Inductive and Deductive Method Notes in Hindi आगमन एवं निगमण विधि

आगमन एवं निगमण विधि (Inductive and Deductive Method) Notes in Hindi 


Table of Contents 👇

       1. आगमन विधि -

      • शिक्षण सूत्र
      • शिक्षण क्रम के सोपान
      • गुण
      • दोष

       2. निगमन विधि -

      • शिक्षण सूत्र
      • शिक्षण क्रम के सोपान
      • गुण
      • दोष

आगमन एवं निगमण विधि (Inductive and Deductive Method)

आगमन विधि – (Inductive Method) 🔥:

➤आगमन विधि उस विधि को कहते हैं जिसमें विशेष तथ्यों तथा घटनाओं के निरीक्षण तथा विश्लेषण द्वारा सामान्य नियमों अथवा सिद्धान्तों का निर्माण किया जाता हैं। 

➤इस विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर, विशिष्ट से सामान्य की ओर तथा मूर्त से अमूर्त की ओर नामक शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता हैं।

थंग के मतानुसार , “ इस विधि में बालक स्वयं भिन्न - भिन्न स्थूल तथ्यों के आधार पर अपनी मानसिक शक्ति द्वारा किसी विशेष सिद्धान्त अथवा नियम पर पहुंचता है।

➤ " लैण्डन के मतानुसार , “ जब कभी छात्रों के सम्मुख अनेक तथ्य , उदाहरण अथवा वस्तुएँ प्रस्तुत करते हैं और इसके पश्चात बालकों से स्वयं उनके निष्कर्ष निकलवाने का प्रयत्न करते हैं , तो इस शिक्षण विधि को आगमन विधि कहते हैं । " 

आगमन विधि के शिक्षण सूत्र :

1. विशिष्ट से सामान्य की ओर 

2. ज्ञात से अज्ञात की ओर

 3. प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर

 4. उदाहरण से नियम की ओर

 5. स्थूल से सूक्ष्म की ओर ।

आगमन विधि में शिक्षणक्रम के सोपान :

1. उदाहरणों का प्रस्तुतिकरण

2. विश्लेषण

3. सामान्यीकरण

4. परीक्षण करना

आगमन विधि के गुण :

1. आगमन विधि द्वारा बालकों को नवीन ज्ञान के खोजने का प्रशिक्षण मिलता हैl अतः विधि शिक्षण की एक मनोवैज्ञानिक विधि हैl

2. आगमन विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर तथा सरल से जटिल की ओर चलकर मूर्त उदाहरणों द्वारा बालकों से सामान्य नियम निकलवाए जाते हैंl 

3. यह विधि व्यवहारिक जीवन के लिए अत्यंत लाभप्रद है अतः यह विधि एक प्राकृतिक विधि हैl

आगमन विधि के दोष :

1. इस विधि द्वारा सीखने में शक्ति तथा समय दोनों अधिक लगते हैंl

2. यह विधि छोटे बालकों के लिए उपयुक्त नहीं हैl इसका प्रयोग केवल बड़े और वह भी बुद्धिमान बालक ही कर सकता हैl

3. आगमन विधि द्वारा केवल सामान्य नियमों की खोज ही की जा सकती है l अतः इस विधि द्वारा प्रत्येक विषय की शिक्षा नहीं दी जा सकती है l

4. यह विधि स्वयं में अपूर्ण हैl इसके द्वारा खोजे हुए सत्य की परख करने के लिए निगमन विधि आवश्यक हैl

निगमन विधि (Deductive METHODS) : 🔥

➤शिक्षण के निगमन विधि उस विधि को कहते हैं जिसमें सामान्य से विशिष्ट अथवा सामान्य नियम से विशिष्ट उदाहरण की ओर बढ़ा जाता है।

➤निगमन विधि आगमन विधि के बिल्कुल विपरीत है l

➤इस विधि का प्रयोग करते समय शिक्षक बालकों के सामने पहले किसी सामान्य नियम को प्रस्तुत करता हैl 

लैण्डल के अनुसार , “ निगमन विधि द्वारा शिक्षण में सबसे पहले परिभाषा नियम सिखाया जाता है एवं फिर उसके अर्थ को स्पष्ट किया जाता है और अन्त में तथ्यों के प्रयोग से उसे पूर्णतः स्पष्ट कर दिया जाता है । " 

निगमन विधि के शिक्षण सूत्र :

1. अज्ञात से ज्ञात की ओर ।

 2. प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर । 

3. नियम से उदाहरण की ओर । 

4. सूक्ष्म से स्थूल की ओर । 

5. सामान्य से विशिष्ट की ओर ।

निगमण विधि के शिक्षणक्रम के सोपान :

1. सामान्य नियमों का प्रस्तुतीकरण

➤इस सवाल में शिक्षक का लोगों के सामने सामान्य नियमों को क्रम पूर्वक प्रस्तुत करता हैl

2. संबंधों की स्थापना

➤इस सप्ताह में विश्लेषण की प्रक्रिया आरंभ होती है l 

➤दूसरों शब्दों में, शिक्षक प्रस्तुत किए हुए नियमों के अंदर तर्कयुक्त संबंधों का पर निरूपण करता हैl

निगमन विधि के गुण :

1. प्रत्येक विषय को पढ़ने के लिए उपयुक्त है.

2. शुद्ध नियमों की जानकारी प्राप्त करते हैं।

3. कक्षा के सभी बालकों को एक ही समय में पढ़ाया जा सकता है.

4. इस विधि के प्रयोग से समय तथा शक्ति दोनों की बचत होती है.

5. निगमन विधि में शिक्षक बने बनाए नियमों को बालकों के सामने प्रस्तुत करता हैl इस विधि में शिक्षक का कार्य अत्यंत सरल होता हैl

निगमन विधि के दोष :

1. इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान अस्पष्ट एवं अस्थायी होता है।

2. इस विधि में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्नों के लिए अनेक सूत्र याद करने होते हैं जो कठिन कार्य है। इसमें क्रियाशीलता का सिद्धान्त लागू नहीं होता।

3. यह विधि बालक की तर्क, विचार व निर्णय शक्ति के विकास में सहायक नहीं है।

4. यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के विपरीत है क्योंकि यह स्मृति केन्द्रित विधि है।

5. यह विधि खोज करने की अपेक्षा रटने की प्रवृत्ति पर अधिक बल देती है। अतः छात्र की मानसिक शक्ति का विकास नहीं होता हैं

6. हिन्दी प्रारम्भ करने वालों के लिए यह विधि उपयुक्त नहीं है।

7. यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि छोटी कक्षाओं के बालकों के लिए विभिन्न सूत्रों, नियमों आदि को समझना बहुत कठिन होता हैं।

8. इस विधि के प्रयोग से अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया अरुचिकर तथा नीरस बनी रहती हैं।

9. स्वतन्त्रतापूर्वक इस विधि का प्रयोग सम्भव नहीं हो सकता।

10. इस विधि द्वारा बालकों को नवीन ज्ञान अर्जित करने के अवसर नहीं मिलते हैं।

11. छात्र में आत्मनिर्भरता एवं आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होता हैं।

12. इस विधि में बालक यन्त्रवत् कार्य करते हैं क्योंकि उन्हें यह पता नहीं रहता है कि वे अमुक कार्य इस प्रकार ही क्यों कर रहे हैं।


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