चालुक्य वंश - बादामी, वातापि, वेंगी तथा कल्याणी के चालुक्य - उपलब्धियां नोट्स इन हिंदी
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चालुक्य वंश
चालुक्य :
➤ विंध्याचल पर्वत से लेकर कन्याकुमारी तक का विशाल प्रदेश दक्षिण प्रदेश या दक्षिणापथ कहा जाता है ।
➤सातवीं से तेहरवीं शताब्दी तक यहां अनेक राजवंश- चालुक्य , पल्लव , राष्ट्रकूट , चोल , पांड्य आदि थे ।
➤दक्षिण के इन राज्यों ने भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के उदय होने में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
➤चालुक्य वंश के अभिलेखों के आधार पर इस वंश की तीन शाखाएं मानी जाती हैं ।
➤इन्हें सूर्यवंशी तथा चन्द्रवंशी बताया गया वातापी के चालुक्य , पूर्वी या वेंगी के चालुक्य और कल्याणी के चालुक्य के नाम से थी ।
➤चालुक्य वंश की मूल शाखा बादामी अथवा वातापी के चालुक्यों की थी ।
➤पश्चिमी चालुक्य के नाम से भी पुकारा जाता है । उनकी एक थे , जिन्होंने सातवीं सदी के प्रारंभ में अपने स्वतंत्र राज्य है ।
➤ये तीन शाखाएं बादामी या कल्याणी के चालुक्य थे , जिन्हें बाद में पश्चिमी चालुक्य भी पुकारा गया और जिन्होंने दसवीं सदी के उत्तरार्ध में राष्ट्रकूट शासकों से अपने वंश के राज्य कीर्ति को स्थापित किया ।
➤संभवतः ये चालुक्य शुरुआत में अयोध्या में रहते दक्षिण में चले गये ।
➤प्रारंभिक शाखा वेंगी अथवा पिष्ठपुर के पूर्वी चालुक्य को स्थापित किया ।
बादामी के चालुक्य या वातापि के चालुक्य - 🔥
➤शाखा बादामी के चालुक्यों ने छठी सदी के मध्य काल से लेकर आठवीं सदी के मध्य काल तक के प्राय : 200 वर्षों के समय में दक्षिणापथ में एक विस्तृत राज्य का निर्माण किया ।
➤डॉ . डी . सी . ने उनको ' स्थानीय कन्नड़ परिवार ' का जिनको बाद में क्षत्रियों में स्थान प्रदान किया गया ।
➤उन्होंने अपने वंश के इस नाम को सरकार माना है चल्क , चलिक अथवा चलुक नाम के किसी प्राचीन व्यक्ति से प्राप्त किया और चालुक्य कहलाने लगे ।
➤इस वंश का सबसे पहला शासक जयसिंह था ।
➤उसके पश्चात् उसका पुत्र रणराग सिंहासन पर बैठा ।
➤रणराग का पुत्र पुलकेशिन प्रथम ( 535-566 ई . ) हुआ जिसने वातापी के किले का निर्माण किया और उसे अपनी राजधानी बनाया ।
➤उसका उत्तराधिकारी कीर्तिवर्मा प्रथम था जिसने कदम्ब , कोंकण , नल आदि राजवंशों के राजाओं को परास्त करके अपने राज्य का विस्तार किया ।
➤उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके भाई मंगलेश ने के उत्तराधिकारी पुलकेशिन द्वितीय का संरक्षक बनकर शासन किया ।
➤उसके पश्चात् पुलकेशिन द्वितीय शासक बना ।
पुलकेशिन द्वितीय ( 610-642 ई . ) :
➤पुलकेशिन द्वितीय ने अपने चाचा मंगलेश से युद्ध करके सिंहासन प्राप्त किया क्योंकि मंगलेश उसके वयस्क हो जाने के पश्चात् भी उसे सिंहासन देने के लिए तैयार नहीं हुआ था ।
➤इस कारण पुलकेशिन के शासन का प्रारंभ संघर्ष और कठिनाइयों से आरंभ हुआ परंतु उसने अपनी योग्यता से चालुक्यों को श्रेष्ठता प्रदान की ।
➤पुलकेशिन द्वितीय ने दक्षिण में कदंबों , कोंकण के मौर्यो एवं उत्तर के गुर्जरों को परास्त किया ।
➤उसने उत्तर भारत के महान सम्राट हर्षवर्धन को हराया ।
➤ पूर्व में कलिंगों को परास्त किया अपने भाई विष्णुवर्धन को राज्यपाल बनाया ।
वेंगी के चालुक्य या पूर्वी चालुक्य -🔥
➤पुलकेशिन द्वितीय ने अपने भाई विष्णुवर्धन को पिष्ठपुर का राज्यपाल बनाया था परंतु उसने बहुत शीघ्र ही अपने को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया ।
➤विष्णुवर्धन ने मकरध्वज , विषमसिद्धि नामक उपाधियां धारण की ।
➤ उसके बाद कई शासक जैसे : जयसिंह प्रथम , इन्द्र वर्मन आदि हुए ।
➤पूर्वी चालुक्यों की पहली राजधानी पिष्ठपुर थी ।
➤उसके बाद वेंगी बनी और अंत में राजमहेंद्री बनी ।
➤विष्णुवर्धन प्रथम के बाद ( 633-848 ई . ) अनेक राजाओं ने वेंगी वंश को संभाला ।
➤विजयादित्य द्वितीय और विजयादित्य तृतीय वेंगी वंश के सबसे अधिक शक्तिशाली शासक हुए ।
➤जिन्होंने पल्लव , पाण्डय , पश्चिमी गंग , दक्षिण कौशल , कलिंग , कलचुरी और राष्ट्रकूट शासकों को परास्त किया ।
➤विजयादित्य तृतीय के पश्चात् चालुक्य भीम ( 892-921 ई . ) शासक बना ।
➤उसका संपूर्ण शासनकाल राष्ट्रकूट शासक कृष्ण द्वितीय से संघर्ष करते हुए व्यतीत हुआ ।
➤वह कई बार परास्त भी हुआ परंतु इस संघर्ष ने चालुक्यों की शक्ति को दुर्बल कर दिया ।
➤राजवंश के विभिन्न व्यक्तियों ने बाहरी शक्तियों की सहायता लेकर सिंहासन पर अधिकार करने का प्रयत्न किया ।
➤1063 ई . तक वेंगी के अनेक शासकों ने शासन किया ।
➤लेकिन चालुक्यों की शक्ति निरन्तर कमजोर होती गई ।
➤अन्त में चोल शासक कुलोतुंग ने वेंगी के शासक विजयादित्य सप्तम को पराजित कर इस वंश के साम्राज्य को चोल साम्राज्य में मिला लिया ।
कल्याणी के चालुक्य ( पश्चिम चालुक्य ) - 🔥
➤कल्याणी के चालुक्य शुरुआत में राष्ट्रकूट - शासकों के अधीन थे ।
➤अंतिम राष्ट्रकूट शासक कर्क के समय में चालुक्य तैल द्वितीय ने विद्रोह किया और कर्क को परास्त करके राष्ट्रकूटों के राज्य पर अधिकार कर लिया ।
➤ इस प्रकार तैल द्वितीय ने कल्याणी के चालुक्यों के साम्राज्य का निर्माण राष्ट्रकूट साम्राज्य के अवशेषों पर किया ।
➤अपने साम्राज्य का विस्तार इन्होंने कल्याणी से शुरू तैल के उत्तराधिकारी द्वितीय [ तैल द्वितीय ( 993-97) चेदी , उड़ीसा , कुंतल इनके पश्चात् सोमेश्वर प्रथम सत्याश्रय ( 997-1008 ई . )] हुआ।
➤उसने चालुक्यों के एक बड़े व स्वयं को बादामी के महान वंशज बताया था ।
➤उसने ' महाराजाधिराज ' चक्रवर्ती ' नामक उपाधियां धारण की ।
चालुक्य शासकों ' परमेश्वर ', विक्रमादित्य पंचम ( 1008-1014 ई . ) , अय्यन जयसिंह द्वितीय ( 1015-1043 ई . ) इस वंश के अन्य शासक रहे । ( 1043-1068 ई . ) शासक बना ।
➤उसने कोंकण को जीता तथा मालवा , गुजरात , दक्षिण कौशल तथा केरल पर आक्रमण किए ।
➤कलचुरी शासक राजाधिराज ने सोमेश्वर की लूटने में सफलता पाई परंतु वह संघर्ष करता रहा और अंत में एक युद्ध में गया ।
➤उसके भाई राजेंद्र चोल द्वितीय ने सोमेश्वर के आक्रमणों के विरुद्ध चोल करने में सफलता पाई और अंत में ( 1063 ई . ) सोमेश्वर की पराजय हुई।
➤ सोमेश्वर प्रथम के पश्चात् सोमेश्वर द्वितीय ( 1068-1076 ई . ) और उसके पश्चात् विक्रमादित्य षष्ठ ( 1076-1126 ई . ) शासक बना ।
➤ विक्रमादित्य ने अनेक राजाओं से युद्ध करके अपने राज्य का विस्तार किया ।
➤उसका राज्य उत्तर में नर्मदा नदी और दक्षिण में कड़प्पा तथा मैसूर तक फैला हुआ था ।
➤विक्रमादित्य के पश्चात् सोमेश्वर तृतीय ( 1126-1138 ई . ) और जगदेव मल्ल ( 1138-1151 ई . ) तैल शासक हुए ।
➤ तैल के समय में चालुक्य राज्य छिन्न - भिन्न हो गया ।
➤इस वंश का अन्तिम शासक सोमेश्वर चतुर्थ था ।
➤अन्त में 1190 ई . में यादव एवं होयसल शासकों ने इस साम्राज्य का अन्त कर दिया ।
चालुक्य शासकों की उपलब्धियां : 🔥
विशाल साम्राज्य की स्थापना :
➤चालुक्य वंश के शासकों ने दक्षिणापथ में एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया ।
➤इस वंश के शासकों में अनेक महान योद्धा हुए और उन्होंने उत्तरी तथा दक्षिणी भारत के अनेक शासकों को परास्त करने में सफलता पाई ।
➤पुलकेशिन द्वितीय और कुछ अन्य शासकों ने अश्वमेध यज्ञ भी किये ।
➤चालुक्य शासकों का राज्य आर्थिक दृष्टि से संपन्न था और उसके अंतर्गत कई अच्छे बंदरगाह थे जिनसे विदेशी व्यापार को बढ़ावा मिला ।
धामिक सहनशीलता :
➤धार्मिक दृष्टि से चालुक्य शासक हिंदू धर्म के अनुयायी थे ।
➤उन्होंने प्राचीन वैदिक धर्म के अनुसार अनेक यज्ञ किए और उनके समय में कई धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई ।
➤उन्होंने हिंदू धर्म को संरक्षण देकर विष्णु तथा शिव के मंदिरों का निर्माण कराया ।
➤लेकिन अन्य धर्मों के प्रति उनका व्यवहार सहनशीलता का था ।
➤चालुक्य शासकों ने जैन धर्म व बौद्ध धर्म को भी सहायता प्रदान की ।
➤इसके अतिरिक्त मुंबई के थाना जिले में पारसियों को बसने की आज्ञा दी ।
➤चालुक्य राज्य में 100 से अधिक बौद्ध विहार थे जिनमें 5000 भिक्षु निवास करते थे ।
स्थापत्य कला का विकास वास्तुकला की प्रगति :
➤सबसे अधिक इस समय में हुई ललित कला पकर चित्रकला व जंता के भित्ति चित्रों में से कुछ निर्माण चालुक्य शासकों के समय में हुआ ।
➤चालुक्यों ने अपनी पृथक वेसर - शैली का विकास किया ।
➤वास्तु कला के क्षेत्र में चालुक्यों के समय की एक मुख्य विशेषता पहाड़ों और चट्टानों को काटकर बड़े - बड़े मंदिरों पट्टदूकल का निर्माण था ।
➤उनके समय में विभिन्न हिंदू गुफा मंदिरों और चैत्य हालों का निर्माण किया गया ।
➤ सम्राट मंगलेश ने वातापी में विष्णु के गुफा मंदिर का निर्माण कराया ।
➤बादामी , ऐलोरा , ऐलीफंटा , औरंगाबाद , अंजता आदि में पर्वतों को काटकर सुन्दर मन्दिरों का निर्माण किया गया ।
शिक्षा व साहित्य क्षेत्र में प्रगति :
➤चालुक्य शासक शिक्षा एवं साहित्य के महान प्रेमी थे ।
➤उन्होंने विभिन्न • स्थानों पर विद्यालय एवं महाविद्यालयों का निर्माण करवाया तथा साहित्यकारों एवं लेखकों को अपने दरबार में संरक्षण दिया ।
➤चालुक्यों ने संस्कृत भाषा को अत्यधिक महत्व दिया ।
➤उस समय अवलंक ने ' अष्टशती ' , विज्ञानेश्वर ने ' मिताक्षरा ' पुस्तक लिखी ।
➤कन्नड़ भाषा के ग्रंथ ' कविराजमार्ग ' शांतिपुराण , गदायुद्ध आदि भी इस युग में लिखे गये है ।
➤विल्हण का ‘ विक्रमांकदेवचरित ' व सोमदेव सूरी को ' वाक्यामृत ' इस युग में लिखे गए प्रमुख ग्रन्थ हैं ।
आर्थिक जीवन :
➤लोगों का आर्थिक जीवन खुशहाल था ।
➤मुख्य व्यवसाय कृषि ही था ।
➤भू - राजस्व भूमि की उपजाऊ शक्ति पर आधारित था ।
➤उस समय गर्म मसालों एवं बहुमूल्य लकड़ी का व्यापार भी किया जाता था ।
प्रशासनिक व्यवस्था :
➤चालुक्यों की प्रशासनिक व्यवस्था उच्च कोटि की थी ।
➤शासक प्रशासनिक इकाई का केन्द्र बिन्दु था तथा उनके पास असीमित शक्तियां थी ।
➤वे अपनी शक्तियों का प्रयोग जनता की भलाई के लिए करते थे ।