हर्षवर्धन - विजय एवं प्रशासन। हर्षवर्धन की दिग्विजय। Harshvardhan digvijay evam prashasan Notes - Prachin Bhartiy Itihas

हर्षवर्धन - विजय एवं प्रशासन। हर्षवर्धन की दिग्विजय। Harshvardhan digvijay evam prashasan Notes - Prachin Bhartiy Itihas 


हर्षवर्धन 🔥

➤हर्षवर्धन , वर्धन राजवंश का सर्वाधिक शक्तिशाली और प्रतापी राजा था ।
➤ गुप्तकाल के पतन के बाद राजनैतिक विखण्डन को एक सूत्र में पिरोने का कार्य भी हर्षवर्धन ने किया । 
➤हर्ष ने अपनी तलवार के बल पर उत्तर भारत में एक राजनैतिक एकता स्थापित कर दी थी । 
➤हर्षवर्धन लगभग 16 वर्ष की आयु में 606 ई ० में वर्धन राजवंश का शासक बना । 
➤इस अवसर पर हर्षवर्धन नया संवतः चलाया । जो हर्ष संवत् के नाम से जाना जाता है । 
➤हर्षवर्धन का जन्म लगभग 590-91 ई 0 में थानेश्वर में हुआ था । 
➤उसके पिता का नाम महाराजा प्रभाकरवर्धन तथा माता का नाम यशोमति था । 
➤हर्षवर्धन के बड़े भाई का नाम राज्यवर्धन तथा बहिन राज्यश्री ( मौखरी नरेश ग्रहवर्मा की पत्नी ) थी । 
➤हर्ष बड़ी ही विकट परिस्थितियों में सिंहासन संभाला । 
➤माता - पिता की मृत्यु भाई राज्यवर्धन तथा बहनोई कन्नौज नरेश ग्रहवर्मा की हत्या एवं बहिन राज्यश्री का बंदी ग्रह में कैद होना आदि घटनाओं ने हर्ष के हृदय को विचलित कर दिया था , इसका मार्मिक विवरण बाणभट्ट ने हर्षचरित में दिया है । 
➤242 हर्षवर्धन ने सिंहासन पर बैठते ही राज्यवर्धन के हत्यारे गौड़ नरेश शशांक को मारने का संकल्प लिया । 
➤हर्ष ने एक बड़ी सेना के साथ कन्नौज की ओर प्रस्थान किया ।
➤ किन्तु रास्ते में ही हर्ष को सूचना मिली कि , शशांक ने राज्यश्री को कैद से मुक्त कर दिया है और राज्यश्री विंध्य के जंगलों में चली गयी है । 
➤अब हर्ष का उद्देश्य पहले राज्य को खोजना हो गया । 
➤विध्य के जंगलों में राज्यश्री को खोजते हुए संयोगवश ग्रहवर्मा के बयपन के दोस्त दिवाकर मित्र जो बौद्ध भिक्षु बनकर विंध्य के जंगलों में रह रहा था के सहयोग से हर्षवर्धन ने राज्यश्री को खोज लिया । 
➤जब राज्यश्री मिली तब वह अपनी जीवनलीला समाप्त करने के लिए अग्नि में प्रवेश कर रही थी । 
➤किसी भी प्रकार से हर्ष और दिवाकरमित्र राज्यश्री को समझाने में सफल रहे । 
➤अब हर्ष ने आगे बढ़कर कन्नौज पर आधिपत्य स्थापित कर लिया ।
➤ हर्ष अपनी बहिन राज्यश्री के साथ कन्नौज का शासन करने लगा ।
➤ चीनी स्त्रोत शे - किअ - फेंग - चे से सभी ज्ञात है कि हर्ष अपनी बहिन की सहायता से कन्नौज का शासन संचालन कर रहा था । 
➤अब हर्ष थानेश्वर और कन्नौज दोनों का शासक बन गया था , कालान्तर में हर्षवर्धन ने थानेश्वर के स्थान पर कन्नौज को ही अपनी राजधानी बनाया और समस्त उपलब्धियाँ कन्नौज के शासक के रूप में ही प्राप्त की ।

हर्षवर्धन की विजय 🔥

1. गौड़ प्रदेश की विजय :

➤गौड़ ( बंगाल ) का शासक शशांक हर्ष का सबसे बड़ा शत्रु था । 
➤वह शैव मत को मानता था ।
➤ वह बौद्ध मत का घोर विरोधी था ।
➤ उसने पवित्र ' गया ' का बौद्ध वृक्ष भी कटवा दिया था । 
➤शुरू में हर्ष ने भंडी को सेना के साथ गौड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजा परन्तु भंडी और सेना उसका पूरी तरह से दमन नहीं कर सके । 
➤बाद में हर्ष ने कामरूप के राजा ' भास्करवर्मन ' से संधि कर ली तथा इन दोनों ने मिलकर शशांक को बुरी तरह से पराजित किया । 
➤अंत में शशांक को युद्ध छोड़कर जान बचाकर भागना पड़ा ।

2. पांच प्रदेशों की विजय :

➤ह्वेनसांग के अनुसार हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल के प्रारम्भिक 6 वर्षों ( 606 ई . से 612 ई . तक ) पांच प्रदेशों के शासकों से निरंतर युद्ध किए । 
➤इन युद्धों के अंत में हर्ष की ही विजय हुई और हर्ष ने इन्हें अपने राज्य में मिला लिया । 
➤ये पांच राज्य पंजाब , 1 कन्नौज , बिहार , बंगाल और उड़ीसा थे । 
➤इन विजयों से हर्ष की प्रतिष्ठा व कीर्ति बढ़ गई थी ।

3. वल्लभी की विजय :

➤हर्षवर्धन के समय में ' वल्लभी ' ( गुजरात ) एक शक्तिशाली व संपन्न राज्य था । 
➤भौगोलिक दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण था ।
➤ हर्षवर्धन ने 630 ई . में एक विशाल सेना के साथ वल्लभी पर आक्रमण कर दिया । 
➤वहां ध्रुवसेन द्वितीय का शासन था । 
➤इस युद्ध में ध्रुवसेन की पराजय हुई और उसे भड़ौच के राजा दद्दा द्वितीय के पास शरण लेनी पड़ी ।
➤ दद्दा के कहने पर हर्ष ने ध्रुवसेन का राज्य उसे लौटा दिया तथा ध्रुवसेन ने हर्षवर्धन की अधीनता स्वीकार कर ली । 
➤हर्ष ने अपनी पुत्री का विवाह ध्रुवसेन से करके उसे अपना जमाता बना लिया ।

4. कामरूप की विजय :

➤हर्षवर्धन ने कामरूप ( असम ) के शासक भास्करवर्मन को पराजित करके उसके राज्य को भी अपने अधीन कर लिया था किन्तु हर्ष ने शशांक को हराने के लिए भास्करवर्मन की सेवाओं को ध्यान में रखते हुए उसे उसका राज्य वापस कर दिया । 
➤भास्करवर्मन ने हर्ष की अधीनता पहले ही स्वीकार कर ली थी । 
➤कन्नौज सम्मेलन के दौरान उसने कई हाथी उपहार में दिए थे । 

5. सिंध पर विजय :

➤प्रभाकरवर्धन ने सिंध के राजा को पराजित करके सिंध अधिकार था किन्तु उसकी मृत्यु के बाद अराजकता का लाभ उठाकर सिंध ने पुनः स्वतंत्रता प्राप्त कर ली । 
➤हर्ष ने अपनी स्थिति सुदृढ़ करके सिंध विजय प्राप्त की ।

6. कश्मीर की विजय :

➤ हर्षवर्धन के शासनकाल में कश्मीर जाता है कि कश्मीर के एक विहार में महात्मा बुद्ध का एक पवित्र दांत रखा था जिसमें सदैव रोशनी रहती थी । 
➤हर्ष ने कश्मीर के राजा दुर्लभवर्धन को हराकर बलपूर्वक उससे अधीनता स्वीकार करवाई तथा महात्मा बुद्ध का पवित्र दांत ले जाकर कन्नौज के विहार में स्थापित करवाया।

7. नेपाल की विजय :

➤ बाणभट्ट के अनुसार हर्ष द्वारा बर्फीले प्रदेश में आक्रमण कर विजय प्राप्त की गई थी । 
➤कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि यह नेपाल ही होगा । 
➤इसका कारण यह है शासक अंशुवर्मन ने अपने राज्य में ' हर्षसंवत ' का प्रचलन यह प्रमाणित करता है कि अंशुवर्मन ने भी हर्षवर्धन की था । 

8. गंजम विजय :

➤हर्ष की अंतिम विजय गंजम ( उड़ीसा ) की थी । 
➤यह प्रदेश पूर्वी तट ( उड़ीसा ) पर स्थित है । 
➤इस क्षेत्र पर हर्ष के आरम्भिक आक्रमण सफल नहीं रहे । 
➤अंत में 643 ई . मैं वह इस पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा क्योंकि इस समय पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु हो चुकी थी जो उसका समकालीन शासक था । 
➤उड़ीसा के 80 नगरों को उसने स्थानीय बौद्ध मंदिर को दान में दे दिया था ।

शासन प्रबंध / प्रशासन व्यवस्था 🔥

1 राजा : 

➤हर्षवर्धन , राज्य का सर्वोच्च अधिकारी था । 
➤उसने ' महाराजाधिराज ' , ' परमेश्वर ' , ‘ परमभट्टारक ’ , ‘ सार्वभौम ' , ‘ सकलोत्तरपथनाथ ' , ' शिलादित्य ' आदि उपाधियां धारण की थी । 
➤राजा की शक्तियां असीमित होती थी । 
➤वह सेना का सर्वोच्च सेनापति था और सर्वोच्च न्यायाधीश भी वही होता था । 
➤वह किसी को किसी भी पद पर नियुक्त कर सकता था , किसी की पदोन्नति कर सकता था तथा किसी को भी पदमुक्त कर सकता था । 
➤राजा का निर्णय अंतिम होता था ।

2 मन्त्रीपरिषद् : 

➤हर्षवर्धन ने कुशल - शासन - प्रबंधन के लिए एक सुसंगठित मन्त्रीपरिषद् का निर्माण किया था । 
➤उस समय योग्य और उत्कृष्ट लोगों को ही मन्त्रीपद पर नियुक्त 13 किया जाता था ।
➤ इन मन्त्रियों में सैनिक गुण होना भी आवश्यक था क्योंकि हर्ष के समय किसी भी मन्त्री को सैनिक - अभियान के समय सेना का नेतृत्व करने के लिए कहा जा सकता था ।

प्रमुख मन्त्री 

प्रधानमन्त्री 👉 राजा का प्रमुख सलाहकार 
महासंधिविग्रहाधिकृत 👉 युद्ध व शांति मन्त्री 
महाबलाधिकृत 👉 सेनाध्यक्ष 
महाप्रतिहार 👉 महल का सुरक्षा मन्त्री 
अष्टपटालिक 👉 लेखा अधिकारी

3. प्रान्तीय शासन :

➤ हर्ष ने अपने विशाल साम्राज्य को उचित ढंग से चलाने के लिए इसे अनेक शक्तियों ( प्रांत ) में बांट रखा था ।
➤ ये शक्तियां सामंतों और महासामंतों में विभाजित थीं । 
➤ये वे लोग थे जिन्होंने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली थी । 
➤अप्रत्यक्ष रूप में ये अपने - अपने प्रांत के मुखिया भी थे । 
➤इन्होंने भूपाल , कुमार , लोकपाल , नृपति व महाराजा जैसी उपाधियां धारण की थी ।
➤ इनमें प्रमुख वल्लभी का ध्रुवसेन द्वितीय , कामरूप का भास्करवर्मन , मगध का पूर्ववर्मन व जालंधर के उदित आदि थे । 
➤इसके प्रत्यक्ष नियंत्रण के क्षेत्र ' भुक्ति ' कहलाते थे । 
➤उसके मुखिया को उपारिक या कुमारमात्य कहा जाता था । 

4. स्थानीय शासन : 

➤भुक्ति ( प्रांतों ) को विषयों में बांटा गया था जिनका नेतृत्व विषयपति या आयुक्त करता था ।
➤ उसकी नियुक्ति स्वयं शासक करता था । 
➤विषय आगे पथक में विभाजित थे जिनकी स्थिति आज के तहसील स्तर के अधिकारी की मानी जाती थी ।
➤ प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी जिसका प्रधान महतर कहलाता था । 
➤कई स्थानों पर ग्रामिक भी कहा जाता था । 
➤उसकी सलाह के लिए पंचायत होती थी ।
प्रांत
⬇️
विषय
⬇️
पथक (तहसील)
⬇️
ग्राम ➡️ छोटी इकाई ➡️सलाहकार ➡️पंचायत

5. सैनिक - प्रबंध :

a.पैदल सेना 
b. अश्व सेना 1 लाख घुड़सवार 
c. हाथी सेना 60 हजार हाथी 
d. रथ सेना
➤सैनिकों की संख्या ➡️ 6 लाख 
➤ सेना का मुखिया ➡️ महाबलाधिकृत 
➤सेना का नेतृत्व करने वाला ➡️ कटुक

6 राजस्व व्यवस्था :

a. आय : 

➤आय का मुख्य साधन भू - राजस्व था ।
➤ यह कुल उपज का 1/6 भाग लिया जाता था । 
➤इसे ' भाग ' या ' उद्रंग ' कहा जाता था । 
➤प्रजा स्वेच्छा से राजा को जो उपहार देती थी वह ' बलि ' कहलाता था । 
➤इसके अतिरिक्त चुंगी कर , बिक्री कर , वन कर आदि थे ।

b. " व्यय : 

➤हर्षवर्धन निखिल पांच तरह से अपनी आय वितरित करते थे जो इस प्रकार है : 
(1. दान देन हविन एक दानवीर सम्राट था । उसने नालंदा विश्वविद्यालय को 200 गांव दान कर दिए धन के अतिरिक्त अपने वस्त्र आदि भी दान कर दिए थे । थे । 
(2 . प्रजा हितकारी कार्य- हर्षवर्धन अधिकतर आय प्रजा के कल्याणकारी कार्यों पर खर्च करता था । जैसे- चिकित्सालय बनवाना , विश्रामगृह बनवाना , सड़कें बनवाना , पुल निर्माण , शिक्षा का प्रबंध , पानी का प्रबंध आदि में वह खर्च करता था । 
(3. वेतन- हर्षवर्धन अपनी आय का एक भाग कर्मचारियों को वेतन देने में खर्च करता था । हर्षवर्धन के शासन में एक सेनापति से लेकर साधारण सिपाही को अपने गुजारे के लिए पर्याप्त वेतन दिया जाता था । - 
(4. सेना पर खर्च - हर्षवर्धन अपनी आय का एक बड़ा भाग सेना पर खर्च करता था । जिससे सेना के लिए अस्त्र - शस्त्र , कवच , कुंडल , घोड़े तथा हाथियों का प्रबंध किया जाता था । 
(5 . राज परिवार पर खर्च - आय का एक भाग राज परिवार पर खर्च किया जाता था । राज - परिवार की जरूरत की वस्तुएं तथा महल की मरम्मत आदि पर खर्च शामिल था ।
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