Statistics and Dynamic Economics स्थैतिकी तथा प्रावैगिकी अर्थशास्त्र

Statistics and Dynamic Economics स्थैतिकी तथा प्रावैगिकी अर्थशास्त्र Notes in Hindi 


Table of Contents 👇

1. स्थैतिकी अर्थशास्त्र -

    1. प्रकार
    2. मान्यताएं
    3. महत्व
    4. सीमाएं / दोष
    5. विशेषताएं

2. प्रावैगिकी अर्थशास्त्र -

    1. प्रकार
    2. मान्यताएं
    3. महत्व
    4. सीमाएं / दोष
    5. विशेषताएं

3. स्थैतिकी तथा प्रावैगिकी अर्थशास्त्र में अंतर


स्थैतिकी तथा प्रावैगिकी अर्थशास्त्र (Statistics and Dynamic Economics)

स्थैतिकी अर्थशास्त्र - 🔥

J.R.Hicks (हिक्स) - आर्थिक प्रवैगिकी की परिभाषा आर्थिक स्थैतिकी की परिभाषा से ही निकलती है, एक की परिभाषा करने पर दूसरे की परिभाषा स्वयं हो जाती है।

️➤यदि अर्थव्यवस्था में समय के साथ साथ समस्त महत्वपूर्ण चर की मात्रा में परिवर्तन न हो तो इसे स्थिर अर्थव्यवस्था तथा परिवर्तन हो तो गत्यात्मक अर्थवयवाथ कहा जाता है।

स्थैतिक विश्लेषण के प्रकार :

1. व्यष्टि स्थैतिकी या व्यष्टिपरक स्थैतिक संतुलन।

2. समष्टि स्थैतिकी या समष्टिपरक स्थैतिक संतुलन।

1. व्यष्टि स्थैतिकी :

➤इसमें अर्थव्यवस्था के किसी एक इकाई के संतुलन का विश्लेषण किया जाता है।

➤इस विश्लेषण में मांग एवं पूर्ति के फलनात्मक संबंध एक स्थिर समय पर कीमत का निर्धारण करते है।

➤चरो के संतुलन मूल्य विभिन्न चरो के परस्पर समायोजन के कारण होता है।

➤आर्थिक सिद्धांत को संतुलन विश्लेषण भी कहा जाता है।

➤स्थैतिक विश्लेषण में चरो जैसे मांग पूर्ति, कीमत आदि का संबंध एक विशेष समय अवधि से होता है।

➤DD मांग फलन तथा SS पूर्ति फलन है।

➤OP संतुलन कीमत है।

➤OM मांग मात्रा तथा पूर्ति मात्रा है।

➤P स्थैतिक समय का बिंदु है अतः यह कीमत निर्धारण का स्थैतिक विश्लेषण है।

2. समष्टि स्थैतिकी :

➤इसके अंतर्गत संपूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है।

➤राष्ट्रीय आय के स्तर का निर्धारण का किंसियन मॉडल मुख्यतः स्थैतिक हैं।

➤राष्ट्रीय आय का निर्धारण समस्त मांग तथा पूर्ति वक्र द्वारा होता है।

➤समस्त मांग वक्र C+I हैं।

➤समस्त पूर्ति वक्र Z हैं।

➤संतुलन बिंदु E हैं।

➤OY राष्ट्रीय आय हैं।

➤समस्त मांग में कमी से राष्ट्रीय आय में कमी होता है।

➡️प्रो. शूम्पीटर के अनुसार स्थैतिक विश्लेषण - स्थैतिक विश्लेषण से हमारा तात्पर्य आर्थिक तथ्यों की उस अध्ययन विधि से है जो आर्थिक व्यवस्था के उन विभिन्न तत्वों जैसे कि कीमतों तथा वस्तुओ की मात्राओं में संबंधों को स्थापित करने का प्रयत्न करती है जो एक ही समय तत्व पर आधारित है।

स्थैतिक विश्लेषण की मान्यताएं :

1. कुछ निर्धारक दशाओं तथा कारकों को स्थिर मान लिया जाता है।

🔹व्यक्ति की आय, रुचि, अधिमान, संबंधित वस्तु की कीमत।

🔹उत्पादन साधनों की कीमत, उत्पादन तकनीक।

2. स्वतंत्र दशाएं तथा प्रदत्त सामग्री।

स्थैतीकी का महत्व :

1.परिवर्तनशील अर्थव्यवस्था का वैज्ञानिक अध्ययन अत्यंत कठिन है।

2.स्थैतिक विश्लेषण अत्यंत सरल है।

3.अर्थशास्त्र की बहुत सी विषय सामग्री स्थैतिकी के अंतर्गत आते है।

4. एक व्यक्ति अधिकतम संतुष्टि के लिए अपनी सीमित आय को विभिन्न वस्तुओं के बीच कैसे बांटता है।

स्थैतीकी की सीमाएं :

1.स्थैतिक अर्थशास्त्र स्थिर अर्थव्यवस्था का अध्ययन करता है जबकि वास्तविक अर्थशास्त्र परिवर्तनशील है।

2. स्थैतिक अर्थशास्त्र पूर्ण प्रतियोगिता, पूर्ण गतिशीलता, अनिश्चितता की अनुपस्थिति, जनसंख्या का निश्चित आकार जैसी अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है।

3.स्थैतिक विश्लेषण आर्थिक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक को स्थिर मान लेता है जैसे रुचि, फैशन, रीती रिवाज, आदत आदि।

स्थैतिक विश्लेषण की विशेषताएं :

1 गति।

2. समय।

3. संतुलन।

4. बचत और विनियोग्रहित अवस्था।

प्रावैगिकी अर्थशास्त्र : 🔥

आर्थिक प्रवैगिकी समस्त अर्थव्यवस्था के व्यवहार अथवा कुछ निश्चित आर्थिक चरों के व्यवहार का विश्लेषण करने की अधिक वास्तविक विधि हैं।

हिक्स - वह भाग जहां प्रत्येक मात्रा का समय निर्धारण आवश्यक है।

हैरड - आर्थिक प्रवैगिकी का संबंध परिवर्तन की दरों से है।

प्रावैगिकी के प्रकार :

1.व्यष्टिपरक प्रावैगिकी अर्थशास्त्र -

➤व्यष्टिपरक प्रावैगिक विश्लेषण को मांग एवं पूर्ति वक्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

➤DD मांग वक्र तथा SS पूर्ति वक्र होने पर संतुलन बिंदु E हैं, जहां OP कीमत OQ मांग तथा पूर्ति का निर्धारण होता है।

➤मांग में वृद्धि होने से मांग वक्र D1D1 हो जाता है।

➤कीमत बढ़कर OP1 हो जाता है।

➤उत्पादक वस्तु का उत्पादन A बिंदु से बढ़ाकर B बिंदु पर करता है।

➤वस्तु की पूर्ति में वृद्धि से कीमत घटकर OP2 हो जाती है।

➤अतः संतुलन बिंदु E पर आने तक परिवर्तन होता रहता है।


2.समष्टिपरक प्रावैगिकी अर्थशास्त्र -

➤राष्ट्रीय आय का स्तर समस्त मांग C+I तथा समस्त पूर्ति Z वक्र के संतुलन द्वारा निर्धारित होता है।

➤समस्त मांग में वृद्धि C+I' हो जाने से यह ऊपर की ओर विवर्तित हो जाता है।

➤t समय में निवेश में वृद्धि होने से निवेश I' हो जाता है जिससे राष्ट्रीय आय निवेश में वृद्धि के समान बढ़ता है।

➤आय में वृद्धि उपभोग मांग को बढ़ाएगा। फिर निवेश में वृद्धि होगी, फिर उपभोग मांग में वृद्धि होगी।

➤अतः आय में निरंतर वृद्धि होती रहेगी। एक वृद्धि दूसरी वृद्धि को जन्म देती है।

➤नई संतुलन बिंदु H होने से राष्ट्रीय आय बढ़कर OYn हो जाता है।

प्रैवैगिकी अर्थशास्त्र की विशेषताएं :

1. इसमें परिवर्तन की प्रक्रिया में समय को स्पष्ट मान्यता दी जाती है।

2. यह अर्थव्यवस्था में तुरंत समायोजन की मान्यता को स्वीकार नहीं करता।

3. यह बताता है कि किस प्रकार एक स्थिति की पिछली स्थिति में विकास होता है। (संबंध » समय व विकास)

4. रुचि, तकनीक, जनसंख्या, साधन, संगठन में परिवर्तन होता है।

प्रैवैगिकी अर्थशास्त्र की सीमाएं :

1. इसका ध्यान बहुत जटिल है।

2. यदि परिवर्तन की गति तीव्र हो तो इसका विश्लेषण करना कठिन है।

3. इसका भी पूर्ण विकास नहीं हो सका है।

प्रैवैगिकी अर्थशास्त्र का महत्व :

1. यह वास्तविकता के अधिक निकट है।

2. विकास का अर्थशास्त्र गतिशील है।

3. यह लोचदार होता है।

4. इसमें व्यापार चक्र, मकड़ी के जाले का सिद्धांत, जनसंख्या विकास का सिद्धांत, लाभ, ब्याज व विनियोग आते हैं।

5. जो स्थैतिकी हल नहीं करता उसे प्रवैगिकी हल करता है।

स्थैतिकी तथा प्रवैगीकी अर्थशास्त्र में अंतर :🔥



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