भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना अर्थव्यवस्था क्या है तथा इसके विभिन्न क्षेत्रक कौन से है Structure of Indian Economy

भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना (Structure of Indian Economics)


Content :

 

 

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अर्थव्यवस्था से आशय :

➤देश के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत किया जाता है । 

➤अर्थव्यवस्था एक ऐसा ढ़ांचा है जिसके अन्तर्गत देश की आर्थिक क्रियाओं का संचालन किया जाता है । 

➤इसमें सभी क्षेत्रों द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करना , देश के लोगों द्वारा इनका उपभोग करना , लोगों को रोजगार प्रदान करना , निर्यात करना आदि को सम्मिलित किया जाता है । 

भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना :

➤अर्थव्यवस्था की संरचना से आशय एक अर्थव्यवस्था का उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में वितरण से है । 

➤देश की अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों जैसे- कृषि , उद्योग , बैंक , बीमा , परिवहन एवं अन्य सेवाओ आदि से सम्बन्धित क्रियाओं का संचालन होता है । 

भारतीय अर्थव्यवस्था को क्रियाओं के आधार पर  तीन भागों में बांटा जाता है -

1. प्राथमिक क्षेत्र ( कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र ) :

➤भारतीय अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र के अन्तर्गत कृषि एवं कृषि से सम्बन्धित कार्यों को सम्मिलित किया जाता है । 

➤जैसे- पशुपालन , मछली पालन ( मात्स्यिकी ) , वानिकी आदि । 

2. द्वितीयक क्षेत्र ( उद्योग क्षेत्र ) :

➤अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के उद्योग ( निवेश के आधार पर लघु , मध्यम एवं वृहद उद्योग ; स्वामित्व के आधार पर सार्वजनिक एवं निजी उद्योग ) , निर्माण , गैस तथा विद्युत - उत्पादन आदि को शामिल किया जाता है ।

3. तृतीयक क्षेत्र ( सेवा क्षेत्र ) :

➤तृतीयक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की सेवाओं जैसे- बैंक , बीमा , परिवहन , संचार , व्यापार , होटल , लोकप्रशासन , सामाजिक एवं वैयक्तिक सेवाएं आदि को सम्मिलित किया जाता है , इसी कारण से इसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है । 

➤यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था के प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । 

🔥भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना को निम्नलिखित चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है -


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भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन 

➤जब देश में आर्थिक विकास की प्रक्रिया चलती है तो उसकी अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन आते हैं । 

➤विकास की प्रारम्भिक अवस्था में देश की अधिकांश जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र में कार्य करती रहती है । 

➤जैसे - जैसे अर्थव्यवस्था का विकास होने लगता है , वैसे - वैसे जनसंख्या का अनुपात प्राथमिक क्षेत्र में कम तथा द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में बढ़ने लगता है साथ ही राष्ट्रीय आय में द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र का योगदान में वृद्धि होती जाती है । 

➤भारत एक कृषि प्रधान देश है परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् आर्थिक नियोजन के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन आये हैं । 

➤इस काल में अर्थव्यवस्था के द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में तेजी से विकास हुआ है । 

➤देश की राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र के भाग में कमी हुई है जबकि द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र के भाग में बढ़ोत्तरी हुई है ।


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भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं :

➤सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक , भौगोलिक एवं जनसंख्या आदि की दृष्टि से भारत एक विशिष्ट देश है । 

➤जनसंख्या की दृष्टि से भी भारत एक विशाल देश है जहां विश्व की 17.5 प्रतिशत ( 121.02 करोड़ ) जनसंख्या निवास करती है ।

🔥इन विशेषताओं को दो भागों में बांटा जा सकता है : 

1. परम्परागत विशेषताएं

2. नवीन विशेषताएं 

1. परम्परागत विशेषताए

➤विशेषताएं आतीं हैं जो भारत को विरासत में मिलीं हैं एवं इसके अल्पविकसित स्वरूप को प्रकट करती हैं।

(1). कृषि की प्रधानता : 

➤भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ पर कृषि की प्रधानता है । 

➤भारत में कुल कार्यशील जनसंख्या का लगभग 64 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप में कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र में कार्य कर रहा है । 

➤देश की राष्ट्रीय आय का 20 प्रतिशत कृषि क्षेत्र से ही आता है ।

➤देश के कुल निर्यात में लगभग 10 प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र का ही होता है । 


(2). ग्रामीण अर्थव्यवस्था : 

➤भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था है । 

➤यहाँ की 74.2 करोड़ जनसंख्या ( सन् 2001 की जनगणना के अनुसार देश की कुल जनसंख्या का 72.2 प्रतिशत ) 6.41 लाख गांवों में निवास कर रही है जिसका अधिकांश भाग आजीविका हेतु कृषि पर निर्भर है । 


(3). प्रति व्यक्ति निम्न आय स्तर : 

➤भारतीय अर्थव्यवस्था की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ पर प्रति व्यक्ति आय का स्तर बहुत निम्न है । 

➤भारत में प्रति व्यक्ति आय लगभग 750 डॉलर है 

➤स्विटजरलैण्ड में प्रति व्यक्ति आय 35,370 डॉलर , 

➤अमेरिका में 39,710 डॉलर , 

➤स्वीडन में 29,770 डॉलर

➤जर्मनी में 27950 डॉलर है ।


(4). पूँजी निर्माण की निम्न दर : 

➤किसी भी देश में पूँजी निर्माण की दर पर निर्भर करता है कि वह देश कितनी तेजी से विकास करेगा । 

➤भारत में पूँजी निर्माण की दर भी निम्न है , जिसका मुख्य कारण देश में राष्ट्रीय आय कम होने एवं इसका बड़ा भाग उपभोग पर व्यय हो जाने से बचत का कम होना है । 

➤वर्ष 2007-08 में भारत में सकल घरेलू बचत की दर GDP का 37.7 प्रतिशत तथा सकल घरेलू पूँजी निर्माण की दर 39.1 प्रतिशत थी । 


(5). आर्थिक विषमता : 

➤भारत में व्याप्त आर्थिक विषमता अर्थव्यवस्था के समुचित विकास में बाधा उत्पन्न करती है।

➤देश में 40 प्रतिशत जनसंख्या को राष्ट्रीय आय का मात्र 19.7 प्रतिशत भाग ही मिल पाता है । 

➤यहाँ की 21.8 प्रतिशत जनसंख्या का गरीबी की रेखा के नीचे निवास करती है जिन्हें आवश्यक पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता है । 


(6). बेरोजगारी की अधिकता : 

➤भारतीय अर्थव्यवस्था की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ पर बेरोजगारी की अधिकता है ।

➤ वर्तमान आँकड़ों के अनुसार देश में लगभग 4 करोड़ व्यक्ति बेरोजगार हैं । 

बेरोजगार - यह ऐसे व्यक्ति हैं जो कार्य करने में सक्षम हैं और कार्य करने की इच्छा भी रखते हैं परन्तु उन्हें रोजगार नहीं मिल पाता है । 


(7). जनसंख्या का दबाव : 

➤भारत एक विशाल देश है जहाँ की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है । 

➤भारत की कुल जनसंख्या 121.02 करोड़ है जो विश्व की कुल जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत निवासित है जबकि उसके पास विश्व क्षेत्रफल का केवल 2.42 प्रतिशत भाग ही है । 

➤भारत में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि का प्रमुख कारण जन्मदर ( 22.22 प्रति हजार ) एवं मृत्युदर ( 6.4 प्रति हजार ) में पर्याप्त अन्तर होना भी है । 

उल्लेखनीय है कि विश्व में भारत की जनसंख्या चीन के पश्चात् दूसरे स्थान पर है । 


(8). निम्न औसत आयु : 

➤एक देश में लोगों की औसत आयु को विकास का पैमाना माना जाता है । 

➤भारत में वर्ष 2009 में यह 69.89 वर्ष आंकलित की गयी है ,

➤जापान में 81 वर्ष , स्विटजरलैण्ड में 80 वर्ष तथा अमेरिका एवं ब्रिटेन में 77 वर्ष है । 


(9). तकनीकी कौशल एवं पिछड़ेपन की समस्या : 

➤भारत में शिक्षा , तकनीकी शिक्षा एवं अन्य आवश्यक सुविधाओं के अभाव के कारण तकनीकी कौशल का अभाव पाया जाता है । साथ ही उत्पादन इकाईयों में पुरानी विधियों एवं उपकरणों का उपयोग किया जाता है ।


(10). यातायात एवं संचार साधनों की कमी : 

➤ इन साधनों के अभाव में देश के अनेक भागों में उपलब्ध खनिज पदार्थ अप्रयुक्त स्थिति में हैं । 


(11). प्राकृतिक साधनों का अपूर्ण उपयोग : 

➤प्राकृतिक साधन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । 

➤भारत में प्राकृतिक साधन प्रचुर मात्रा में हैं परन्तु तकनीकी ज्ञान एवं यन्त्रीकरण की कमी के कारण देश में प्राकृतिक साधनों का उचित प्रकार से उपयोग नहीं हो पाया है और यह अप्रयुक्त पड़े हुए हैं । 


(12). साक्षरता की निम्न दर : 

➤शिक्षा विकास की प्रथम सीढ़ी है । 

➤देश में साक्षरता दर एवं विकास की दर में सीधा धनात्मक सम्बन्ध होता है । 

➤जनगणना 2011 के शुरूआती आँकड़ों के अनुसार भारत में साक्षरता की दर 74.04 प्रतिशत है । 


(13). रूढ़िवादी , भाग्यवादी एवं परम्परावादी समाज : 

➤भारतीय अर्थव्यवस्था की एक विशेषता यहाँ का रूढ़िवादी , भाग्यवादी एवं परम्परावादी समाज भी है । 

➤यहाँ के परम्परावादी समाज में विभिन्न प्रकार की सामाजिक प्रथाएं , कुरीतियां एवं अन्धविश्वास ( जैसे- बाल - विवाह , पर्दा - प्रथा , स्त्रियों की निम्न दशा , मृत्युभोज आदि ) व्याप्त हैं , जिनका अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है । 


2. नवीन विशेषताए :

➤विशेषताएं आतीं हैं जो भारत को तेजी से विकास की ओर अग्रसर राष्ट्र के रूप में स्थापित करती हैं । 

(1). नियोजित अर्थव्यवस्था :

➤स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था थी । 

➤भारत में 1 अप्रैल , 1951 से प्रथम पंचवर्षीय योजना को लागू किया गया । 

➤इसके कारण गरीबी , बेरोजगारी , जनसंख्या की वृद्धि दर आदि में कमी आई है जबकि आय , उत्पादन , रोजगार एवं बुनियादी सुविधाओं में वृद्धि हुई है । 

➤पिछले पांच वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर औसतन 8.2 प्रतिशत रही है । 


(2). समावेशी विकास की अवधारणा की पालन : 

➤भारत की सरकार ने ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना ( 2007-2012 ) में समावेशी विकास की अवधारणा को स्वीकार कर लिया है । 

➤सरकार ने इस योजना में समावेशी विकास की अवधारणा को अपनाकर विकास के लाभ से वंचित क्षेत्रों एवं वर्गों ( जैसे कृषि , शिक्षा , स्वास्थ्य अवसंरचना क्षेत्र एवं महिला , दलित / पिछड़े , गरीब वर्ग ) को विशेष प्राथमिकता दी है जो निश्चित ही भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक सुदृढ़ता प्रदान करेगी । 


(3). बुनियादी ढाँचे का विकास : 

➤बुनियादी ढांचे की सुदृढ़ता किसी भी विकास की धुरी होती है । 

➤भारत में जून 1969 में व्यापारिक बैंकों की 8,262 शाखाएं थीं जो जून 2008 में बढ़कर 76,885 हो गई ।

➤रेलमार्ग 1950-51 में 53,596 किलोमीटर की तुलना में बढ़कर 63,327 किलोमीटर हो गया है। 

➤सड़कों की लम्बाई 4 लाख किलोमीटर से बढ़कर 33.4 लाख किलोमीटर हो गई है । 

➤विद्युत उत्पादन 1950-51 में 5 बिलियन किलोवाट से बढ़कर 2009-10 में 771.5 बिलियन किलोवाट हो गया है । 

➤इसी प्रकार बीमा , कृषि यन्त्रीकरण , शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी तेजी से वृद्धि हुई है ।


(4). नवीन उद्योगों की स्थापना : 

➤भारतीय अर्थव्यवस्था की एक विशेषता है कि नियोजन के प्रारम्भ हाने से यहाँ पर नये - नये उद्योगों की स्थापना हुई है । 

➤इन उद्योगों में ऐसी वस्तुओं का उत्पादन किया जा रहा है जिनका स्वतन्त्रता के समय विदेशों से आयात किया जाता था जैसे- हवाई जहाज , मोटर गाड़ियाँ , पनडुब्बिया , दवाईयां आदि ।


(5). प्रति व्यक्ति आय में वृद्धिः 

➤देश में कुछ वर्षों से प्रति व्यक्ति आय में तेजी से वृद्धि हुई है जो देश के विकास को प्रदर्शित करता है । 

➤वर्तमान की कीमतों के आधार पर -

1950-51 में प्रति व्यक्ति आय 255 रु.

1999-2000 में 15,881 रूपये , 

2007-08 में 33,283 रूपये

2011 में बढ़कर 36,003 रूपये।


(6). बचत एवं विनियोग की दर में वृद्धि : 

➤भारत में बचत एवं पूँजी निर्माण की दर में भी तेजी आई है । 

वर्ष 1950-51 में सकल घरेलू बचत की दर 8.6 प्रतिशत एवं विनियोग की दर 8.4 प्रतिशत थी । 

➤वर्ष 2007-08 में सकल घरेलू बचत की दर 37.7 प्रतिशत एवं विनियोग की दर बढ़कर 39.1 प्रतिशत हो गई । 


(7). समाजवादी समाज की स्थापना : 

➤भारतीय अर्थव्यवस्था समाजवादी समाज की स्थापना की ओर अग्रसर है जो इसकी प्रमुख नवीन विशेषता है । 

➤जमींदारी प्रथा का उन्मूलन , बन्धुआ मजदूर प्रथा का उन्मूलन , भूमि पर कृषक को अधिकार दिलाना , किसानों को ऋण मुक्ति आदि के साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र का विकास एवं सामाजिक सेवाओं का विस्तार | 


(8). भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्वव्यापीकरण : 

➤भारत की आर्थिक नीति में वर्ष 1991 में अपनाई गई उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की प्रक्रिया के कारण भारत की अर्थव्यवस्था विश्वव्यापीकरण हुआ है ।


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