Vivah, Hindu Vivah ke uddeshy, Vivah ke Prakar) Prachin Bhartiy Itihas.

विवाह, विवाह के उद्देश्य, विवाह के प्रकार, हिंदु विवाह क्या होता है - प्राचीन भारतीय इतिहास (Vivah, Hindu Vivah ke uddeshy, Vivah ke Prakar) Prachin Bhartiy Itihas.


Table of Contents 👇🏻👇


Disclaimer : Hello बच्चों इस Post में को कुछ नकारात्मक शब्दो का प्रयोग किया गया है वो शिक्षा के उद्देश्य के लिए किया गया है, हमारा उद्देश्य आप पर नकारात्मक प्रभाव डालना नहीं है। धन्यवाद 🙏🙏


विवाह - प्राचीन भारतीय इतिहास 

विवाह :🔥

➤हिन्दू धर्म में विवाह संस्था को सामाजिक धार्मिक मान्यता का मजबूत आधार प्राप्त हैं । 

➤हिन्दू धर्म में विवाह को जीवन का आवश्यक अंग माना गया हैं । 

➤विवाह का शाब्दिक अर्थ ‘ वधु को वर के घर ले जाना ’ है ।

➤हिन्दू विवाह धार्मिक अनुष्ठानों के साथ अग्नि को साक्षी मानकर संपन्न होता हैं । 

➤हिन्दू विवाह जन्म जन्मातर का पवित्र अटूट बंधन माना जाता है , जिसको तोड़ना धार्मिक एवं सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोण वर्जित माना गया है । 

➤धार्मिक विधि विधान से अग्नि को साक्षी मानकर स्त्री को पत्नी बनाना तथा दोनों के संबंधों को सामाजिक - धार्मिक स्वीकृति मिलना हिन्दू विवाह कहलाता हैं ।

हिन्दू विवाह के उद्देश्य 🔥 - धर्म , प्रजा और रति।

1. हिन्दू विवाह का प्रधान उद्देश्य धर्म का पालन करना हैं । 

2. विवाह का दूसरा प्रमुख उद्देश्य संतान ( पुत्र ) उत्पत्ति है । 

3. विवाह का तृतीय उद्देश्य धर्मशास्त्रों में ' रति सुख ' बताया गया है । 

विवाह के प्रकार :🔥

➤हिन्दू धर्मशास्त्रकारों के अनुसार विवाह के 8 प्रकार है।

1. ब्राह्म विवाह :

➤ब्राह्म विवाह , विवाहों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है । 

➤इस विवाह में पिता अपनी पुत्री के लिए सुयोग्य वर तलास ( खोज ) कर विवाह करता था । 

2. दैव विवाह : 

➤दैव विवाह में पिता अपनी पुत्री को उस पुरोहित को दान में देता था , जो निर्धारित यज्ञ को सफलतापूर्वक संपन्न करा देता था । दे

➤वताओं के लिए यज्ञ के अवसर पर यह विवाह होता था , इस कारण इसे ' दैव विवाह ' कहा जाता है ।

3. आर्ष विवाह :

➤विवाह की इच्छा रखने वाले ऋषि ( पुरोहित ) द्वारा कन्या के पिता को गाय और बैल या गाय - बैल का जोड़ा दान देने पर संपन्न होता था । 

➤आर्ष विवाह कन्या मूल्य नहीं था , बल्कि धार्मिक प्रयोजनवश गाय - बैल दान में दिये जाने की परंपरा थी । 

➤चूँकि , यह विवाह ऋषियों से संबंधित होता था , इसीलिए ऐसा विवाह ' आर्ष विवाह ' कहलाता था ।

4. प्राजापत्य विवाह :

➤प्राजापत्य विवाह भी ब्राह्म विवाह के समान है । 

➤प्राजापत्य विवाह में कन्या का पिता नव दम्पत्ति ( वर- वधू ) को संबोधित करते हुए आदेश देता था- ' तुम दोनों मिलकर आजीवन धर्माचरण करो ।

➤ ' कन्या के पिता का यह आदेश ही ब्राह्म और प्रजापत्य विवाह में एक मात्र अंतर है । 

5. असुर विवाह :

➤ऐसा विवाह जिसमें कन्या अथवा उसके माता- पिता या संबंधी वर से धन लेकर विवाह करते थे , तब वह विवाह ' असुर विवाह ' कहलाता था । 

➤असुर विवाह में कन्या मूल्य प्राप्त किया जाता था । 

6. गान्धर्व विवाह :

➤जब कोई लड़का ( पुरूष ) - लड़की ( स्त्री ) एक दूसरे के प्रेम कामवासना में डूबकर संभोग क्रिया कर लेते थे और उसके बाद में विवाह कर लेते थे, तब ऐसे विवाह को गांधर्व विवाह की संज्ञा दी जाती थी । 

➤मनु ने लड़का लड़की के स्वेच्छा से कामवासना में लिप्त होने को ' गांधर्व विवाह ' में माना है । 

➤महाभारत और वात्स्यायन इसे ' सर्वोत्तम विवाह ' मानते हैं ।

➤दुष्यन्त और विवाह ' गांधर्व ' विवाह की श्रेणी में आता हैं।

7. राक्षस विवाह :

➤बलपूर्वक , छल कपट , युद्ध एवं संघर्ष के द्वारा कन्या का अपहरण करके जोर जबरदस्ती से किया गया विवाह , ' राक्षस विवाह ' कहलाता था । 

➤महाभारत में क्षत्रियों के लिए यह विवाह उत्तम बताया गया है । 

➤अर्जुन का सुभद्रा से तथा कृष्ण का रूक्मिणी से विवाह राक्षस विवाह के अंतर्गत आता है । 

➤इसी प्रकार पृथ्वीराज चौहान एवं संयोगिता का विवाह भी राक्षस विवाह की श्रेणी में आता है ।

8. पैशाच विवाह :

➤लड़की ( स्त्री ) की सहमति के बिना उसके साथ छल कपट से या अचेतन अवस्था में संभोग करने ( बलात्कार करने ) के बाद विवाह करना ‘ पैशाच विवाह ' कहलाता था । 

➤चूँकि बलात्कारी , बलात्कार या संभोग के बाद कन्या के साथ ससम्मान विवाह कर लेता था , इसीलिए धर्मशास्त्रकारों ने इसे विवाह की श्रेणी में स्थान दिया है , ताकि समाज में विकृति पैंदा न हो तथा में समाज में स्त्री के सम्मान की रक्षा भी हो सके ।

➤हिन्दू धर्मशास्त्रों में प्रथम चार प्रकार ब्राह्म , दैव , आर्ष , प्रजापत्य को धर्मानुसार श्रेष्ठ एवं असुर , , गांधर्व , राक्षस , पैशाच को अधार्मिक एवं निकृष्ट श्रेणी का माना गया हैं । 

अन्य विवाह :🔥

स्वयंवर विवाह ➡️ एक समारोह में कन्या स्वयं की इच्छा से वर का चयन करती है।

अनुलोम विवाह ➡️उच्च वर्ण का पुरुष तथा निम्न वर्ण की होती थी । 

प्रतिलोम विवाह ➡️उच्च वर्ण की कन्या तथा निम्न वर्ण का पुरूष होता था । 

अंतर्जात विवाह ➡️ एक ही गोत्र में विवाह करना।

बहिर्विवाह ➡️ किसी अन्य गोत्र में विवाह करना।

बहुपत्नी प्रथा ➡️ एक पुरुष का एक से अधिक स्त्री से विवाह करना।

बहुपतित्व ➡️ एक स्त्री का एक से अधिक पति होना।

विधवा विवाह


सहायता : अगर आप इस Post में कुछ सुझाव देना चाहते तो आप हमे Comment करके बता सकते है, हम जल्द से जल्द उसे ठीक करने की कोशिश करेंगे।


JOIN US NOW👇



Post a Comment

Previous Post Next Post