पल्लव वंश - शासन - सामाजिक तथा आर्थिक जीवन - शिक्षा - साहित्य - धर्म - कला तथा वास्तुकला नोट्स इन हिंदी

पल्लव वंश - शासन - सामाजिक तथा आर्थिक जीवन - शिक्षा - साहित्य - धर्म - कला तथा वास्तुकला नोट्स इन हिंदी

पल्लव वंश :🔥

➤भारत के सुदूर दक्षिण में पल्लव राजवंश का उत्थान हुआ । 

➤सुदूर दक्षिण के इस भाग को तमिल - प्रदेश भी पुकारा गया है । 

➤सातवाहन वंश के पतन के बाद उनके राज्य दक्षिण - पूर्वी भाग पर पल्लव वंश ने अपना अधिकार कर लिया और कांची को अपनी राजधानी बनाया ।

➤ पल्लव वंश के शासकों का ज्ञान हमें प्राकृत तथा संस्कृत ताम्रपत्रों व समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति से होता है । 

➤पल्लव शासकों की उत्पत्ति का अनुमान तीसरी सदी से किया जाता है । 

➤शिवस्कंधवर्मा , विष्णुगोप आदि इनके आरंभिक शासक थे परंतु पल्लवों की महानता का काल छठी शताब्दी के अंतिम चरण में उनके शासक सिंहविष्णु के समय से आरंभ हुआ । 

➤इनके शासक इस प्रकार थे : -

1. सिंहविष्णु ( 575-600 ई ० ) : 🔥

➤सिंहविष्णु एक महान शासक था । उसने कावेरी से कृष्णा नदी तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया । 

➤सिंहविष्णु ने साहित्य और कला को संरक्षण दिया । 

➤संस्कृत का महान कवि भारवि उसके दरबार में था और उस के समय में महाबलीपुरम नगर कला का केंद्र स्थान बन गया था । 

➤उसने ‘ अवनिसिंह ' की उपाधि धारण की । 

➤उसने चोलो को पराजित कर चोलमण्डलम पर अधिकार किया ।

2. महेंद्रवर्मन प्रथम ( 600-630 ई . ) : 🔥

➤सिंहविष्णु के पश्चात् उसका पुत्र महेंद्रवर्मन शासक बना । 

➤सिंहविष्णु के पुत्र महेंद्र के समय में पल्लवों और चालुक्यों का संघर्ष आरंभ हुआ क्योंकि दोनों ही दक्षिण भारत में अपनी - अपनी शक्ति के विस्तार के लिए प्रयासरत थे ।

➤पल्लवों ने कदम्बों के साथ मिलकर चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय की शक्ति के विस्तार को रोकने का प्रयत्न किया । 

➤इस कारण पुलकेशिन ने पल्लव राज्य पर आक्रमण किया । 

➤आक्रमण से पल्लव राजधानी कांची की सुरक्षा तो हो गई पुलकेशिन ने उससे उसके उत्तरी प्रांत वेंगी को छीन लिया जहां उसने अपने भाई विष्णुवर्धन को राज्यपाल नियुक्त किया जिसने पूर्वी चालुक्यों के राज्य की स्थापना की । 

3. नरसिंह वर्मन प्रथम ( 630-668 ई . ) :🔥

➤ महेंद्रवर्मन का पुत्र नरसिंह वर्मन एक महान शासक हुआ । 

➤उसके समय में भी पल्लवों का बादामी के चालुक्यों से संघर्ष हुआ । 

➤चालुक्य शासन पुलकेशिन द्वितीय ने उसके राज्य पर आक्रमण किया और 642 ई . में उसकी राजधानी वातापी पर अधिकार कर लिया ।

➤ इन्हीं युद्धों में पुलकेशिन द्वितीय मारा गया और पल्लवों ने चालुक्य राज्य के दक्षिणी भाग पर अधिकार कर लिया ।

➤नरसिंह वर्मन ने चालुक्यों की शक्ति को दुर्बल करके मैसूर तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया । 

➤उसके पश्चात् उसने चोल , चेर तथा पांडेय शासकों को परास्त करके दक्षिण की ओर अपने साम्राज्य को और अधिक विस्तार दिया ।

➤नरसिंह वर्मन ने महाबलीपुरम ( मामल्लपुरम ) में मंदिरों का निर्माण कराया जो अब मामल्लापुरम के रथ मंदिर कहलाते हैं ।

➤ उसने त्रिचनापल्ली में भी मंदिर बनवाए ।

➤ उसके समय में चीनी यात्री ह्वेनसांग कांची आया था और उसने वहां का बहुत अच्छा वर्णन किया है । 

➤नरसिंह वर्मन के पुत्र महेंद्रवर्मन द्वितीय ( 668-70 ई . ) ने केवल दो वर्ष तक शासन किया । 

➤उसके पश्चात् उसका पुत्र परमेश्वर वर्मन प्रथम ( 670-95 ई . ) सिंहासन पर बैठा । 

4. नरसिंह वर्मन द्वितीय ( 695-722 ई .) :🔥

➤परमेश्वर वर्मन के पुत्र नरसिंह वर्मन द्वितीय का शांति का रहा । 

➤उसके समय में राज्य में समृद्धि चीनी सम्राट के दरबार में अपना राजदूत भेजा । 

➤नरसिंह वर्मन द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र परमेश्वर वर्मन द्वितीय ( 721-739 ई . ) सिंहासन पर बैठा । 

➤उसने अंतिम समय में चालुक्यों से पुन : संघर्ष शुरू हुआ । 

➤परेमश्वर वर्मन के उत्तराधिकारी  ' दन्तिवर्मन ' , ' नंदि वर्मन ' व ' अपराजित हुए जो अयोग्य निकले । 

➤चोल शासक आदित्य प्रथम ने 893 ई . में इस वंश के अन्तिम शासक अपराजित पर आक्रमण करके उसे मार डाला ।

➤ इससे पल्लव साम्राज्य का अन्त हो गया ।

पल्लव शासकों की उपलब्धियां :

शासन व्यवस्था : 🔥

➤पल्लवों की शासन व्यवस्था बहुत कुछ गुप्त और मौर्य सम्राटों की शासन व्यवस्था के समान थी । 

➤उसमें सम्राट राज्य का प्रधान था । 

➤वह बड़ी - बड़ी उपाधियां धारण करता था और राज्य की संपूर्ण शक्तियां उसमें केंद्रित थी परंतु सम्राट की सहायता के लिए विभिन्न मंत्री और राज्य के अन्य बड़े पदाधिकारी होते थे । 

➤संपूर्ण राज्य को राष्ट्रों , विषयों ( जिला ) , कोट्टम ( तहसील ) और गांवों में बांटा गया था ।

➤ ' भट्टारक ' इनकी महत्वपूर्ण उपाधि थी ।

➤ उनकी शासन व्यवस्था में ग्रामीण शासन को काफी स्वतंत्रता मिली हुई थी । 

➡️कोट्टम - प्रशासन की एक इकाई जिसके अन्तर्गत गावों का एक समूह होता था ।

शिक्षा एवं साहित्य :🔥

➤ पल्लव शासकों के समय में साहित्यिक प्रगति भी बहुत हुई । 

➤कांची के विश्वविद्यालय ने इस प्रगति में बहुत सहयोग दिया । 

➤पल्लव शासकों ने विद्वानों को आश्रय दिया । 

➤सम्राट सिंह विष्णु ने समकालीन विद्वान भारवि को अपने दरबार में आने हेतु आमंत्रित किया था तथा विद्वान दंडी को उसके राज्य में राजकीय संरक्षण प्राप्त हुआ था । 

➤पल्लव शासकों के समय में संस्कृत के अतिरिक्त तमिल साहित्य की भी प्रगति हुई । 

➤तमिल का ‘ कुरल ' नामक ग्रन्थ इसी काल में लिखा गया था । 

➤पल्लवों द्वारा कांची के समीप एक मण्डप में महाभारत के नियमित पाठ का प्रबन्ध करवाया गया था । 

धर्म : 🔥

➤पल्लव शासक हिंदू धर्म को मानने वाले थे । 

➤उन्होंने विभिन्न यज्ञ किए और विष्णु , शिव , ब्रह्मा , लक्ष्मी आदि हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों को मंदिरों में प्रतिष्ठित किया ।

➤ उन्होंने संस्कृत साहित्य और हिंदू धर्म को संरक्षण प्रदान किया । 

➤कांची का स्वयं कांची नगर हिंदुओं के सात उदार थे । 

➤जैन और बौद्ध धर्म विश्वविद्यालय दक्षिण भारतीय संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था और तीर्थ नगरों में से एक प्रमुख नगर था ।

➤ पल्लव शासक धार्मिक दृष्टि से के प्रति उनका व्यवहार सहिष्णु था ।

➤ उनके समय में शैव और वैष्णव साहित्य  की प्रगति हुई । 

➤उन्होंने जैन और बौद्ध धर्म को भी संरक्षण दिया ।

कला एवं वास्तुकला :🔥

➤सुदूर दक्षिण में वास्तुकल का आरंभ पल्लव शासकों ने किया था और उनके सरंक्षण में अनेक मंदिर पहाड़ों की चट्टानों को काटकर बनाए गए जिनमें विष्णु , शिव , ब्रह्मा तथा हिंदू देवी - देवताओं की मूर्तियां प्रतिष्ठित की गई । 

➤मामल्लपुरम के शिव मंदिर , पांच पाण्डवों का मंदिर और वराह मंदिर इस समय की कला के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं । 

➤उनमें सुंदर मूर्तियां और चित्र बनवाए गए ।

➡️त्रिमूर्ति , गंगा अवतरण की मूर्ति , दुर्गा मूर्ति , वराह - मूर्ति और पांच पाण्डवों की मूर्तियां बहुत सुंदर है । 

➡️देवी - देवताओं और पशु - पक्षियों के चित्रों का यहां बहुत सजीवता से चित्रण किया गया है । 

➡️अत : पल्लव काल की कला एवं वास्तु कला भारतीय कला के इतिहास में निसंदेह एक प्रकाशमान अध्याय है । 

सामाजिक व आर्थिक स्थिति : 🔥

➤पल्लव काल में वर्ण व्यवस्था थी ।

➤ वर्ण व्यवस्था के आधार पर कार्य विभाजन था । 

➤सामंत व्यवस्था का प्रचलन था । 

➤कृषि भूमि पर अधिकतर सामंतों का अधिकार था ।

➤सभी वर्ग सामान्यतः कृषि व्यवस्था से जुड़े हुए थे । 

➤व्यापार भी उन्नत था । 

➤कपास , गुड़ , बहुमूल्य लकड़ी , गर्म मसाले इत्यादि का व्यापार किया जाता था । 

➤कृषि की उन्नति के लिए पल्लव शासकों ने नहरों , झीलों एवं का निर्माण करवाया । 

➤राज्य की आय के लिए विभिन्न तरह के 18 कर लगाये गए थे ।


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