गौतमी पुत्र शतकर्णी तथा उपलब्धियां - सातवाहन वंश - प्राचीन भारतीय इतिहास Notes in Hindi

गौतमी पुत्र शतकर्णी तथा उपलब्धियां - सातवाहन वंश - प्राचीन भारतीय इतिहास Notes in Hindi.


गौतमी पुत्र शतकर्णी ( 70 ई०-95 ई ० ) 🔥

➤गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी ( 70 ई०-95 ई ० ) लगभग आधी शताब्दी की उठा - पटक तथा शक शासकों के हाथों मान मर्दन के बाद गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी के नेतृत्व में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा का पुर्नस्थापित कर लिया । 
➤गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी सातवाहन वश का सबसे तहान यासक था जिसन लगभग सातवाहन राजवश में - 25 वर्षो तक शासन करते हुए न केवल अपने साम्राज्य की खोई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित किया अपितु एक विशाल सम्रा काम स्थापना की ।
➤ गौतमी पुत्र के समय तथा उसकी विजयों के बारे में हमें उसकी माता गौतमी बालश्री के नासिक शिलालेखा र सम्पूर्ण जानकारी मिलती है । 
➤उसके सन्दर्भ में हमें इस लेख से यह जानकारी मिलती है कि उसने क्षत्रियों के अहकार का मान मर्दन किया उसका वर्णन शक , यवन तथा पहलाव शससकों के विनाश कर्ता के रूप में हुआ है ।
➤ उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्षहरात देश के शक शासक नहपान तथा उसके वंशजों की उसके हाथों हुई पराजय थी 
➤जो गलथम्बी ( नासिक ) समुह से प्राप्त नहगान के चान्दी के सिक्कें जिन्हें कि गौतमी पुत्र शातकर्णी ने दुबारा ढलवाया।
➤ अपने शासन काल के अठारहवें वर्ष में गौतमी पुत्र द्वारा नासिक के निकट पांडु लेण में गुहादान करना- ये कुछ ऐसे तथ्य है जो यह प्रमाणित करतें है कि उसने शक शासकों द्वारा छाने गए प्रदेशः को पुर्नविजित कर लिया ।
➤ नहपान के साथ उनका युद्ध उसके शासन काल के 17 वें और 18 वें वर्ष में हुआ तथा इस युद्ध में जीत कर गौतमी पुत्र ने अपरान्त , अनूप , सौराष्ट्र कुकर , अकर तथा अवन्ति को नहपान से छीन लिया ।
➤ इन क्षेत्रों के अतिरिक्त गातमी पुत्र का क्षेत्र -
ऋशिक ( कृष्णा नदी के तट पर स्थित ऋशिक नगर ) , 
अयमक ( प्राचीन हैदराबाद राज्य का हिस्सा ) 
मूलक ( गोदावरी के निकट एक प्रदेश जिसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी ) 
विदर्भ ( आधुनिक बरार क्षेत्र ) 
➤उसके प्रत्यक्ष प्रभाव में रहने वाला क्षेत्र उत्तर में मालया तथा काठियावाड से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक तथा पूर्व में बरार से लेकर पश्चिम में काक तक फैला हुआ था । 
➤उसने त्रि - समुद्र - तोय - पीत - वाहन उपाधि धारण की।
➤उसका प्रभाव पूर्वी पश्चिमी तथा दक्षिणी सागर अर्थात बंगाल की खाड़ी अरब सागर एवं हिन्द महासागर तक था । 
➤ऐसा प्रतीत होता है कि अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले गौतमी पुत्र शातकर्णी द्वारा नहपान को हराकर जीते गए क्षेत्र उसके हाथ से निकल गए । 
➤गौतमी पुत्र से इन प्रदेशों को छीनने वाले संभवतः सीथियन जाति के ही करदामक वंश के शक शासक थे इसक से प्रमाण हमें ऑलमी द्वारा भूगोल का वर्णन करती उसकी पुस्तक से मिलता है । 
➤ऐसा ही निष्कर्ष 150 ई ० के प्रसिद्ध रूद्रदमन के जूनागढ के शिलालेख से भी निकाला जा सकता है । 
➤यह शिलालेख दर्शाता है कि नहपान से विजित गौतमीपुत्र शासकर्णी क सभा प्रदेश को उसस रूद्रदमन ने हथिया लिया ऐसा प्रतीत होता है कि गौतमीपुत्र शातकर्णी ने करदामक शकों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर रुद्रदमन द्वारा हथियाए गए अपने क्षेत्रों को सुरक्षित करने का प्रयास किया । 
➤कन्हेरी से प्राप्त एक शिलालेख से यह पता चलत है कि वशिष्ठीपुत्र शातबर्णी , जो कि संभवतः गौतमीपुत्र शतकर्णी के समय का है।


गौतमी पुत्र शतकर्णी की उपलब्धियां 🔥

➤ गौतमीपुत्र शातकर्णि एक योग्य , कुशल एवं दूरदर्शी शासक होने के साथ ही जनता में लोकप्रिय एवं आदर का पात्र था । 
➤वह अत्यंत रूपवान तथा प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी था । 
➤वह बलिष्ठ शरीर एवं लम्बी भुजाओं वाला व्यक्ति था । 
➤अपनी माता का अत्यंत आदर करता था । 
➤साहसी एवं शक्तिशाली होने के साथ ही वह अत्यंत दयालु शासक भी था । 
➤गौतमीपुत्र एक प्रजावत्सल शासक था तथा उसी के अनुरूप वह कार्य करता था । 
➤प्रज्ञा की खुशी के लिए वह उत्सव एवं समाज भी करवाता था । 
➤गौतमीपुत्री ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था तथ उसके विकास के लिए उसने प्रयत्न भी किए । 
➤गौतमीपुत्र यद्यपि ब्राह्मण - धर्म का अनुयायी था किन्तु वह धार्मिक क्षेत्र में असहिष्णु था।
➤गौतमीपुत्र ने विन्ध्यपति व राजराजा , आदि उपाधियां धारण की थीं । 
➤उसकी मृत्यू 130 ई . में हुई । 
विजय एवं साम्रज्य विस्तार -
➤गौतमीपुत्र शातकर्णि सातवाहन वंश का सबसे प्रतापी शासक था । 
➤वह साम्राज्यवादिता में विश्वास रखता था , उसने अपने साम्राज्य की सीमाओं को दूर - दूर तक विस्तृत किया ।
➤गौतमीपुत्र शातकर्णि के शासक बनने से पूर्व शकों ने सातवाहनों के अनेक प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था । 
➤गौतमीपुत्र शकों का परास्त करके न केवल खोए हुए प्रदेशों को प्राप्त किया वरन् अपने साम्राज्य का विस्तार भी किया । 
➤शकों को परास्त करने से उसका गुजरात , सौराष्ट्र , पश्चिमी राजपूताना , मालवा , बरार तथा उत्तरी कोंकण पर अधिकार हो गया । 
➤नासिक अभिलेख से ज्ञात होता हैं कि गौतमीपुत्र शकों यवनों , पल्लवों एवं क्षहरातों का विनाश कर सातवाहनों की प्रतिष्ठा पुनर्स्थापित की । 
➤उसने क्षहरातों का विशेष रूप से नाश किया था । 
➤नासिक से चांदि के सिक्कों में जो भाण्ड मिला हैं , उसमें नहपान ( क्षहरात शासक ) के ऐसे भी सिक्के हैं जिनको गौतमीपुत्र ने अपनी राजमुद्रा से पुनः अंकित किया हैं । 
➤अतः क्षहरातों पर इसकी विजय प्रमाणित हो जाती हैं । 
➤नासिक के गुहालेख में गौतमीपुत्र शातकर्णि की विजयों का उल्लेख करते हुए कहा गया है , उसके वाहनों ने तीन समुद्रों का जल पिया ..... उसका राज्य ऋषिक ( गोदावरी नदी का तटवर्ती प्रदेश ) , मूलक ( पैठन का निकटवर्ती क्षेत्र ) कुकुर ( उत्तरी काठियावाड़ ) , अपरान्त , अनूप , विदर्भ , अवन्ति तक विस्तृत था । 
➤ अपनी विजयों के द्वारा उसने अपने साम्राज्य का विस्तार किया ।
➤ गौतमीपुत्र का साम्राज्य पूरब में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक तथा उत्तर में सौराष्ट्र एवं मालवा से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक विस्तृत था । 
➤वह प्रजा के सुख में सुखी व दुःख में दुखी होता था । 
➤पौर जननिविसेस सम दुःख दुःखस 
➡️निर्भिकता उसकी विशेषता थी 
➡️ बड़ो के प्रति व माँ के प्रति विनम्र व आज्ञाकारी था
➡️गोतमीपूत्र को तीन समुद्रो का स्वामी कहा हैं
➡️उसने अपराजित लोगों को पराजित किया हैं 
➡️उसे दाताओं का दाता व शत्रु के प्रति उदार रहने वाला बताया 
शातकर्णि क्षत्रिय- 
➤हाथी गुफा अभिलेख में शातकर्णि का उल्लेख मिलता है , साथ ही राजशेखर द्वारा रचित काव्यमीमांस तथा वात्सायन के काम सूत्र में भी वर्णन मिलता है । 
हाल- 
➤यह आंध्र सातवाहन का वंशावली के कम में 19 वें नम्बर का शासक था , इसने गाथा सप्तसदी की रचना की जो एक प्रेम गाथा है ।
➤ इसका सेनापति विजयानंद था जो कि लंका व्यापार के लिये जाता था वहां की राजकुमारी लीलावती के बारे में हाल को बताता है तथा हाल उससे विवाह कर लेता हैं ।

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