Concept of Money in Modern Economy (आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की अवधारणा का वर्णन करे)

Concept of Money in Modern Economy (आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की अवधारणा) - मुद्रा की परिभाषा तथा मुद्रा के कार्य। Meaning and Functions of Money in Modern Economy.


Table of Contents 👇


मुद्रा की परिभाषाएं

मुद्रा का शाब्दिक अर्थ : 🔥

➤अंग्रेजी भाषा में मुद्रा को Money कहा जाता है।

➤Money लैटिन भाषा के Moneta (मोनेटा) से लिया गया है।

➤मोनेटा रोम की देवी जूनो का दूसरा नाम है।

➤देवी जूनो के मंदिर में जो मुद्रा बनायी जाती थी उसे मोनेटा कहा जाता था जिसे बाद में Money कहा जाने लगा।

➤कुछ विद्वानों का अर्थ है की Money शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Pecunia से हुई है।

➤Pecunia शब्द Pecus से बना है जिसका अर्थ पशु संपत्ति होता है।

➤प्राचीन समय में रोम में पशुओं का मुद्रा के रूप में अधिक प्रयोग होने के कारण मुद्रा और पशु का एक ही अर्थ लगाया जाता था।

मुद्रा की परिभाषा : - 🔥

➡️मुद्रा की परिभाषा को दो भागों में बांटा जा सकता है -

  1. प्रकृति के आधार पर मुद्रा की परिभाषा।
  2. अर्थशास्त्रियों के अनुसार मुद्रा की परिभाषा।


प्रकृति के आधार पर दी गई परिभाषाएं : 🔥

A. वर्णात्मक / कार्यात्मक परिभाषाएं :

➡️वे परिभाषाएं जो मुद्रा के कार्यों का वर्णन करते है।

1. कौलबोर्न - मुद्रा वह है जो मूल्य मापक और भुगतान का साधन है।

2. हार्टले - मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करे।

3.प्रो. टॉमस - मुद्रा किसी आर्थिक लक्ष्य की प्राप्ति का साधन है अर्थात् जो दूसरों की वस्तुओ और सेवाओं को प्राप्त करने के लिए दी जाती है।

दोष - ये परिभाषाएं केवल मुद्रा का वर्णन करती है।

B. वैधानिक परिभाषाएं :

➡️किसी भी देश में वही वस्तु मुद्रा मानी जा सकती हैं जिसे सरकार ने मुद्रा घोषित किया हो।

➡️इसका प्रतिपादन जर्मन अर्थशास्त्री प्रो. नैप तथा ब्रिटिश अर्थशास्त्री हांट्रे हैं।

प्रो. नैप - कोई भी वस्तु जो राज्य द्वारा मुद्रा घोषित कर दी जाती है, मुद्रा कहलाती है।

दोष -

1.सर्वग्राह्यता का आधार जनता का विश्वास है - इसमें जनता का विश्वास होता है राज्य का दबाव नहीं।

2.स्वतंत्रता व ऐच्छिकता का लोप - विनिमय के सिद्धांत के अनुसार विनिमय स्वतंत्र और ऐच्छिक होना चाहिए। यदि मुद्रा की स्वीकृति सरकार द्वारा अनिवार्य घोषित कर दी जाए तो विनिमय का कार्य स्वतंत्र व ऐच्छिक नही रहता।

C. सामान्य स्वीकृति पर आधारित परिभाषाएं :

➡️वह परिभाषाएं जो मुद्रा की सामान्य स्वीकृति पर बल देती है।

1.सेलिगमैन - मुद्रा वह वस्तु है जिसे सर्वग्राह्यता प्राप्त हो।

2. क्राउथर - मुद्रा वह वस्तु है जो विनिमय के माध्यम के रूप में सामान्यतः स्वीकार की जाती हो तथा उसी समय मूल्य मापन तथा मूल्य संचय का कार्य भी करती हो।

3. किंस - मुद्रा वह है जिसको देकर ऋण तथा मूल्य संबंधी भुगतानो को निबटाया जाता है तथा जिसके रूप में सामान्य क्रय शक्ति का संचय किया जाता है।

4. कांट - मुद्रा की भी वह वस्तु है जो विनिमय के माध्यम या मूल्य के मापक के रूप में साधारणतः प्रयोग की जाती हो तथा सामान्य रूप से ग्रहण कर ली गई हो।

विशेषताएं - सामान्य स्वीकृति पर आधारित परिभाषाओ के विश्लेषण से मुद्रा की तीन विशेषताओं का पता चलता है - 

  • मुद्रा में समान स्वीकृति होनी चाहिए।
  • मुद्रा की स्वीकृति स्वतंत्र या ऐच्छिक होना चाहिए।
  • मुद्रा को विनिमय का माध्यम और मूल्य मापन का कार्य साथ साथ करना चाहिए।

दोष - इसके अनुसार चैको, हुंडियो तथा विनिमय पत्रों को मुद्रा एम सम्मिलित नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये विनिमय के रूप में सामान्यतः स्वीकार नहीं किए जाते।

अर्थशास्त्रियों के दृष्टिकोण के अनुसार परिभाषाएं : 🔥

A. परंपरावादी परिभाषाएं :

➡️मुद्रा की परंपरावादी परिभाषाएं उनके कार्यों के आधार पर की जाती है।

हिक्स - कोई भी वस्तु जिसका मुद्रा की तरह प्रयोग किया जाता है, मुद्रा है। मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करे।

➡️इसके अंतर्गत हार्टले विदर्स, प्रो. कांट, कींस, क्राउथर आते है।

➡️मुद्रा के अंर्तगत नोट, सिक्के, करेंसी तथा बैंको में मांग जमा को शामिल किया जाता है।

➡️मांग जमा उस जमा को कहते है जिसे चैक द्वारा किसी भी समय बैंक से निकलवाया जा सकता है।

मुद्रा = करेंसी + मांग जमा

Money = Currency + Demand Deposit

➡️ करेंसी = नोट + सिक्के

B. शिकागो दृष्टिकोण :

➡️इसका प्रतिपादन 'शिकागो स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स ' के नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. फ्रिडमैन ने किया है।

मिल्टन फ्रीडमैन - मुद्रा क्रय शक्ति का अस्थायी निवास है।

मुद्रा = करेंसी + मांग जमा + सावधि जमा

Money = Currency + Demand Deposit + Time Deposit

➡️सावधि जमा को नकद मुद्रा में बिना किसी हानि, असुविधा तथा विलंब के बदला जा सकत है।

C. गुरले तथा शॉ दृष्टिकोण :

➡️इसका प्रतिपादन J.G. गुरले तथा E.S. शॉ (Shaw) ने अपनी पुस्तक Money in a Theory of Finance में किया है।

➡️करेंसी, मांग जमा , सावधि जमा के अलावा गैर बैंकिंग मध्यस्थो के ऋण पत्रों, बचत जमा, शेयर तथा ऋण समितियां, जीवन बीमा निगम, बचत बैंक आदि को शामिल किया जाता है।

मुद्रा = करेंसी + मांग जमा + सावधि जमा + गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थों के ऋण पत्र, बचत जमा, शेयर तथा बॉण्ड्स।

D. केंद्रीय बैंकिंग या रैडक्लिफ दृष्टिकोण:

➡️मुद्रा से अभिप्राय विभिन्न साधनों द्वारा दी गई साख से है।

➡️इसके अंतर्गत करेंसी, मांग जमा, समय जमा, गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थों तथा असंगठित संगठनों द्वारा जारी की गई कुल साख को शामिल किया जाता है।

मुद्रा = करेंसी + मांग जमा + सावधि जमा + गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थों के ऋण पत्र, बचत जमा, शेयर तथा बॉण्ड्स + असंगठित क्षेत्रों की साख।

➡️कुल साख को मुद्रा में शामिल किया जाता है।

मुद्रा की उपयुक्त परिभाषा :

मुद्रा ऐसी वस्तु है जिसे विस्तृत रूप में विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापक, ऋणों के अंतिम भुगतान तथा मूल्य के संचय के साधन के रूप में स्वतंत्र एवं सामान्य रूप से स्वीकार किया जाता है।

वैनट्रोब - सामाजिक दृष्टिकोण से मुद्रा से अभिप्राय उन्ही तरल परिसंपतियों अर्थात् करेंसी और बैंको की मांग जमा से है जो किसी स्थान पर विनिमय के माध्यम के रूप में चलन में है।

मुद्रा के कार्य 🔥

➡️सामान्यतः मुद्रा के चार कार्य बताए जाते है।

➡️इस संबंध में प्रचलित पंक्तियां निम्न है -

मुद्रा के है कार्य चार,

माध्यम, मापक, संचय और आधार

A. प्राथमिक कार्य (Primary Function) : 🔥

➡️वे कार्य जो मुद्रा ने सदैव प्रत्येक दशा में व आर्थिक उन्नति की प्रत्येक अवस्था में संपन्न किए है।

➡️इन कार्यों को आधारभूत मौलिक कार्य या आवश्यक कार्य भी कहा जाता है।

1. विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange) :

➡️मुद्रा सभी वस्तुओ और सेवाओं के क्रय विक्रय के माध्यम का कार्य करती है।

➡️मुद्रा के प्रयोग से विनिमय का कार्य परोक्ष हो जाता है।

➡️मुद्रा एक मध्यस्थ का कार्य करती है।

➡️पहले वस्तु या सेवा को मुद्रा में बदला जाता है (जिसे क्रय कहते है) फिर मुद्रा के बदले में वस्तुएं या सेवाएं प्राप्त की जाती है (जिसे विक्रय कहते है)।

2. मूल्य के मापन का कार्य (Measurement of Value) :

➡️वस्तुओ और सेवाओं के मूल्य मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जाता है।

➡️सभी वस्तुओ के मूल्य मुद्रा में व्यक्त करने से दो वस्तुओ के मूल्य की तुलना सरल हो जाता है।

➡️समय समय पर मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन होते रहते हैं इसलिए मुद्रा मूल्य मापन का पूर्णतया निश्चित मान नहीं है।

B. गौण कार्य (Secondary Function) : 🔥

➡️ वे कार्य जो मुद्रा द्वारा प्राथमिक कार्यों की सहायता के लिए की जाते है।

➡️इन्हे सहायक या व्युत्पादित कार्य भी कहा जाता है।।

1.भावी भुगतान का आधार (Standerd for Different Payment) :

➡️ आज अधिकांश लेन देन उधार होता है

➡️मुद्रा भावी भुगतान का एक बहुत बड़ा सुगम साधन है।

➡️इसमें तीन विशेष गुण है -

  • मुद्रा में अन्य वस्तुओ की तुलना में स्थिरता है अर्थात् उसका मूल्य कम घटता बढ़ता है।
  • मुद्रा में सामान्य स्वीकृति का गुण होता है जिसकी वजह से उसकी आवश्यकता हर समय रहती है।
  • मुद्रा में अन्य वस्तुओ की अपेक्षा अधिक टिकाऊपन रहता है।

➡️स्थगित भुगतान के कारण ही मुद्रा बाजार तथा पूंजी बाजार का विकास हुआ है।

2.मूल्य का संचय (Store of Value) :

➡️मनुष्य मुद्रा का आकस्मिक आवश्यकताओं के लिए संचय करके सकता है।

  • मुद्रा की उपयोगिता नष्ट नहीं होती।
  • किसी भी समय मुद्रा की सहायता से वस्तुएं खरीदी जा सकती है।
  • मुद्रा के संचय में स्थान कम घिरता है।
  • मुद्रा को बैंक में जमा करके ब्याज कमाया जा सकता है।

➡️मुद्रा पूंजी के संचय को संभव बनाती है जो किसी भी देश के आर्थिक तथा औद्योगिक एवं व्यापारिक विकास की आधारशिला है।

➡️न्यूलन ने इस कार्य को मुद्रा का परिसंपत्ति कार्य कहा है।

3.मूल्य का हस्तांतरण (Transfer of Value) :

➡️मुद्रा से मूल्य का हस्तांतरण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति, एक स्थान से दूसरे स्थान को आसानी से किया जा सकता है।

➡️मुद्रा एक तरल संपत्ति है और इसमें सामान्य स्वीकृति का गुण पाया जाता है।

C. आकस्मिक कार्य (Contingent Function) : 🔥

➡️ किनले ने मुद्रा के कुछ आकस्मिक कार्य बताए है।

➡️ये वे कार्य है जिसे मुद्रा आज के औद्योगिक युग में विशेष रूप से करती है।

1.राष्ट्रीय आय का वितरण (Distribution of National Income) :

➡️ आधुनिक युग में उत्पादन भूमि, श्रम, पूंजी तथा साहसी के सहयोग से सामूहिक रूप से होता है जिन्हे उत्पादन में योगदान के अनुसार उचित पुरस्कार दिया जाता है।

➡️मुद्रा के होने से समस्त राष्ट्रीय आय मुद्रा में आंकी जाती है।

2.साख का आधार (Basis of Credit) :

➡️ आधुनिक युग में साख जो व्यवसाय का प्राण है द्रव्य पर ही आधारित है।

➡️नकद कोषों के आधार पर ही बैंक मुद्रा का निर्माण करते है।

➡️साख पत्र और बैंक नोट मुद्रा के आधार पर ही चलन में आते है।

➡️आज की मुद्रा ' भुगतान के वचन ' के अतिरिक्त कुछ भी नही है।

3.अधिकतम संतुष्टि (Maximum Satisfaction) :

➡️ एक उपभोक्ता अपनी आय का प्रयोग इस प्रकार करना चाहता है जिससे उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो।

➡️उपभोक्ता को सभी वस्तुओ से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिताएं उन वस्तुओ की कीमतों के अनुपात के बराबर हो।

➡️उत्पादक को उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग इस प्रकार करना चाहिए की उत्पादन लागत न्यूनतम हो।

4.पूंजी की तरलता में वृद्धि (Increase in Liquidity of Capital) :
➡️ वास्तव में सारी संपतियां मुद्रा में परिवर्तित की जा सकती हैं।

➡️जैसे भूमि, मशीन, स्टॉक, शेयर आदि को मुद्रा से कभी भी बेचे या खरीदे जा सकते है।

उपर्युक्त कार्य आकस्मिक कार्य क्यो कहलाते है ?

➡️उपर्युक्त कार्य विनिमय माध्यम और मूल्य मापन पर आधारित है इसलिए इन्हे आकस्मिक कार्य कहते है।

D. विविध कार्य : 🔥

1.शोधन क्षमता की गारंटी (सुरक्षा) :

➡️कांट का विचार है की मुद्रा समाज में व्यक्तियों की शोधन क्षमता को बनाए रखने का कार्य भी करती है क्योंकि कोई भी व्यक्ति उसी समय तक शोधक्षम रहता है जब तक वह अपने दायित्वों व ऋणों को मुद्रा में चुकाने में समर्थ है।

2.निर्णय का वाहक :

➡️प्रो. ग्राहम के अनुसार मुद्रा निर्णय वाहक का कार्य भी संपन्न करती है।

➡️जिस व्यक्ति के पास मुद्रा है वह उसका जिस प्रकार भी चाहे उपभोग कर सकता है।

➡️मुद्रा को भविष्य में किसी भी वस्तु को खरीदने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है।


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