राष्ट्रकूट साम्राज्य - राजनीति - शासन व्यवस्था - धार्मिक नीति - वित्तीय व्यवथा - सैनिक प्रशासन Raahtrakut Samrajy - Rajniti - Shasan vyavastha - dharmik niti - vittiy vyavastha - Sainik Prashasan

राष्ट्रकूट साम्राज्य - राजनीति - शासन व्यवस्था - धार्मिक नीति - वित्तीय व्यवथा - सैनिक प्रशासन Raahtrakut Samrajy - Rajniti - Shasan vyavastha - dharmik niti - vittiy vyavastha - Sainik Prashasan Notes in Hindi 



राष्ट्रकूट

राष्ट्रकूट साम्राज्य :🔥

➤ प्रारंभिक मध्ययुगीन काल में भारत के विभिन्न भागों में राष्ट्रकूटों की अनेक शाखाएँ थीं । 

➤राष्ट्रकूटों के सबसे पहले ज्ञात शासक - परिवार की स्थापना मन्नक द्वारा मालखेड़ में की गई थी । 

➤इसके पास पालिध्वज और गरुड़ - लांछन था । 

➤एक दूसरा राष्ट्रकूट परिवार मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में शासन कर रहा था । 

➤गरुड़ मुहर वाले 757 सी . ई . के एंट्रोली- छारोली शिलालेख में चार पीढ़ियों , कर्क प्रथम , उनके बेटे ध्रुव , उनके बेटे गोविंद और उनके बेटे कर्क द्वितीय का उल्लेख है । 

➤ये गुजरात के लता देश पर राज्य करने वाली मालखेड़ शाखा की एक सहायक शाखा थी ।

➤ दन्तिदुर्ग राष्ट्रकूट साम्राज्य के संस्थापक थे । ऐसा लगता है कि वह कर्क II का समकालीन था । 

➤मालखेड शाखा साथ इन राजाओं का सटीक संबंध निश्चितता के साथ तय नहीं किया जा सकता , हालांकि यह संभव है कि 757 सी . ई . के घोषणापत्र का कर्क -1 दंतिदुर्ग के दादा का एक समान था राज्य की स्थापना दंतिदुर्ग ने की थी । 

➤उसने अपनी राजधानी मान्यखेट अथवा मालखेड़ को बनाया जो आधुनिक शोलापुर के पास है । 

➤राष्ट्रकूटों की मान्यखेट शाखा जल्द ही दूसरी शाखाओं को अपने साथ मिलाकर एक प्रमुख व शाही शाखा बन गयी ।

राष्ट्रकूट राजाओं की एक वंशावली : 

दंति - वर्मन

 ↓ 

इंद्र प्रथम

 ↓

 गोविन्दराज 

↓ 

कक्क प्रथम 

 इंद्र द्वितीय

 ↓ 

दन्तिदुर्ग ( पृथ्वीवल्लभ , महाराजाधिराज , परमेश्वर , परमभट्टारक ) 

कृष्णराज प्रथम ( शुभातुंग अकालवर्ष , राजाधिराज , परमेश्वर ) 

↓ 

गोविंद द्वितीय ( प्रभुत्व और विक्रमावलोक )

 ↓ 

ध्रुव ( निरुपम , काली - वल्लभ धारावर्ष , श्रीवल्लभ ) गोविंद तृतीय ( जगत्तुंग , कीर्ति नारायण , जनवल्लभ , त्रिभुवनधवल , प्रभुत्ववर्ष , श्रीवल्लभ ) 

 अमोघवर्ष प्रथम ( सर्व ) ( नृपतुंग , अतिशयधवल , महाराज- शंड , वीरनारायण ) 

↓ 

कृष्ण द्वितीय ( अकालवर्ष और शुभातुंग )

 ↓

 इंद्र तृतीय ( नित्यवर्ष , रट्टकदर्प , कीर्ति नारायण , राजमार्तंडे )

 ↓ 

अमोघवर्ष द्वितीय 

 गोविंद चतुर्थ ( सुवर्णवर्ष , प्रभुत्ववर्ष , चाणक्यचतुर्मुख , नृपतित्रिनेत्र , विक्रान्तनारायण )

↓ 

अमोघवर्ष तृतीय 

↓ 

कृष्ण तृतीय ( अकालवर्ष)

 ↓ 

खोट्टिग

 ↓ 

कर्क द्वितीय

राजनीति :🔥

➤राष्ट्रकूट राजाओं ने उपाधि ग्रहण की प्रथा उत्तर भारतीय राजाओं से ली गयी थी । 

विभिन्न राजाओं द्वारा ली गई उपाधि - 

      • पृथ्वीवल्लभ , 
      • खडगावलोक , 
      • महाराजाधिराज , 
      • परमेश्वर , 
      • परमभट्टारक , 
      • शुभातुंग , 
      • जगत्तुंग , 
      • अकालवर्ष , 
      • राजाधिराजपरमेश्वर , 
      • नित्यवर्ष , 
      • सुवर्णवर्ष , 
      • विक्रमावलोक , 
      • निरुपम श्रीवल्लभ जनवल्लभ , 
      • राजामार्तंड

➤ये ब्राह्मणवादी उपाधियाँ और वैदिक यज्ञों का संपन्न करना उत्तर भारतीय प्रथाओं पर आधारित था और अपने शासन को वैध बनाने का एक साधन बन गया था । 

➤यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि राष्ट्रकूट राजाओं की शक्ति के अनुरूप उपाधियाँ ग्रहण की जाती थी और पुरानी उपाधियाँ भी प्रयोग में आती थी । 

➤राजनीतिक रूप से , उच्च उपाधियां जैसे कि महाराजाधिराजा , परमेश्वर , परमभाश्कर आदि को ग्रहण करने में लगे थे । 

➤राज्य में उत्कृष्ट सेवा देने के लिए सांमतों को किराया मुक्त भूमि और गांव दिए जाते थे । 

➤सामंत उस राज्य के एकमात्र मालिक होते थे । 

➤सामंती आधिपत्य और पराजित शासकों की अधीनता की घोषणा करने का एक दिलचस्प तरीका यह था कि राजधानी शहर के मंदिरों में द्वारपालका के रूप में उनकी छवियाँ स्थापित की जाती थीं । 

➤उदाहरण स्वरूप गोविंद तृतीय ने लंका के सरदार की दो मूर्तियों को मान्यखेट में स्थित शिव मंदिर के द्वार पर विजयस्तंभ के रूप में स्थापित करवाया । 

➤राष्ट्रकूट राजाओं ने भी ब्राह्मणों को गाँव दान दिया था , जो अग्रहार गाँवों के रूप में जाने जाते थे । 

➤गोविंद चतुर्थ ने अपने राज्याभिषेक के समय 400 अग्रहार गाँव बनाए थे । 

➤कृष्ण ने अपनी उच्च शाही स्थिति को बनाए रखने के लिये कलाकृतियों के जरिये महान कार्यों में कला का जिसका उत्कृष्ट उदाहरण एलोरा में कैलाश का प्रसिद्ध मंदिर है , अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाई । 

➤कैलाशनाथ मंदिर एक विशाल चट्टान को काटकर बनाए गए सबसे बड़े मंदिरों में से एक है । 

➤यह सार्वभौमिक रूप से पल्लवों से जुड़ी आरंभिक वास्तुकला और मूर्तिकला की शैली उत्कृष्ट उदाहरण है ।

राष्ट्रकूट शासकों की शासन व्यवस्था : 🔥

 ➤राष्ट्रकूट शासकों की शासन व्यवस्था बहुत उच्च कोटि की थी । 

➤उत्तराधिकार से संबंधित झगड़ों को दूर करने के लिए शासक प्राय : अपने बड़े पुत्र को युवराज नियुक्त करते थे ।

➤ प्रशासन व्यवस्था की कार्य कुशलता के लिए साम्राज्य को राष्ट्रों ( प्रांतों ) विषयों और भुक्तियों में विभाजित किया जाता था । 

➤इनमें बहुत ही योग्य तथा ईमानदार कर्मचारियों को नियुक्त किया जाता था । 

➤नगर और उसके आसपास के क्षेत्रों में कानून कोतवाल का था । 

➤व्यवस्था बनाए रखने का उत्तरदायित्व कोष्टपाल अथवा के शासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी । महतर कहा जाता था । 

➤ गांव का मुखिया जिसे ग्राम ग्रामकूट ( राजस्व केंद्रीय सरकार ) गांवों की शासन व्यवस्था में बहुत कम हस्तक्षेप करती थी । 

➤लोगों पर कर का भार बहुत कम था । 

➤राष्ट्रकूट शासकों ने साम्राज्य की सुरक्षा और विस्तार के लिए एक शक्तिशाली सेना की व्यवस्था की लगभग पांच लाख थी । 

➤उनके सैनिकों की कुल संख्या 5 लाख थी जो योग्यता के आधार पर की जाती थी । इस सेना के सहयोग द्वारा राष्ट्रकूट शासक महान विजय प्राप्त कर पाए ।

1. राजा : 

➤राजा की स्थिति सबसे महत्वपूर्ण थी ।

➤ राजपद वंशानुगत था । 

➤कभी - कभी उत्तराधिकार को नजर अंदाज करके योग्य व्यक्ति को भी शासक बनाया जाता था । 

➤वे बड़ी - बड़ी उपाधियां धारण करते थे । 

➤जैसे ' परमभट्टारक ' , ' महाराजाधिराज ' , ' सुवर्गवर्ष ' आदि । 

➤राष्ट्रकूट शासक राजधानी में ऐश्वर्य तथा वैभव के साथ रहते थे । 

➤वे बहुमूल्य वस्त्र एवं आभूषण धारण करते थे । 

➤उनका दरबार बहुत वैभवशाली होता था । 

2. राज्यसभा :

➤राजसभा में सामन्त , राजदूत , मंत्री , कवि , ज्योतिषि नियमित रूप से उपस्थित रहते थे । 

➤महिलाएं भी राजदरबार में उपस्थित रहती थीं ।

3. युवराज : 

➤राष्ट्रकूट शासक अपने जीवन काल में ही युवराज की नियुक्ति कर देते थे ।

➤ युवराज अपने पिता की शासन कार्यों में सहायता करता था । 

➤युवराज युद्धों में भी अपने पिता के साथ जाता था । 

4. मन्त्रिपरिषद् : 

➤शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए राष्ट्रकूट शासकों ने मन्त्रिपरिषद का गठन किया था ।

➤ अधिकांश मन्त्री सैनिक पदाधिकारी होते थे । 

➤मन्त्रियों का पद प्राय : पैतृक होता था । 

5. राज्य व्यवस्था : 

➤राष्ट्रकूटों ने अपने नियन्त्रण वाले क्षेत्रों को अनेक राष्ट्रों ( प्रान्तों ) में बांटा हुआ था । 

➤राष्ट्र प्रधान अधिकारी ' राष्ट्रपति ' कहलाता था । 

➤उसका मुख्य कार्य राष्ट्र में शान्ति व्यवस्था बनाये रखना एवं भू - राजस्व इकट्ठा करना था । 

6. विषय ( जिला ) : 

➤राष्ट्रकूटों ने अपने राज्य को ' विषय ' में बांटा हुआ था । 

➤विषय का प्रमुख अधिकारी ' विषयपति ' होता था । 

➤एक विषय में 1000 से लेकर 4000 तक गांव होते थे । 

➤इनका कार्य भी विषय में राष्ट्रपति के आदेशों का पालन करना होता था ।

7. भुक्ति ( तहसील ) का प्रबंध :

➤ विषयों को आगे भुक्तियों में विभाजित किया गया था । 

➤भुक्ति का प्रधान भोगपति होता था । 

➤भुक्ति में 50 से 70 गांव होते थे । 

8. नगर का प्रबंध : 

➤नगरों का प्रशासन स्वायत्त प्रणाली के अन्तर्गत संचालित होता था । 

➤नगरपति के नेतृत्व में शासन चलाया जाता था । : 

धार्मिक नीति : 🔥

➤राष्ट्रकूट शासक हिंदू धर्म में विश्वास रखते थे ।

➤ उन्होंने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया । 

➤कृष्ण द्वितीय ने जैन मंदिरों का उदार और प्रगतिशील विचारों के संबंध में प्रमाण मिलता है ।

➤ देवी देवताओं से संबंधित करवाया था । 

राष्ट्रकूट शासकों के वित्तीय व्यवस्था : 🔥

➤राष्ट्रकूटों की आय का साधन भूमिकर था । जिसे ' उद्रंग ' या भोग कर कहा जाता था ।

➤यह कर अनाज के रूप में लिया जाता था । यह उपज का प्राय : चौथा भाग होता था । 

 सैनिक प्रशासन : 🔥

➤युद्ध के करते थे ।

➤ राष्ट्रकूटों के पास एक विशाल स्थाई सेना थी । 

➤उनकी सेना में पैदल , हाथी व घुड़सवार समय सामन्त भी अपनी सेनाएं भेजकर समय - समय पर राष्ट्रकूट शासकों की सहायता करते थे।


JOIN US NOW🔥


Post a Comment

Previous Post Next Post