Prachin Bhartiy Itihas ke Srot - Puratatvik tatha Sahityik Srot Notes in Hindi

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत - पुरातात्विक तथा साहित्यिक स्त्रोत Notes in Hindi


Table of Contents 👇

  1. प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत
  2. पुरातात्विक स्रोत -
      • अभिलेख, मुद्राएं, स्मारक, मुहरें, मूर्तियां
  3. साहित्यिक स्रोत -
    1. ब्राह्मण / वैदिक साहित्य -
      • वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक ग्रंथ, उपनिषद
      • वेदांग, स्मृतियां, महाकाव्य, पुराण
    2. बौद्ध साहित्य
    3. जैन साहित्य

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत :🔥

➤प्राचीन भारतीय इतिहास से तात्पर्य प्रारंभ से 1200 ई ० तक के काल के भारतीय इतिहास से है । 

➤इसकाल के प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण के लिए जिन तथ्यों और स्त्रोतों का उपयोग किया जाता है । 

➤उन्हें प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत कहते है ।

➤प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण के लिए स्रोतों का अभाव है , क्योंकि प्राचीन भारतीयों में इतिहास लेखन की समझ ही नहीं थी ।

➤प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत प्रचूर मात्रा में पुरातात्विक साक्ष्यों के रूप में उपलब्ध है । 

➤प्राचीन भारतीय धार्मिक साहित्य में तत्कालीन इतिहास एवं संस्कृति के साक्ष्य स्रोतों के रूप में उपलब्ध है ।

A. पुरातात्विक स्त्रोत :🔥

➤पुरातत्व उन भौतिक वस्तुओं का अध्ययन करता है , जिनका निर्माण और उपयोग मनुष्य ने किया है । 

➤अतः वे समस्त भौतिक वस्तुएँ जो अतीत में मनुष्य द्वारा निर्मित एवं उपयोग की गयी है , पुरातत्व की परिधि में आती है । 

➤वे सभी वस्तुएँ पुरातत्व के अंतर्गत आती है , पुरातात्विक स्रोत कहलाती है।

➤पुरातात्विक स्रोत सामग्री के अंतर्गत अभिलेख , मुद्राएँ , स्मारक भवन , मूर्तियाँ , तथा पुरातात्विक अवशेषों को रखा जाता है । 

1 अभिलेख :

➤अभिलेख , वह लेख होते है , जो किसी पत्थर ( चट्टान ) , धातु , लकड़ी या हड्डी पर खोदकर लिखें होते हैं । 

➤प्राचीन अभिलेख अनेक जैसे , स्तम्भों , शिलाओं , गुहाओं , मूर्तियों , प्रकारों , ताम्रपत्रों , मुद्राओं पर मिलते हैं । 

➤अभिलेखों के अध्ययन को ' पुरालेखशास्त्र ' कहा जाता है । 

➤देश में सर्वाधिक अभिलेख मैसूर ( कर्नाटक ) में सरंक्षित है । 

2 मुद्राएँ :

➤मुद्राएँ जारी करना किसी भी शासक की स्वतंत्र सत्ता का प्रतीक होता था । 

➤भारत में सबसे प्राचीन मुद्राएँ ' आहत ' मुद्राएँ है , जो लगभग पाँचवीं शताब्दी ई ० पू ० में प्रचलित थीं । 

➤मुद्राओं के अध्ययन को ' न्यूमिस्मेटिक्स ' ( मुद्राशास्त्र ) कहा जाता है । 

➤प्राचीन भारत में मुद्राएँ ताँबें , चाँदी , सोने , सीसे , पोटीन , मिट्टी की मिलती है । 

➤पुरातात्विक सामग्री में मुद्राओं का ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

➤206 ई ० पू ० - 300 ई ० तक का भारतीय इतिहास मुखतः मुद्राओं की सहायता से ही लिख गया है ।

➤हिन्द यूनानी शासकों का तो सम्पूर्ण इतिहास मुद्राओं के द्वारा ही लिखा गया है । 

➤शक क्षत्रप , इण्डो- बैक्ट्रियव तथा इण्डो- पर्शियन के इतिहास जानने के एकमात्र साधन सिक्के ही हैं । 

➤मुद्राओं से किसी भी शासक या साम्राज्य की आर्थिक स्थिति का पता चलता है । 

➤सोने की मुद्रा का किसी भी साम्राज्य में प्रचलन मजबूत आर्थिक स्थिति का प्रतीक होता माना जा सकता है और यह भी स्पष्ट है कि , आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर ही क्रमशः चाँदी व ताँबे अथवा मिश्रित धातु के सिक्कों का प्रचलन किया जाता होगा । 

➤मुद्राओं पर अंकित तिथि से किसी भी शासक या साम्राज्य की कालक्रम की जानकारी मिलती है , जिससे कालक्रम निर्धारण में मद्द मिलती है । , 

➤गुप्त शासक रामगुप्त और काच के बारे में जानकारी का स्रोत मुद्राएँ ही है । 

मुद्राओं से किसी भी शासक या साम्राज्य की विजय की जानकारी मिलती है । जोगलथम्बी मुद्राभाण्ड नहपान पर शातकर्णि की विजय और चंद्रगुप्त की चाँदी की मुद्राएँ शकों पर विजय की जानकारी देती हैं । , 

➤मुद्राओं से साम्राज्य की सीमा की भी जानकारी मिलती है । 

3 स्मारक :

➤स्मारक से तात्पर्य , प्राचीन भवन , मृतक स्मृति भवन और क्षत्रिय , धार्मिक भवन आदि आते है । 

➤हड़प्पा , मोहनजोदड़ो , तक्षशिला , नालंदा , रोपड़ , हस्तिनापुर , बनावली आदि के स्मारकों से तत्कालीन वास्तुकला नगर नियोजन , सामाजिक स्थिति , धार्मिक स्थिति एवं साँस्कृतिक स्थिति का ज्ञान होता है । 

➤स्तूप , चैत्य , विहार , गुफाओं एवं मंदिरों से तत्कालीन धार्मिक एवं साँस्कृतिक स्थिति का ज्ञान होता है । 

➤स्मारकों से कला के विकास , काल निर्धारण , कला में प्रयुक्त सामग्री , स्तूप , चैत्य , विहार एवं मंदिरों में चित्रित और अंकित मूर्तियों की वेशभूषा , अलंकरणों एवं अंकनों से तत्कालीन सामाजिक स्थिति , धार्मिक स्थिति एवं साँस्कृतिक स्थिति का ज्ञान तो होता ही है , वैचारिक धारणा का भी पता चलता है । 

➤विदेशी स्मारकों से भी भारतीय इतिहास पर प्रकाश पड़ता है । 

➤कम्बोडिया का अंगकोरबाट मंदिर , जावा का बोरोबुदुर मंदिर तथा मलाया व वाली द्वीप से प्राप्त अनेक प्रतिमा , बोर्नियों में मकरान से प्राप्त विष्णु की मूर्ति से ज्ञात होता है कि , वहाँ पर भारतीय धर्म और संस्कृति के प्रसार था तथा भारतीय धर्म और संस्कृति के बारे में ये महत्वपूर्ण सूचनाएँ देते है । 

4 मुहरें :

➤मुहरें भी प्राचीन भारतीय इतिहास के मुख्य स्त्रोंतों में आती हैं । 

➤सिन्धु घाटी सभ्यता से लगभग 2000 से भी अधिक मुहरें मिली हैं , जिनसे तत्कालीन जलवायु , पशु जगत् , भाषा , धर्म, आर्थिक स्थिति का ज्ञान होता है । 

➤बसाढ़ ( बैशाली ) से 274 मुहरों से चौथी शताब्दी ई ० में एक व्यापारिक श्रेणी की जानकारी मिलती है । 

➤मुहरें तत्कालीन आर्थिक एवं प्रशासनिक कार्य व्यवहार की जानकारी देती है । 

5 मूर्तियाँ :

➤ मूर्तियों से धार्मिक अवस्था एवं कला के विकास के बारे में जानकारी मिलती है । 

➤भारतीय इतिहास की सर्वप्रथम मूर्ति बेलन घाटी से बनी हड्डी की मातृदेवी की मूर्ति मिली है , जो उच्च पुरापाषाण कालीन ( लगभग 35000 ई ० पू ० ) है । 

➤सिन्धु घाटी से पत्थर , टैराकोट एवं धातु की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं । 

➤कुषाण कालीन मूतियों से गांधार कला पर विशेष प्रकाश पड़ता है ।

➤ गुप्तकालीन मूतियाँ अपने काल की कलात्मकता का बखान करती है । 

➤मौर्यकालीन लोक कला की यक्ष यक्षणियाँ विशेष उल्लेखनीय है | 

➤मूर्तियाँ कला एवं संस्कृति के विकास की जानकारी देने के साथ ही , प्राचीन भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण स्रोत भी है।

B. साहित्यिक स्रोत :🔥

➤वे स्रोत है , जो साहित्य अर्थात् पुस्तकों के माध्यम से प्राप्त होती है । 

➤यह साहित्य धार्मिक , लौकिक एवं विदेशी लेखकों की लेखनी से प्राप्त है । 2.3.2 2.3.2.

1 ब्राह्मण अथवा वैदिक साहित्य :🔥

➤वैदिक साहित्य भारतीय विद्वानों की अद्भुत सृजनशीलता का परिचायक है । 

➤वैदिक साहित्य का सृजन लगभग 1500-200 ई ० किया गया । 

➤वैदिक साहित्य के अंतर्गत वेद , ब्राह्मण ग्रंथ , उपनिषद , आरण्यक और सूत्र साहित्य आता हैं ।

(i). वेद :

वेद संख्या में चार हैं - ऋग्वेद - सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद है । 

➤(a).ऋग्वेद की रचना 1500-1000 ई . पू . के मध्य हुई । ऋग्वेद में 10 मण्डल , 1028 सूक्त तथा 10,580 ऋचाएँ हैं । ऋग्वेद के 2-9 तक के मंडल प्राचीन तथा 1 और 10 वाँ मण्डल नवीन हैं । ऋग्वेद से प्राचीन आर्यों के सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक जीवन की विस्तृत जानकारी मिलती है ।

➤(b). सामवेद में मंत्र यज्ञों में देवताओं की स्तुति करते हुए गाये जाते थे । सामवेद में 1549 ऋचाएँ हैं । सामवेद 75 ऋचाएँ ही मौलिक है , शेष ऋग्वेद से ली गई हैं । 

➤(c). यजुर्वेद - यजुः का अर्थ है , यज्ञ । यजुर्वेद में यज्ञों को करने की विधियाँ बतायी गयी है ।

➤(d). अथर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी , इसीलिए इसे ' अथर्ववेद ' कहते हैं । इसकी रचना लगभग 800 ई ० पू ० में हुई । ' अथर्ववेद ' में 20 मण्डल , 731 सूक्त तथा 5849 ऋचाएँ हैं । ' अथर्ववेद ' में 1200 ऋचाएँ ऋग्वेद से ली गई हैं । ' अथर्ववेद ' से उत्तर वैदिक कालीन भारत की पारिवारिक , सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन की विस्तृत जानकारी मिलती है । 

(ii). ब्राह्मण ग्रंथ :

➤ब्राह्मण ग्रंथों की रचना हमारे ऋषियों ने वैदिक मंत्रों के अर्थ बताने के लिए की गयी थी ।

➤ ऋग्वेद से ऐतरेय और कौषीतकी ब्राह्मण , सामवेद से ताण्डस , जैमनीय ब्राह्मण , यजुर्वेद से शतपथ ब्राह्मण , अथर्ववेद से गोपथ ब्राह्मण संबंधित हैं ।

(iii). आरण्यक ग्रंथ :

➤आरण्यक शब्द की उत्पत्ति ' अरण्य ' से हुई है , जिसका अर्थ ' वन ' होता है । 

➤आरण्यक ऐसे ग्रंथों को कहा जाता है , जिनका अध्ययन वन में किया जा सके । 

➤इसमें 7 ग्रंथ आते हैं - ऐतरेय , शांखायन् तैत्तरीय , मैत्रायणी , याध्यन्दिन एवं तल्वकार आरण्यक ।

(iv). उपनिषद :

➤उपनिषद का अर्थ है गुरु के समीप बैठकर ज्ञान विद्या ग्रहण करना।

➤उपनिषदों की संख्या 108 ते हैं । 

➤इनमें बारह उपनिषद प्रमुख है , ईशावस्य , केन , कठ , प्रश्न , मुण्डक , माण्डूक , ऐतरेय , तैत्तरीय , श्वेताश्वर , छान्दोग्य , वृहदारण्यक , कौशीतकी । 

➤उपनिषदों का रचना काल 800-500 ई ० पू ० माना गया है ।

(v). वेदांग :

➤वेदांग की रचना वेदों के अर्थ और विषय को समझने के लिए की गई थी , इसलिए इन्हें ' वेदांग ' कहते हैं ।

➤ छः वेदांग शिक्षा , कल्प , व्याकरण , निरूक्त , छंद , ज्योतिष है । 

(vi). स्मृतियाँ :

➤स्मृतियाँ वैदिक आर्यों के कानून संबंधी ग्रंथ है । 

➤वैदिक आर्यों के दैनिक जीवन के विषय में नियम व उपनियम आदि का वर्णन है । 

➤मनु एवं याज्ञवल्क्य स्मृति प्रमुख है । 

(vii). महाकाव्य :

➤महाकाव्यों के अंर्तगत रामायण और महाभारत आते हैं । 

➤रामायण के रचयिता बाल्मीकी हैं इसमें सातकाण्ड है । 

➤महर्षि व्यास कृत महाभारत मूलरूप से भरत वंश के दो वंशजों कौरव और पाण्डवों के युद्ध का वर्णन है ।

➤ महाभारत में एक लाख श्लोक है । इसीलिए इसे ' शतसाहस्री संहिता ' कहते है । 

(viii). पुराण :

➤ पुराण का शाब्दिक अर्थ ' प्राचीन ' है ।

➤ पुराण प्राचीन धर्म , संस्कृति एवं राजवंशो के बारे में विस्तृत सूचना देते है । 

➤पुराणों की संख्या 18 है , जिनमें ब्रह्म , मत्स्य , विष्णु , भागवत , मार्कण्डेय , गरूड़ , शिव , अग्नि और ब्रह्माण्ड पुराण ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । 

➤पुराणों का वर्तमान रूप सम्भवतः तीसरी और चौथी शताब्दी ई ० में आया ।

2. बौद्ध साहित्य :🔥

➤बौद्ध साहित्य से धार्मिक , सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं पर व्यापक जानकारी प्राप्त होती है ।

बौद्ध साहित्य की प्रमुख रचनाएँ है , 

(a).विनयपिटक - विनय पिटक में बौद्ध भिक्षुओं भिक्षुणियों के आचरण संबंधित नियमों का वर्णन मिलता हैं । 

(b).सुत्तपिटक - महात्मा बुद्ध के उपदेशों का सार संग्रहित हैं । 

(c).अभिधम्मपिटक - इसमें महात्मा बुद्ध के उपदेशों की दार्षनिक रूप में व्याख्या हैं । 

तीनों पिटक ‘ पाली ’ भाषा में लिखे गये है । 

➤जातक जातक कथाओं में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों का विवरण है । अभी 550 जातक कथाएँ उपलब्ध है । 

➤ये जातक 500 - 200 ई ० पू ० की धार्मिक , सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर बहुमूल्य प्रकाश डालती हैं । 

➤मिलिन्दपन्हों में यूनानी राजा मिनांडर और बौद्ध भिक्षु नागसेन का दार्शनिक वार्तालाप है । 

➤महावंश एवं दीपवंश महावंश एवं दीपवंश श्रीलंका की रचनाएँ है । इसमें मौर्यकालीन राजनीतिक एवं साँस्कृतिक पहलुओं पर व्यापक जानकारी प्रदान करती है । 

3. जैन साहित्य :🔥

➤जैन साहित्य से धार्मिक , सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक एवं साँस्कृतिक पहलुओं पर व्यापक जानकारी प्राप्त होती है । 

➤आगम साहित्य में 12 अंग , 12 उपांग , 10 प्रकीर्ण , 6 छंदसूत्र , नन्दिसूत्र , अनुयोगद्वार और मूल सूत्र सम्मिलित हैं । इसकी रचना 400 ई ० पू ० से 600 ई . के मध्य हुई । 

➤ आचारांग सूत्र में जैन भिक्षुओं के आचरण और नियमों का वर्णन है ।

➤ भगवती सूत्र महावीर स्वामी के जीवन के विषय में तथा महाजनपदों का विवरण है । 

➤औपपातिक सूत्र और आवश्यक सूत्र में अजातशत्रु के धार्मिक विचारों का विवरण मिलता हैं।

➤भद्रबाहु - चरित्र में चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यकाल की घटनाओं का वर्णन मिलता है । 

➤जैन धर्म ग्रंथों के टीकाकारों की टीकाएँ धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है । 


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