अरब आक्रमण - चाचनामा का परिचय तथा वर्णन - सिंध पर विजय - प्रमुख अभियान - अरब प्रशासन - उपलब्धियां - सिंध पर विजय बिना परिणाम के नोट्स इन हिंदी

अरब आक्रमण - चाचनामा का परिचय तथा वर्णन - सिंध पर विजय - प्रमुख अभियान - अरब प्रशासन - उपलब्धियां - सिंध पर विजय बिना परिणाम के नोट्स इन हिंदी

अरब आक्रमण - मोहम्मद बिन कासिम

अरब आक्रमण : 🔥

➤इस्लाम धर्म की स्थापना 7 वीं शताब्दी में मोहम्मद द्वारा की गई , जो मक्का का एक अरबी व्यापारी था । 
➤उस समय , अरब के क्षेत्र पर अनेक लड़ाकू बेदूई ( Bedouin ) जनजातियों का निवास था जो प्रतिमा पूजक धर्मों को मानते थे और अनेक देवी - देवताओं की पूजा करते थे । 
➤वे निरंतर एक - दूसरे के साथ आर्थिक अथवा धार्मिक मुद्दों पर युद्ध करते रहते थे ।
➤ लेकिन मोहम्मद ने इन अरबी जनजातियों को अपनी एक ईश्वरवादी शिक्षाओं से एकीकृत किया । 
➤संभवतः यह मोहम्मद का अरब में सबसे बड़ा योगदान है । 
➤एकता लाने के साथ ही , उनके नए धर्म ने भावी मुस्लिम राज्यों की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों को भी अत्यधिक प्रभावित किया । 
➤उनकी मृत्यु पश्चात् , अरबी प्रायद्वीप के भीतर और उसके बाहर मुस्लिम राज्य व्यवस्था का तीव्र विस्तार रसूदीन और उम्मयद खलीफाओं के अंतर्गत हुआ । 
➤विस्तृत साम्राज्य मध्य एशिया से लेकर मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका से लेकर अटलांटिक महासागर तक फैल गया ।
➤ कुछ विद्वानों का मत है कि अरबी प्रायद्वीप में एक राज्य का राजनीतिक गठन और धार्मिक एकता तथा सैन्य लाभबंदी पूर्व - आधुनिक काल में सबसे बड़े साम्राज्य की स्थापना के सबसे महत्त्वपूर्ण कारण थे ।
➤ इस साम्राज्य का गठन इस्लामिक खलीफा द्वारा लगभग 1.3 करोड़ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में किया गया था । 
➤अपने धर्म के रूप में इस्लाम और अपने नए साम्राज्य के रूप में लूट के साथ अरबी विविध प्रकार के व्यक्तियों के बीच रहे जो भिन्न - भिन्न नस्लों के थे । 
➤उनके बीच उन्होंने विजेताओं के रूप में एक अल्पसंख्यक शासन का गठन किया । 
➤लेकिन युद्धों के क्रमिक रूप से अंत और आर्थिक जीवन के विकास ने प्रशासकों और व्यापारियों के एक नए शासक वर्ग को उत्पन्न किया जो भिन्न नस्लों , भाषाओं और जातीयता के थे । 
➤इस तरीके से मुस्लिम जनसंख्या अरबी प्रायद्वीप में और उसके आस - पास फैलती रही ।
➤ भारतीय उपमहाद्वीप में सिंध पर विजय मुस्लिम जगत द्वारा इस उद्यम का एक विस्तार था । 

चचनामा ग्रंथ द्वारा अरब आक्रमण को जानना :🔥

➤चचनामा एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसे सिंध पर अरब विजय की विस्तृत जानकारी प्रदान करने का श्रेय दिया जा सकता है । 
➤चचनामा में 680-718 सी . ई . तक का सिंध के इतिहास का विवरण है । 
➤व्युत्पत्ति के रूप से चचनामा का अर्थ है " चच की कहानी " । 
➤वह सिंध के एक हिंदू ब्राह्मण शासक थे ।
➤ यह पुस्तक एक फारसी ग्रंथ है जिसे उच्च शहर में लिखा गया था , जो उस काल में सिंध की राजनीतिक राजधानी था ।
➤ वर्तमान में यह पाकिस्तान के करांची के बंदरगाह शहर से लगभग 70 किलोमीटर उत्तर में स्थित देखा जा सकता है । 
➤मुस्लिम भारत के एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत के रूप में चचनामा को उतना महत्त्व नहीं मिला जितना मिलना चाहिए था । 
➤इसके कुछ भाग का अंग्रेज़ी में ' इलियट और डॉसन द्वारा अनुवाद किया गया था और फारसी से अंग्रेज़ी में पूर्ण अनुवाद 1900 में मिर्ज़ा कालिशबेग द्वारा किया गया था जो पहले सिंधी उपन्यासकार । 
➤इस फ़ारसी पुस्तक का पहला और एकमात्र संस्करण 1939 में आया । 
➤चचनामा को पर्याप्त महत्त्व नहीं दिया गया क्योंकि अधिकांश इतिहासकारों , जैसे कि औपनिवेशिक और राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने इसे भारतीय उपमहाद्वीप में आरंभिक रूप से इस्लाम के आने के सिर्फ एक वृत्तांत के रूप में देखा है । 
➤लेकिन अली कूफ़ी का यह दावा है कि चचनामा 8 वीं शताब्दी की एक अरबी पुस्तक का अनुवाद है जो यह दर्शाता है कि इस्लाम के आने के अतिरिक्त यह अन्य प्रकार की जानकारी का भी भंडार हो सकता है ।
➤ वास्तव में , यह पुस्तक वाकई अधिक जानकारी प्रदान करती है । 
➤योहानन फ्राइडमेन , मनन अहमद आसिफ इत्यादि जैसे विद्वान जिन्होंने इसे पढ़ा और इसका विश्लेषण किया है , तर्क करते हैं कि इसमें विविध प्रकार की व्यापक जानकारी है और समस्त उपलब्ध आंकड़ों को वर्गीकृत और विश्लेषित करने के लिए कोई क्रमबद्ध प्रयास नहीं किए गए हैं । 
➤इसके विस्तृत परीक्षण के बाद उन्होंने प्रमाणित किया कि इसमें सिंध के इतिहास , उसकी सरकार और राजक्रांति की प्रासंगिक जानकारी है । 
➤इसलिए , जिन विद्वानों ने यह पुस्तक पढ़ी है वे इस मध्यकालीन स्रोत को समग्रता से पढ़ने और समझने की आवश्यकता को समझते हैं और इसे सिर्फ आरंभिक इस्लाम के आने और सिंध पर उसकी विजय पर एक पुस्तक के रूप में नहीं देखते हैं । 

चचनामा का वर्णन / वृत्तांत : 🔥

➤फ्राइडमैन और अहमद आसिफ जैसे इतिहासकारों ने इसे सिर्फ सिंध विजय के इतिहास के रूप में देखे जाने के मत का खंडन किया है । 
➤इसमें चच बिन सिलाइज नामक एक ब्राह्मण की सिंध के राजा के मुख्यमंत्री होने से लेकर राजा की मृत्यु के पश्चात् रानी की सहायता से अपने सत्ता में आने की यात्रा के वर्णन हैं । 
➤एक राजा के रूप में , चच ने किलों पर कब्ज़ा करके , संधियों पर हस्ताक्षर करके और हिंदू तथा बौद्ध जनता दोनों के दिल जीतकर सिंध के एक सफल राज्य की स्थापना की थी । 
➤यह उनकी आक्रामक , रक्षात्मक और उदार नीतियों का मिश्रण था जिसके कारण उनके लिए लंबे समय तक सिंध पर राज्य करना संभव हो पाया था ।
➤ लेकिन एक अच्छे शासक के रूप में उनकी सफलता उनके दो पुत्रों दहर और दहरसिया के बीच उत्तराधिकार के युद्ध के कारण खत्म हो गई ।  
➤राजा दहर की सेनाएं सिंधु नदी के तटों पर हुए युद्ध में हार गई थीं । 
➤सिंध के राजा को हराने के बाद , कासिम ने आरोर , ब्राह्मनाबाद और मुलतान के क्षेत्रों पर भी कब्ज़ा कर लिया । 
➤इस प्रकार , दहर से अरब विद्रोहियों और समुद्री डाकुओं का समर्थन करने का बदला लिया गया । 
➤अंतिम वृत्तांत में कासिम के पतन पर विस्तार से चर्चा की गई है । 
➤पुस्तक के अंतिम भाग में , अच्छे शासन , अच्छे सलाहकार मंडल और एक सफल राज्य व्यवस्था के निर्माण के लिए आवश्यक राजनीतिक सिद्धांत की बात की गई है ।
➤ इस भाग में चच और कासिम दोनों के सैन्य अभियानों की चर्चा की गई है । 

सिंध पर विजय :🔥

➤सिंध का क्षेत्र आज के पाकिस्तान के दक्षिण - पूर्वी क्षेत्र में स्थित है । 
➤भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट के इस क्षेत्र का लंबा इतिहास रहा है ।
➤ प्राचीन काल से ही यह वाणिज्य और व्यापार का केंद्र रहा है । 
➤अरब व्यापारियों के अपने भारतीय और दक्षिण - पूर्वी एशियाई प्रतिपक्षियों के साथ सक्रिय व्यापारिक संबंध थे । 
➤उन्हें भारत के पश्चिमी तट के सागर मार्ग की जानकारी थी । 
➤वास्तव में ये व्यापारी फारस की खाड़ी मे सिराफ़ और होरमूज़ से सिंध के मुख तक और फिर सपेरा और कैम्बे से होते हुए आगे कालीकट तक मालाबा तट के अन्य बंदरगाहों पर आते थे । 
➤अपने साथ भारतीय संपदा की खबरें और विलासिता की वस्तुएँ जैसे सोना , हीरा , रत्नजड़ित मूर्तियाँ आदि अरब ले जाते थे । 
➤क्योंकि भारत लंबे समय से अपनी संपदा के लिए प्रसिद्ध था , अतः अरब उस पर विजय पाना चाहते थे । 
➤अपने ' इस्लामीकरण ' के बाद , उनके अंदर धर्म प्रचार की भावना थी जिसके कारण वे मध्य - पूर्व यूरोप , अफ्रीका और एशिया के अनेक क्षेत्रों में फैल गए । 
➤अरबों की भारतीय महाद्वीप में सिंध के तटीय शहरों में घुसपैठ 636 सी . ई . से ही खलीफा उमर के शासनकाल में आरंभ हो गई थी , जो पैगंबर के दूसरे उत्तराधिकारी थे ।
➤ लूट के अभियान 637.ई. में थाणे ( बॉम्बे के निकट ) में हुआ था , लंबे समय तक जारी रहे । 
➤लेकिन ये अभियान सिर्फ लूटपाट के लिए आक्रमण थे , विजय नहीं । 
➤क्रमबद्ध अरब विजय 712ई . में उम्मयद - खलीफा अल - वालिद के शासन काल में ही हुई थी । 
➤तभी सिंध को मुस्लिम साम्राज्य में सम्मिलित किया गया था । 
➤भारतीय दौलत को पाने की कामना के साथ ही सिंध की विजय का कारण अरबों की इस्लाम के प्रसार की इच्छा भी थी । 
➤तात्कालिक कारण समुद्री डाकू थे जिन्होंने दाबोल / देबुल अथवा कराची के तट के निकट कुछ अरब जहाजों को लूट लिया था ।
➤ इन जहाजों में लंका के राजा द्वारा बगदाद के खलीफा और इराक के नियंत्रक / शासक अल - हज्जाज के लिए भी उपहार ले जाए जा रहे थे ।
➤जहाज को समुद्री डाकुओं द्वारा सिंधु नदी के मुहाने पर लूट लिया गया और अरबों को दाबोल के बंदरगाह पर नज़रबंद कर लिया गया ।
➤ सिंध के राजा दहर से इस अपमान की क्षतिपूर्ति के लिए प्रत्यर्पण और अपराधियों को दंडित करने की माँग की गई ।
➤बगदाद ने उन पर समुद्री डाकुओं का संरक्षण करने का आरोप लगाया । 
➤हज्जाज ने खलीफा वालिद से सिंध पर हमला करने की अनुमति ले ली ।
➤राजा के विरुद्ध एक के बाद एक तीन सैन्य हमले किए गए ।
➤देबाल में मोहम्मद बिन कासिम द्वारा तीसरे हमले में दहर की हार हुई और वह मारा गया ।
➤ निरून , रेवाड़ , ब्राह्मनाबाद , अलोर और मुलतान के सभी पड़ोसी शहरों पर कब्ज़ा कर लिया गया ।
➤ इस प्रकार , सिंध राज्य पर अरबों द्वारा 712. ई . में अंततः विजय प्राप्त कर ली गई ।

मोहम्मद बिन कासिम एक विजेता और उसके अभियान : 🔥

➤वह एक 17 वर्ष का उम्मैयद सेनापति था जिसने सिंध की विजय का नेतृत्व किया था ।
➤ यह किशोर विजेता सिकंदर के पदचिन्हों पर चलते हुए सिंधु घाटी में एक नए धर्म और एक नई संस्कृति को लेकर आया । 
➤चचनामा में वर्ष 209-711 ई. के बीच इनका उल्लेख है । 
➤जन इराक के शासक हज्जाज ने सिंध के विरुद्ध अभियान का नेतृत्व इसे सौंपा था । 
➤कासिम हज्जाज का भतीजा था और एक कुशल सेनापति होने के कारण इसके चाचा द्वारा इसे मकरान के सीमांत जिले का सरदार बनाया गया था ।
➤ उसे सिंध की दिशा में विजय करने का अभियान सौंपा गया था । 
➤सिंध के विरुद्ध कासिम के अभियान को बहुत सावधानी से तैयार किया गया था । 
➤इसकी सेवा का आधार सीरिया के गुंड के 6000 सैनिक और विभिन्न अन्य सैन्य दल भी थे । 
➤पूर्व की ओर के अभियान की योजना का आधार शीराज था ।
➤ हज्जाज के आदेश से , कासिम वहां महीनों तक अपने सैन्य दलों पर केंद्रित करते हुए रहा । 
➤यहां से वह मोहम्मद इन्न हारून के साथ ( जो इस कूच के दौरान मर गया था और जो सीमांत जिले के नेतृत्व में उसका पूर्ववर्ती था ) पूरब की ओर बढ़ा । 
➤ 8 वीं शताब्दी में सिंधु घाटी पर दहर नामक राजा का शासन था । वह राजा चच का पुत्र और उत्तराधिकारी था । 
➤अरब सेनाएं इस घाटी पर विजय पाना चाहती थीं । 
➤ चच का विशाल साम्राज्य था जो मकरान , कश्मीर आदि तक विस्तारित था । 
➤लेकिन उनके पुत्र द्वारा शासित राज्य इतना विशाल नहीं था और इसमें सिर्फ सिंधु का निचला क्षेत्र था जिसमें ब्राह्मनाबाद , आरोर , देबाल इत्यादि जैसे शहर सम्मिलित थे । 
➤चच द्वारा स्थापित विशाल साम्राज्य सिर्फ उनके जीवनकाल तक ही रहा था । 
➤ यह राजा दहर के अधीन , विशेष रूप से अरब हमलों के बाद , एक छोटे राज्य तक ही सीमित रह गया था । 
➤एक सैन्य प्रमुख के रूप में , कासिम सिंधु घाटी तक देबाल शहर के थलीय क्षेत्र को घेरकर पहुंच गया था । 
➤अतिरिक्त युद्ध सामग्री उस तक समुद्र के रास्ते से पहुंची थी ।
➤देबाल सिंधु नदी के मुहाने पर एक बड़ा शहर था जिस पर राजा दहर के प्रतिनिधि ( lieutenant ) का शासन था ।
➤ इसके बाद सेनाएं ऊपरी सिंधु घाटी की ओर बढ़ गईं । 
➤वे नीरून ( पाकिस्तान में आज के हैदराबाद के निकट ) पहुंच गई और उसने शांतिपूर्ण तरीके से आत्मसमर्पण कर दिया । 
➤इसके बाद अनेक अन्य क्षेत्रों जैसे साड्सान , सुवान्द्री बस्मद आदि पर कब्ज़ा कर लिया गया था । 
➤अंत में , कासिम सिंधु नदी को पार करके स्वयं दहर से निपटना चाहता था । 
➤अपनी तरफ से दहर और उसकी सशक्त सेना ने कई दिनों तक वीरतापूर्वक हमलावरों से युद्ध किया । 
➤लेकिन उसे अरब सेनाओं द्वारा बुरी तरह हराया और मार दिया गया । 
➤इसके बाद ब्राह्मनाबाद की राजधानी और अलोर पर भी कब्ज़ा कर लिया गया । 
➤आगे उत्तर में सिंधु के पूर्वीतट की ओर बढ़ते हुए कासिम का लक्ष्य मुलतान पर विजय करना था । 
➤हज्जाज ने कासिम को अंतिम लक्ष्य के रूप में मुलतान पर कब्ज़ा करने का निर्देश दिया था ।
➤ सिंध में एक के बाद एक श्रृंखलाबद्ध विजय प्राप्त करने के बाद कासिम की इस विजय से आम जनता का इस्लाम में सामूहिक रूप से धर्म परिवर्तन नहीं हुआ । 
➤ अरबों की देबाल और मुलतान की विजयों के बाद जनसंहार हुआ था लेकिन एलोर , नीरून , सुराष्ट , सावन्ड्री इत्यादि के उदाहरण थे जहाँ विजेता और पराजितों के बीच बातचीत और समझौते हुए थे । 
➤एलोर में कासिम द्वारा व्यवहार में लाए जाने वाले उदारता और धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों ने विजयी इस्लाम के भारत के धर्म और संस्कृति के साथ सह - अस्तित्व के लिए राह बनाई । 
➤कासिम ने पराजित जनता के प्रति उदारता की नीति अपनायी ।
➤ उसने ब्राह्मणों और बौद्ध जनों , दोनों को , धार्मिक स्वतंत्रता की अनुमति दी । 
➤उसने दोनों धर्मों के पुरोहितों के विशेषाधिकारों को संरक्षित रखा ।
➤ यह कासिम द्वारा ब्राह्मणों को विशेषाधिकार देने की भारतीय सामाजिक परंपरा के समर्थन को दर्शाता है । 
➤ वह ब्राह्मणों को ' भले और भरोसेमंद ' जन कहता था और ब्राह्मनाबाद की घेराबंदी के बाद उन्हें उन्हीं पदों पर पुनः नियुक्त कर दिया गया जिनपर वे हिंदू राजवंश में थे । 
➤इन पदों को उसके द्वारा वंशागत बना दिया गया । 
➤आम जनता को भी अपनी मर्जी से पूजा - पाठ करने की अनुमति थी , पर उन्हें अरबों को वही कर देने होते थे जो वे राजा दहर को दिया करते थे । 
➤उसने सिंध की सामाजिक व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप नहीं किया और उनके क्षेत्रों में शांति बनाए रखने के लिए सहमत हो गया था ।
➤ ये नीति कासिम द्वारा हज्जाज के निर्देशों के तहत अपनायी गई थी , जो जनता को धार्मिक स्वतंत्रता देने का पक्षधर था ।
➤कासिम ने ब्राह्मनाबाद को व्यवस्थित और शांतिपूर्ण स्थिति में छोड़ा था और उत्तर की ओर एलोर चला गया था।
➤लचीलेपन और उदारता की यह नीति विजय के आरंभिक काल में इस्लाम की विशेषता थी और उसके समर्थक इसे अपनाते थे । 

मोहम्मद बिन कासिम की मृत्यु :🔥

➤इस वीर सेना प्रमुख का अंत दुखद था । 
➤उसके अंत को लेकर भिन्न विवरण हैं । 
पहला मत -
➤चचनामा उसकी मृत्यु का कारण राजा दहर की सूर्यदेवी और पलमलदेवी नामक दो कुंआरी पुत्रियों को मानते हैं जिन्हें उनके पिता की मृत्यु के बाद युद्धबंदी के रूप में खलीफा वालिद के पास भेज दिया गया था । 
➤अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने कासिम पर अपने साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया । 
➤इससे खलीफा क्रोधित हो गया और उसने कासिम को तत्काल मार देने का आदेश दिया । 
➤उसने आदेश दिया कि वह जहां कहीं भी हो , कासिम को गाय की खाल में सिलकर खलीफा के पास भेजा जाए । 
➤उसकी मृत्यु के बाद जब उसका शरीर दोनों पुत्रियों को दिखाया गया तो उन्होंने यह सच बताया कि उन्होंने ऐसा कासिम से अपने पिता को मारने और परिवार को नष्ट करने का बदला लेने के लिए किया था । 
➤इसके बाद उन्हें भी खलीफा द्वारा मृत्युदंड दिया गया ।  
दूसरा मत -
➤बालाधुरी की एक अन्य पुस्तक जिसका शीर्षक ' फलत उन बुल्दन था , में मोहम्मद कासिम के पतन और मृत्यु का एक पूर्णतः भिन्न कारण बताया गया है । 
➤उसमें कहा गया है कि कासिम को खलीफा सुलेमान द्वारा बंदी बनाकर मृत्यु होने तक यातनाएँ दी गई थीं । 
➤सुलेमान की मोहम्मद बिन कासिम के चाचा हज्जाज से भयंकर शत्रुता थी । 
➤ उसकी मृत्यु अरब साम्राज्य में समकालीन राजनीतिक स्थिति से संबंधित थी और खलीफा सुलेमान की प्रतिक्रियाओं से परस्पर संबंधित थीं , जिसने 715 सी . ई . में अपने भाई के बाद गद्दी संभाली थी । 
➤खलीफा वालिद का अंध समर्थक होने के कारण हज्जाज ने अपने भाई सुलेमान के विरुद्ध उसका समर्थन किया । 
➤वालिद ने सुलेमान के उत्तराधिकार के दावे को उसके बजाय उसके पुत्र को नियुक्त करके रद्द कर दिया और हज्जाज ने वालिद की इस योजना का समर्थन किया । 
➤इस प्रकार सुलेमान उत्तराधिकार के अपने अधिकार से वंचित हो गया और इसलिए वह क्रोधित हो गया , विशेष रूप से बगदाद के शक्तिशाली शासक से क्रुद्ध हो गया । 
➤यह घृणा अपने चरण पर तब पहुंच गई जब उम्मद शहज़ादे ने याज़िद बिन अल - मुहल्लब को शरण दे दी जो हज्जाज द्वारा उत्पीड़न से बचकर आया था । 
➤हज्जाज समर्थकों और मुहल्लब समर्थकों के बीच शत्रुता इस प्रकार हुई थी । 
➤यह अरब साम्राज्य की समूचे काल खंड में वालिद , सुलेमान और याज़िद- II खलीफाओं के काल में देखी गई थी और यह शत्रुता उम्मैयद साम्राज्य की जड़ों में गहराई से जमी थी जिसमें मुहल्लब और हैबाब समर्थक दोनों ही को निष्ठावान सेवकों के रूप में देखा था ।
➤जब सुलेमान अपने वफादार सेवकों के रूप में मुहल्लबों के साथ सत्ता में आया तो हज्जाज विरोधी प्रतिक्रिया दिखाई दी । 
➤इस प्रतिक्रिया ने हज्जाज को बहुत कम प्रभावित किया , क्योंकि उसकी मृत्यु उसकी इच्छानुसार अपने खलीफा वालिद से कुछ पहले हो गई थी ।
➤अरबी और इस्लाम के क्षेत्र को बढ़ाने के साहसिक अभियानों के चार वर्ष पश्चात् कासिम को वासित में सलाखों के पीछे कैद किया गया ।
➤ यहीं पर उसे हज्जाज के अन्य रिश्तेदारों के साथ रखा गया था और 715 सी . ई . में उसकी मृत्यु हो जाने तक यातनाएँ दी गई थीं ।

अरब प्रशासन :🔥

➤ सिंध के क्षेत्र पर विजय प्राप्त कर लेने के बाद अरब प्रकार के प्रशासन को देखा गया था । 
➤यह अरब विजेताओं द्वारा जीते गए अन्य क्षेत्रों में उनके द्वारा अपनाए जाने वाले प्रतिरूपों के जैसा ही था । 
➤विद्वानों का मत है कि प्रशासन का यह प्रतिरूप बाद वाले तंत्रों से अधिक उदार था । 
➤ऐसा मुख्य रूप से इसलिए था क्योंकि आरंभिक शताब्दियों में इस्लामी कानून की विचारधारा इतनी सख़्त नहीं थी जितनी वह बाद में थी । 
➤इसी कारण , विश्वभर में मुस्लिम शासन प्रणालियों को बाद की शताब्दियों में तुलनात्मक रूप अधिक कठोर माना जाता था । 
➤भारत में 12 वीं से 18 वीं शताब्दी तक तुर्की और मुगल शासन को इस रूझान के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जा सकता है ।  
➤इसके विपरीत प्रारंभिक मध्यकाल में अरब शासन अधिक उदार और लचीला था । 
➤अरब विजेताओं ने स्थानीय प्रथाओं के हस्तक्षेप न करने की सामान्य नीति अपनायी थी । 
➤जैसे अरब प्रशासन तंत्र के निर्माताओं में से एक खलीफा उमर ने अरबों को स्थानीय प्रशासन में हस्तक्षेप करने अथवा अधीनता वाले क्षेत्रों में भू - संपत्ति अर्जित करने की अनुमति नहीं दी थी । 
➤यद्यपि जीते गए क्षेत्र के मुख्य सैन्य जनरल को वहां का शासक बनाया जाता था लेकिन वह वहां के नागरिक प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं कर सकता था । 
➤यह मुख्य रूप से स्थानीय मुखियाओं के हाथ में रहता था जो अधिकतर गैर - मुस्लिम थे । 
➤कासिम की दहर पर विजय के बाद बनाई गई ऐसी व्यवस्था को ' ब्राह्मनाबाद व्यवस्था ' कहा जाता था । 
➤इसमें मुख्य रूप से हिंदूओं के साथ व्यवहार को दर्शाया गया है जिन्हें " पीपल ऑफ़ द बुक " अथवा जिम्मियों ( संरक्षित जन ) के रूप में जाना जाता था । 
➤यह व्यवस्था मुख्य रूप से हज्जाज ने खलीफा के निर्देशों के तहत बनाई थी । 
➤यह कहा गया था कि क्योंकि हिंदू जन खलीफा को कर चुकाने पर सहमत थे अतः उन्हें खलीफा के संरक्षण में लिया गया था । 
➤उनको अपने धर्म को अपनाने और अपने देवी - देवताओं की पूजा करने की अनुमति दी गई।
➤अरब शासकों अथवा प्रशासकों को उनकी संपत्ति छीनने की अनुमति नहीं थी ।
➤ इस प्रकार की उद्घोषणा मुख्य रूप से ब्राह्मनाबाद की जनता की अपने मंदिर की मरम्मत और अपने धर्म को मानने की याचिका के परिणामस्वरूप की गई थी । 
➤कासिम से किए गए इस आग्रह को हज्जाज के पास भेजा गया और हज्जाज ने फिर इस प्रकार खलीफा से परामर्श किया । 
➤खलीफा ने उदारता की नीति को अपनाया जिसे फिर हज्जाज और कासिम द्वारा सप्रयास आगे बढ़ाया गया । 
➤कासिम की ब्राह्मणों और मूल स्थानीय परंपरा के प्रति उदारता की नीति के ऊपर बताए गए।

सिंध पर विजय बगैर परिणामों की जीत ? : 🔥

➤सिंध पर अरब विजय को स्टेनली लेन पूल , एल्फिंसटन इत्यादि जैसे विद्वानों ने ' बगैर परिणामों की जीत ' कहा है क्योंकि इसमें मुस्लिम , अरबों और भारतीय शासकों में से किसी की भी कोई बड़ी विजय नहीं हुई थी । 
➤उनका मत है कि अरब की जीत का भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास पर कोई प्रभाव अथवा परिणाम नहीं हुआ था । 
1.वह शेष भारत की राजनीतिक अथवा सैन्य स्थितियों को प्रभावित नहीं कर सकी थी । 
2. अरब शासन सिर्फ सिंध क्षेत्र में सीमित था और भारतीय शासक अरबों को अपने सीमांत क्षेत्रों से बाहर निकाले अथवा उनसे डरे बगैर अपने राज्यों पर शासन करते थे । 
3.अरबों का प्रभाव उपमहाद्वीप के एक छोटे भाग तक सीमित था । 
4.वे तुर्कों के विपरीत भारतीय उपमहाद्वीप में अपने पैर नहीं जमा पाए थे , जिन्होंने कुछ शताब्दियों बाद ही अपनी पूर्ण सल्तनत ( अर्थात् 12 वीं शताब्दी से शुरू दिल्ली सल्तनत ) स्थापित कर ली थी । 
5.इस प्रकार की प्रथाओं के पाए जाने से अरब और मुस्लिम जगत को भारतीय सामाजिक और राजनीतिक तंत्रों की कमजोरियों का पता चला । 
6.अरब हमले ने भारत की राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित नहीं किया था।
आलोचक -
➤मुहम्मद बिन कासिम उतना ही कुशल प्रशासक था जितना कुशल योद्धा था । 
➤अपनी विजयों के बाद उसने क्षेत्र की कानून व्यवस्था को बनाए रखा था और वह मुस्लिम शासन के तहत् अच्छा प्रशासन देने में यकीन रखता था । 
➤गैर मुस्लिमों के साथ उसके द्वारा की गई व्यवस्थाओं ने उपमहाद्वीप में बाद में मुस्लिम राज्य नीति प्रदान करने का आधार बनाया । 
➤अपने चाचा हज्जाज के कुशल मार्गदर्शन में उसने पराजित जनता को सामाजिक - सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता दी थी । 
➤जब तक इस्लामी कानून को बनाया जा रहा था , तब तक मूर्ति पूजकों के लिए सख़्त प्रावधान दिए गए थे । 
➤इन प्रावधानों को हिंदुओं द्वारा क्यों नहीं अपनाया जाता था इसका कारण मुख्य रूप से कासिम की उदारवादी नीतियाँ थीं ।
➤ उसने मूल देसी रीति - रिवाजों और परंपराओं को अक्षुण्ण रखने के लिए राजनीतिक कुशाग्रता का प्रदर्शन किया ।
➤ न ही उसने गैर - मुस्लिमों को बलात मुसलमान बनाया और न ही सामाजिक व्यवस्थाओं जैसे जाति प्रथा को खत्म किया । 
➤इस प्रकार जाति प्रथा अप्रभावित रही और पहले के समान ही अपनायी जाती रही । 
➤लेकिन इसने निश्चित रूप से क्षेत्र की सामाजिक कमजोरियों को उजागर किया । 
➤भारतीय और अरब संस्कृतियों के बीच सांस्कृतिक मेल का प्रभाव विभिन्न अन्य क्षेत्रों जैसे साहित्य , चिकित्सा , गणित , खगोल विज्ञान इत्यादि पर भी दिखाई दिया । 
➤बौद्धिक स्तर पर ऐसे संपर्कों से दोनों संस्कृतियों की परस्पर वृद्धि और विकास हुआ । 
➤पहला अभिलेखित हिंद . अरब बौद्धिक संपर्क 771.ई. में हुआ था जब एक हिंदू खगोल विज्ञानी और गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त की ब्रह्म सिद्धांत नामक संस्कृत पुस्तक के साथ बगदाद पहुंचे ।

उपलब्धियां - 🔥

➤इस पुस्तक का एक अरब गणितज्ञ के द्वारा अरबी में अनुवाद किया गया था जिसे सिंध हिंद नाम दिया गया । 
➤अरबों द्वारा भारतीय चिकित्सा शास्त्र पर और भी अधिक ध्यान दिया गया था । 
➤कम से कम 15 संस्कृत पुस्तकों का अनुवाद किया गया जिसमें चरक और सुश्रुत की भी थीं । 
➤भारतीय चिकित्सकों को बगदाद में अत्यधिक आदर और सम्मान दिया जाता था और इसलिए काफी संख्या में भारतीय चिकित्सक वहां पाए जाते थे । 
➤ज्योतिष और हस्त रेखाशास्त्र ने भी अरबों का ध्यान आकर्षित किया और इन क्षेत्रों की अनेक पुस्तकों का अरबी में अनुवाद किया गया ।
➤ इन्हें भी अरब इतिहास लेखनों में संरक्षित रखा गया है । 
➤अन्य अनुवाद शासन कला , युद्ध कौशल , तर्क शास्त्र , नीति शास्त्र , जादू इत्यादि के क्षेत्रों से थे । 
➤ पंचतंत्र की प्रसिद्ध पुस्तक का अरबी में अनुवाद हुआ और अरबी में उसे कलीला और दिमना की कहानी के रूप में जाना गया । 
➤भारतीय संगीत का अरबी संगीत पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा था ।
➤जाहिज़ नामक अरबी लेखक ने अपनी पुस्तक में बगदाद में भारतीय संगीत को मिले सम्मान के विषय में लिखा है । 

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