पुष्यमित्र शुंग तथा राज्यकाल - शुंग वंश, Pushyamitra Shung - Rajyakal - Shung Vansh Notes in Hindi

पुष्यमित्र शुंग तथा राज्यकाल - शुंग वंश, Pushyamitra Shung - Rajyakal - Shung Vansh Notes in Hindi 



पुष्यमित्र शुंग तथा राज्यकाल 

पुष्यमित्र शुंग : - 

➤शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र था जिसके राज्य काल के बारे में हमें पुराणों , हर्षचरित , पतञ्जलि के महाभाष्य , जैन लेखक मेरुतुंग की थैरावली ( जिसमें उज्जैन के राजाओं की वंशावली दी गई है ) कालीदास का मालविकाअग्निमित्र , धनदेव की अयोध्या अभिलेख , दिव्यावदान तथा हरिवंश इत्यादि से जानकारी मिलती है।

➤ ये राजा पारसीक थे जो मित्र या मिथिर ( सूर्यदेव ) के उपासक थे । 

➤परन्तु बाद में उन्होंने इस देश को ब्राह्मण वंश माना । 

➤दिव्यावदान नामक बौद्ध ग्रंथ के अन्तिम भाग ( 29 वां अध्याय ) में पुष्यमित्र को मौर्य कहा गया है । 

➤हर्षचरित में पुष्यमित्र को अर्नाय कहा है जिससे कुछ विद्यवानों ने इसके शुद्ध होने का संकेत दिया है परन्तु अनार्य शब्द उसके दुष्कर्म या स्वामी हत्या के कारण प्रयुक्त किया लगता है । 

➤परन्तु अब तक प्राप्त साक्ष्यों के अनुसार दुष्यमित्र ब्राह्मण था ।

➤अहिंसात्मक बौद्ध नीति को मानने वाले अशोक के दंशजो की नीति के कारण राजा अपने राज्य की सुरक्षा करने में सफल धर्म की अपेक्षा के कारण ही नहीं बुकी से तंग आ इस वंश का नाश करने के लिए शायद ब्राह्मणा न सेना में आना प्रारम्भ किया।

➤शायद पुष्यमित्र ने सेनापति बनते अधिकाधिक ब्राह्मणों को सेना में लिया ।

➤ इसी कारण शायद सेना राजा की हत्या के समय मौन रही । 

➤बृहद्रथ की हत्या के पीछे बौद्ध धर्म के विरुद्ध गैर बौद्ध मतावलम्बियों का सामुहिक विरोध प्रतीत होता है । 

➤कालीदास के मालविकाग्निमित्र में पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र को वैदिक कुल का बताया है । 

➤सुधाकर चट्टोपाध्याय इन को भारहुत अभिलेख में वर्णित बिम्बिका नदी से जोड़ते हैं । 

➤कुछ विद्वान इस कुल को बिम्बिसार से सम्बन्धित मानते हैं परन्तु इस के कोई प्रमाण हमें उपलब्ध नहीं है । 

➤बौद्धायन श्रौतसूत्र के अनुसार बैम्बिक कश्यप गोत्र के थे जो कि ब्राह्मणों का एक महत्त्वपूर्ण गोत्र है ।

➤ इसकी पुष्टि हरिवंश से होती है क्योंकि इस ग्रंथ में कलियुग में अश्वमेध करने वाले एक आदभिज्ज कश्यप ब्राह्मण सेनापति का उल्लेख है । 

➤जयसवाल इस सेनानी का समीकरण पुष्यमित्र से करते हैं उनके अनुसार औदभिज्ज का अर्थ है आकस्मिक रूप से उदय होने वाला । 

➤उनके अनुसार अपने राजा को पार कर राजा बनना उसके आकस्मिक उदय का द्योतक है । 

➤दूसरी ओर पुराण तथा हर्षचरित पुष्यमित्र को कश्यप या वैम्बिक न मान शुंग कहते हैं । 

➤यह शुंग कौन थे इस का उल्लेख वृहदआरण्यक उपनिषद तथा लाट्यायन श्रोतसूत्र में है ।

➤ शुंग ब्राह्मण थे। 

राज्यकाल : -

➤ येरुतुंग के अनुसार नंदों के बाद मौर्यों ने 108 वर्ष राज्य किया इसके बाद पुष्यमित्र ने 30 वर्ष राज्य किया । 

➤मत्स्य पुराण पुष्यमित्र का राज्य काल 36 वर्ष तथा वायु तथा ब्रह्माण्ड पुराण इसका काल 60 वर्ष बताते हैं । 

➤पारजीटर ( Pargiter ) का शुभ यश ई ० 187-5 पूर्व से 75-3 ई ० पूर्व ) मत है कि 60 वर्ष लिखना तो लेखक की गलती है वास्तव में यह 36 वर्ष ही है । 

➤पुराण मौर्या को 137 वर्ष दत 108 वर्ष मौर्य तथा 30 वर्ष देते है । 

➤जैन साक्ष्य अवन्ती के राज्य के अनुसार लिखे गए हैं उनके अनुसार शायद पुष्ट मंत्र है अन्तिम राजा के काल में बाविक ( de - facto ) राजा रहा हो जबकि वह अवन्ति का शासक तथा मौयों का सनापि सुधाकर चट्टापाध्याय के अनुसार 60 वर्ष का पुष्यमित्र का राज्य काल 24 वर्ष अधीनस्थ राजा तथा 36 वर्ष स्वतन्त्र पास के का में हो सकते है । 

➤उनके अनुसार जब पुष्यमित्र के अश्वमेघ यज्ञ का घोडा छोड़ा गया तो उसके साथ सेना का संचालन उसके त वसुमित्र का रहा था।

➤पुराण , हर्षचरित , मालविकाग्निमित्रम् तथा धन्द की अयोध्य अभिलेख इत्यादि सेनापति के रूप में ही पुष्यमित्र को वर्णित करते हैं । 

➤इन साक्ष्यों में उसके पुत्र अग्निमित्र का राजा कह रह यवनों से युद्ध युग पुराण ( गार्गी सहिता ) , महाभाष्य इत्यादि से पता चलता है कि यवन ने भारत के पूर्वी हिस्सा राजस्थान तक को रौंद डाला ।

➤पञ्जलि पुष्यमित्र के पुराहित थे तथा उन्होंने इस घटना का शायद आंखों देखा वर्णन किया हो सकता है क्योंकि उन्होंने इस घटना को अनद्यतन लंग लकार में वर्णित किया है जो कि भूत काल के लिए प्रयुक्त किया जाता है अर्थात परोक्ष रूप से घटी हो परन्तु यदि कोई देखना चाहे तो देख सकता है ।

➤ युग पुराण के गार्गी संहिता में भी वर्णन है कि यवना साकेल पाचाल तथा मथुरा पर आक्रमण किया उसके बाद ये पाटलीपुत्र ( कुसुमध्यज ) तक पहुँच गए । 

➤उनके आक्रमण के कारण अव्यवस्थ फैल गई । 

➤मालविकाग्निमित्रम के अनुसार पुष्यमित्र के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा घूमते हुए सिन्धु नदी के दक्षिणी तट ( सिन दक्षिणरावसि पर पहुँच गया जहां यवनों ने उसे पकड़ लिया । 

➤इस घोड़े के साथ गई सेना का सेनापति पुष्यमित्र का पोता वसुभित्र जिसन यवनों को पराजित कर घोड़ा छुड़वाया ।

➤हेमचन्द्र याधुरी भण्डारकर एवं काशीप्रसाद जयसवाल यवनों के नेता को डिमिट्रियस मानते है।

➤उत्तरपश्चिम गए सिक्क डिमिट्रियस द्वितीय के है अतः यह प्रदेश उसी ने जीता परन्तु उत्तरी भारत पर आक्रमण उसन नहीं किया जन्नुस ( यह मिनान्डर ( Menander ) ने जीता ।



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