व्यापार - प्राचीन भारत में व्यापार Vyapar In Prachin bharat

व्यापार - प्राचीन भारत में व्यापार Vyapar In Prachin bharat

व्यापार :

➤कृषि क्षेत्रों ने खाद्यान्न और गन्ने का उत्पादन किया लेकिन वह नमक और मछली के लिए तटीय क्षेत्रों पर निर्भर थे । 

➤तटीय क्षेत्रों में काफी नमक और मछली का उत्पादन होता था लेकिन मुख्य आहार , चावल , धान की खेती के क्षेत्रों से लाया जाता था । 

➤पहाड़ी श्रृंखलाएं लकड़ी , मसालों आदि से समृद्ध थी लेकिन उन्हें खाद्यान्न और नमक के लिए कृषि क्षेत्रों और तटीय क्षेत्रों पर निर्भर रहना पड़ता था । 

➤इस प्रकार स्थानीय और अक्सर लंबी दूरी के स्थल और समुद्र पार के व्यापार संजाल विकसित हुए । 

➤स्थानीय व्यापार के संदर्भ में वस्तु विनिमय लेन - देन का सबसे आम तरीका था । 

➤वस्तु विनिमय की अधिकांश वस्तुएँ तत्काल उपयोग के लिए थी । 

➤नमक धान , मछली , दुग्ध उत्पाद , जड़े , हिरन का माँस , शहद और ताड़ी सुदूर दक्षिण में वस्तु विनिमय की नियमित वस्तुएँ थी । 

➤बहुत कम ही विलास की वस्तुएँ जैसे कि मोती , हाथी दाँत भी वस्तु विनिमय के रूप में दिखाई देते हैं । 

➤विभिनय दर स्थाई नहीं थी । 

➤धान और नमक केवल दो वस्तुएँ थीं जिनके लिए सुदूर दक्षिण की वस्तु विनिमय प्रणाली में एक निर्धारित विनिमय दर ज्ञात थी । 

➤विनिमय लाभ उन्मुख नहीं था । 

➤उपमहाद्वीप के अन्दर स्थल व्यापार मार्गों के व्यापक संजाल ने व्यापारियों के आवागमन को सुविधाजनक बनाया ।

➤पूरे भारत में चार प्रमुख मार्ग और उनके सहायक छोर्ट मार्ग अस्तित्व में थे -

1. एक मार्ग सातवाहन की राजधानी प्रतिष्ठान या पैठन से शुरू होकर तगार , नासिक , सेतव्या , बाणसभ्य , उज्जैनी और साँची से होता हुआ गंगा घाटी तक जाता था । 

➡️अन्त में यह उत्तर में कौशल की राजधानी श्रावस्ती तक पहुँचता था । 

2. एक अन्य मार्ग अंग राज्य ( भागलपुर क्षेत्र ) की राजधानी चम्पा से पश्चिम और उत्तर पश्चिम में गंधार राज्य में पुष्कलावती की तरफ जाता था । 

3. एक तीसरा मार्ग पूर्व में पाटलीपुत्र से शुरू होकर सिन्धु डेल्टा में पटल तक जाता था । 

पेरिप्लस काबुल के साथ भृगुकच्छ को जोड़ने वाले एक स्थल मार्ग का उल्लेख करता है जो पश्चिमी तट का एक प्रसिद्ध बन्दरगाह है । यह मार्ग 

4. काबुल से पुष्कलावती , तक्षशिला , पंजाब और गंगा की घाटी से होते हुए मालवा क्षेत्र को पार करके भृगुकच्छ तक जाता था । 

5. बौद्ध स्त्रोत गंगा घाटी से गोदावरी घाटी तक जाने वाले एक मार्ग का उल्लेख करते हैं । 

➡️इसे दक्षिणापथ के नाम से जाना जाता था । 

➡️दक्षिणी क्षेत्र व्यापार करते थे और इसमें शंख , हीरे मोती बहुमूल्य पत्थर और सोना शामिल था । 

➡️अच्छे किस्म के वस्त्रों का भी उत्तर और दक्षिण के के ब होता था । 

➡️उत्तरी काले पॉलिशदार मृद भांड , एक विशिष्ट प्रकार के शहरी बर्तन भी उत्तर भारत से सुदूर दक्षिण तक पहुँचे । 

➤जड़ी - बूटियाँ और मसालों जैसी वस्तुएँ जिसमें जटामांसी और मूलाबाथ्रम ( मरहम को तैयार करने के उपयोग में आने वाली जड़ी - बूटी ) शामिल थे , को जहाजों द्वारा पश्चिम में भेजा जाता था । 

➤दक्षिण भारत के विभिन्न भागों से बड़ी संख्या में आहत बीच लेन - देन सिक्के बरामद किये गए हैं जो उत्तर और दक्षिण के बीच तेज व्यापार की गवाही देते हैं ।

➤लम्बी दूरी के सफल व्यापार का लाभ ज्यादातर विलासिता वाली वस्तुओं में था और इसका आनन्द शासक व कुलीन वर्ग द्वारा किया जाता था । 

➤एशिया और यूरोप के बीच नियमित व्यापार संबंध दूसरी शताब्दी बी . सी . ई . में स्थापित किये गये थे । 

➤इस व्यापार में प्रमुख भागीदार , पश्चिम में रोमन साम्राज्य और पूर्व में चीन के हान साम्राज्य थे।

➤पश्चिम में रेशम की अत्यधिक माँग थी और इसका उत्पादन केवल चीन में होता था । 

➤यह रेशम मध्य एशिया के तकलामकान रेगिस्तान , पामिर पठार और ईरान के माध्यम से एक लम्बी यात्रा करके पश्चिम एशिया तक पहुंचता था । 

➤वहां से यह रोम के कुलीन वर्गों के हाथों में पहुँच जाता था।

➤इस सड़क को इतिहास में सिल्क रोड़ के नाम से जाना जाता था ।

➤सिल्क रोड़ एक लम्बा रास्ता था और व्यापारियों को विभिन्न खतरों से गुजरना पड़ता था । 

➤इस मार्ग के माध्यम से व्यापारियों द्वारा लाई गई वस्तुओं की उच्च कीमत होती थी । 

➤ईरान के शासकों ने मध्यस्थों के रूप में काम किया और इस व्यापार पर भारी टोल और सीमा शुल्क लगायें ।  

➤रोमन और प्रायद्वीप भारत के बीच सीधा व्यापार अरबों की मध्यस्थता के माध्यम से किया जाता था । 

➤अरबों ने भारत के साथ वाणिज्यिक संबंध स्थापित किये थे और सामान्य युग के शुरू होने से पहले समुद्री व्यापार को राजमार्ग बना लिया था । 

उन्होंने पूर्व - पश्चिम व्यापार में एक वांछनीय स्थिति प्राप्त कर ली थी । 

➤लाल सागर और अरब सागर के संगम पर ईडन से हवा की दिशा का अनुसरण करके भारतीय तट तक तेज और आसान तरीके से पहुँचा जा सकता था । 

रोमन द्वारा अपने वस्तु को भारत लाना -

➤तांबा , टिन , सीसा , पुखराज , चकमक पत्थर काँच ( मनके बनाने के लिए )।

➤कच्चा माल और तैयार उत्पाद जैसे कि उत्तम गुणवत्ता की शराब , उत्तम बुनावट के कपड़े , उत्कृष्ट गहने , सोने और चाँदी के सिक्के और विभिन्न प्रकार के उत्तम मिट्टी के बर्तन।

रोमन द्वारा भारत से वस्तु ले जाना -

➤मसाले और औषधीय जड़ी बूटियां, काली मिर्च , जटामांसी , मूलाबाथ्रम , सिनबार।

➤कीमती और अर्द्धकीमती पत्थर जैसे फिरोजा , सुलेमानी पत्थर , इन्द्रगोप , सूर्यकान्त , गोमेद , सीपियाँ , मोती।

➤हाथी दाँत , इमारती लकड़ी की वस्तुएँ जैसे आबनूस , चन्दन , सागोन , बाँस।

➤वस्त्र जैसे रंगीन कपड़े और मलमल, नील और लाख (रंजक पदार्थ)।

➡️रोमन भारतीय वस्तुओं का सोने में भुगतान करते थे । 

➤दक्षिण भारत का श्रीलंका और दक्षिण - पूर्व एशिया के साथ भी व्यापारिक सम्बन्ध थे । 

➤मसाले , कपूर और चंदन मुख्य वस्तुएँ थी जिनका व्यापार होता था ।


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