियों के अधिष्ठायी या पीठासीन देवता थे । 

➤यह व्यापार मार्ग अपने उत्तम नस्ल के घोड़ों और घोड़ों के व्यापारियों के लिए प्रसिद्ध था । 

➤दक्षिणापथ को प्रायः " दक्षिणी उच्च पथ " कहा जाता है । 

➤यह मार्ग वाराणसी , उज्जैन , नर्मदा घाटी और प्रतिष्ठान ( पैठन - महाराष्ट्र ) को जोड़ता था और इसके पश्चात भारत के पश्चिमी तट से होते हुए दक्षिण दिशा में चला जाता था । 

➤मणिमेखलै दक्षिणापथ के व्यापारियों के अधिष्ठायी या पीठासीन देवता थे । 

➤लाजवर्द मणि , चाँदी , अर्द्धमूल्यवान रत्न , समुद्री सीप , स्वर्ण , सीसा , ताँबा , लोहा , चन्दन की लकड़ी , घोंघों के कवच , हीरे , माणिक्य , मोती , कपड़े और वर्षारोधी वस्त्र व्यापार की प्रमुख वस्तुएँ थीं । 

➤इन व्यापार मार्गों का उपयोग व्यापारियों , पर्यटकों , तीर्थयात्रियों , विद्यार्थियों , अभिनेताओं , कलाबाज नटों , राजाओं , सेना , अश्व व्यापारियों , बिसातियों , संन्यासियों आदि द्वारा अपने अपने उद्देश्यों के लिए किया जाता था । 

➤ये व्यापार मार्ग समुद्री बन्दरगाहों से जुड़े हुए थे।

➤उत्तरापथ ओडिशा के तटों , सिन्ध और राजस्थान से जुड़ा हुआ था । 

➤दक्षिणापथ वीरमपट्टिनम ( अरिकामेडु ) से प्रतिष्ठान के जरिये जुड़ा हुआ था ।


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