महमूद गजनी का आक्रमण - मथुरा तथा सोमनाथ मंदिर की लूटपाट - आक्रमण के कारण तथा परिणाम नोट्स इन हिंदी

महमूद गजनी का आक्रमण - मथुरा तथा सोमनाथ मंदिर की लूटपाट - आक्रमण के कारण तथा परिणाम Notes in Hindi


महमूद गजनी का आक्रमण

महमूद गजनी का आक्रमण : 🔥

➤मध्य एशिया के तुर्की और गैर - तुर्की गुट लगातार अपने आसपास के क्षेत्रों में अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने के लिए एक - दूसरे के साथ संघर्ष करते थे । 

➤इस तरह के प्रयासों में उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान में कई क्षेत्रों पर भी विजय प्राप्त की ।

➤ इसी तरह से खुरासान में समानिद शासकों के एक सेनाध्यक्ष अल्प - तेगिन ने 963 सी . ई . में दक्षिण जबुलिस्तान में ग़ज़नी की ओर कूच किया और खुद को एक स्वतंत्र शासक के रूप में घोषित किया ।

➤अफ़ग़ानिस्तान के हिंदूशाही राजाओं ने ग़ज़नी के पूर्व समानिद नियंत्रक , मुल्तान के पास भट्टी सम्राटों के साथ - साथ मुल्तान के मुस्लिम अमीर ने अपनी सीमाओं और क्षेत्रों की रक्षा के लिए गठबंधन किया ।

➤ उन्होंने जयपाल नामक हिंदूशाही शासक की मदद की थी । 

➤तब से वे लगातार ग़ज़नी के आक्रमणकारी अभियानों से परेशान थे । 

➤सबुक्तगीन / सबुक्तगिन / सेबुक्तिगिन और अल्प तिगिन का उत्तराधिकारी 977 सी . ई . के बाद से हिंदूशाही क्षेत्रों में एक ही तरह का इरादा [ रखता था । 

➤नतीजतन , 10 वीं शताब्दी के अंत तक जबुलिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान को पहले ही जीत लिया गया था । 

➤इन क्षेत्रों की विजय ने भारत में तुर्कों के अतिक्रमण की नींव रखी।

➤इसके अलावा , महमूद ग़ज़नी ने जिसे सुल्तान महमूद बिन (सबुक्तिगिन के नाम से भी जाना जाता है ) – सबुक्तिगिन के उत्तराधिकारी के रूप में 999 सी.ई. से आक्रमण जारी रखे । 

➤दिलचस्प बात यह है उसके सिक्कों पर " महमूद ग़ज़नी " शीर्षक न होकर आमिर महमूद का नाम मिलता है और न ही इन सिक्कों को खलीफा द्वारा जारी किया गया था । 

➤उसने फारस और ट्रांसओक्सियाना में अपनी विजय के आधार पर आमिर महमूद की उपाधि को प्राप्त किया । 

➤उसने 1001 सी.ई. में जयपाल के खिलाफ एक उग्र लड़ाई लड़ी । 

➤यह घुड़सवार सेना और कुशल सैन्य रणनीति की लड़ाई थी । 

➤जयपाल को महमूद की सेनाओं ने बुरी तरह भगा दिया और उसकी राजधानी वैहिंद / पेशावर तबाह हो । 

➤फिर भी , शायद महमूद ने जयपाल के साथ शांति बनाई और सिंधु के पश्चिम क्षेत्र में विजय प्राप्त की । 

➤ इस हार ने जयपाल को गंभीर झटका दिया और कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई । 

➤सूत्रों के अनुसार उन्होंने अपनी हार के अपमान के परिणामस्वरूप अंतिम संस्कार की चिता में आत्मदाह कर लिया क्योंकि उन्होंने सोचा कि वे शाही राजवंश के लिए अपमान और आपदा लाए थे । 

➤उनके बाद उनका बेटा आनंदपाल / अनंतपाल सिंहासन पर बैठा । 

➤वह अपने क्षेत्र में तुर्की छापों को चुनौती देता रहा ।

➤ पंजाब में प्रवेश करने से पहले , महमूद को अभी भी सिंधु के पास आनंदपाल की सेना के साथ संघर्ष करना पड़ा था । 

➤एक कठिन चुनौती के बाद 1006 सी . ई . में ऊपरी सिंधु पर विजय प्राप्त की । 

➤पंजाब प्रांत आखिरकार तीन साल बाद सिंधु के पूर्वी क्षेत्र के छछ / चच मैदानों में जीता गया । 

➤शाहियों ने वैहिंद में अपनी पिछली हार के बाद वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में साल्ट रेंज में नंदाना / नंदना में अपनी राजधानी स्थानांतरित कर ली थी । 

➤महमूद की सेना ने आनंदपाल की सेना और संसाधनों को भारी क्षति पहुँचाई । आनंदपाल लड़ाई हार गया । उसे बहुत वित्तीय और क्षेत्रीय नुकसान उठाना पड़ा । 

➤महमूद के प्रति आनंदपाल का यह अंतिम प्रतिरोध था । 

➤1010 ई. में ग़ज़नवी के साथ उन्हें एक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया और कुछ ही साल बाद उनकी प्राकृतिक कारणों से मृत्यु हो गई । 

➤जनवी के साथ उन्हें एक भीमगढ़ किले को रियासी के पास स्थित होने के कारण रियासी किला भी कहा जाता है ।

➤ रियासी वर्तमान जम्मू के उत्तर - पश्चिम में चिनाब नदी के किनारे एक शहर है ।

➤ उस भीमगढ़ किले पर भी कब्ज़ा कर लिया गया था ।

➤ लेकिन आनंदपाल को महमूद के सामंती के रूप में पंजाब पर शासन करने की अनुमति दी गई थी । 

➤हालाँकि , 1015.ई. में महमूद ने लाहौर को जीतकर झेलम नदी तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया । 

➤मुल्तान , जिस पर एक मुस्लिम सुल्तान का शासन था , आनंदपाल के साथ गठबंधन के बावजूद हार गया । 

➤हालाँकि , कश्मीर पर विजय प्राप्त करने की महमूद की इच्छा प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण 1015. ई . में अपनी सेनाओं की हार के कारण अधूरी रह गई । भारत में यह उसकी पहली हार थी । 

➤इसी तरह महमूद ने पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान , पंजाब और मुल्तान को जीतकर भारत की ओर अपना रास्ता बनाया । 

➤अगले पड़ाव में गंगा के मैदानों में आक्रमण के माध्यम से धन अर्जित करना उसका उद्देश्य था ।

➤कश्मीर पर रानी दिद्दा का शासन था । उन्होंने 26 साल तक शासन किया । 

➤हिंदू शाही वंश के साथ पुरानी प्रतिद्वंद्विता के कारण उन्होंने ग़ज़नवी के आक्रमण के खिलाफ उनकी मदद नहीं की । 

इसलिए , हम देख सकते हैं कि उत्तर भारत विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ पूरी तरह से असंगठित था । इस कारण से , महमूद के लिए इस क्षेत्र में आक्रमण करना आसान था । 

➤पंजाब के बाद उसने धन प्राप्ति के लिए गंगा के मैदानों में तीन अभियान किए । 1015 .ई. के अंत तक उसने कुछ सामंती शासकों की मदद से हिमालय की तलहटी के साथ - साथ बारां या बुलंदशहर के एक स्थानीय राजपूत शासक को हराया । 

➤इसके बाद उसने मथुरा और वृंदावन दोनों के मंदिरों को लूटा ।

➤इस शानदार जीत के बाद उसने गुर्जर - प्रतिहारों की प्रतिष्ठित राजधानी कन्नौज पर हमला किया । इसे हिंदुस्तान का प्रमुख शहर माना जाता था । 

➤गंगा घाटी में यह उसके लिए सबसे आश्चर्यजनक पड़ाव था । 

➤राजा को मात्र इतना ही पता चला कि सुल्तान ने आक्रमण किया और वह भाग गया । 

➤इस महान गंगा शहर के सात किलों को एक ही दिन में गिरा दिया गया । 

➤कन्नौज के सभी भव्य मंदिरों में से एक को भी नहीं छोड़ा गया । 

➤न ही पड़ोसी राजा अधिक भाग्यशाली थे जैसे असी के शासक चंदल भोर , शारवा के हिंदू राजा चंद राय जिनका राज्य शिवालिक पहाड़ियों में फैला था । 

➤उन्होंने अपने खज़ाने को इकट्ठा किया और पहाड़ियों की ओर जाने लगे , लेकिन उनके दुश्मन महमूद ने उन्हें जंगल के रास्ते पर ही पकड़ लिया । 

➤कैदियों व लूट का सामान इतनी तादाद में वह घर ले आया कि उनसे फ़ारस के दास - बाजार भर गये । 

➤अब वहाँ कुछ चन्द पैसों में एक दास को खरीदा जा सकता था । 

➤भारत में धन की लूट से उसे मध्य एशिया में अपने दुश्मनों के खिलाफ मदद मिली । 

➤उसने ईरान में भी अपना साम्राज्य बढ़ाया और बग़दाद के खलीफा ने उसे मान्यता दी । 

➤महमूद ग़ज़नी ने 1019 और 1021.ई. में गंगा घाटी में दो और छापे मारे । लेकिन उसे इनसे उतना लाभ नहीं मिला । 

➤सबसे पहले गंगा की घाटी में एक राजपूत गठबंधन को तोड़ना था । 

➤ग्वालियर के राजपूत राजा ने महमूद के खिलाफ हिंदूशाही सम्राट की मदद की थी । 

➤महमूद ने हिंदूशाही और चंदेल शासकों दोनों को हराया । 

➤इसके अलावा , वह चंदेल सम्राट विद्याधर को हराने के लिए आगे बढ़ा ।

➤ लेकिन दोनों के बीच कुछ भी निर्णायक नहीं हुआ ।

➤ महमूद ने विद्याधर से एक मामूली रकम स्वीकार कर ली । 

➤इससे हम यह समझ सकते हैं कि उत्तर भारत में महमूद के इस तरह के अभियानों का उद्देश्य पंजाब के आगे साम्राज्य का विस्तार करना नहीं था । 

➤वह केवल एक तरफ राज्यों की संपत्ति को लूटता था और दूसरी ओर ऊपरी गंगा दोआब में बिना किसी शक्तिशाली स्थानीय शक्ति के एक तटस्थ क्षेत्र बनाना चाहता था । 

➤वास्तव में , महमूद ग़ज़नी के इन हमलों ने शक्तिशाली शाही और चंदेल क्षेत्रों को भी पूरी तरह से तबाह कर दिया । 

➤महमूद ग़ज़नी का आखिरी बड़ा आक्रमण गुजरात के पश्चिमी तट पर 1025 . ई . में सौराष्ट्र के सोमनाथ मंदिर पर हुआ था । 

➤इसके लिए राजस्थान के थार रेगिस्तान तक पहुँच गया था जिस पर अभी तक किसी आक्रमणकारी ने हमला नहीं किया था ।

➤महमूद के सफल सैन्य अभियानों की ताकत और पैमाने से उसके और उसके सैनिकों के सामने आने वाली कठिनाइयाँ कम नहीं हुईं , बल्कि लौटते समय और अधिक हो गईं । 

➤पानी की कमी के कारण उसकी सेना अधिक संख्या में मारी गई और रेगिस्तान में भटक गई । 

➤जो लोग बच गए वे साल्ट रेंज के उग्र जाटों के हाथों में पड़ गए । 

➤उन्होंने थके हुए सैनिकों को परेशान किया क्योंकि वे लूट की वस्तुओं से लदे थे ।

➤ साल खत्म होने से पहले महमूद ने अपने सैनिकों को आखिरी बार भारत में धर्म - विरोधी और प्रदर्शनकारी ताकतों को दंडित करने के लिए प्रेरित किया । 

➤सूत्रों के अनुसार , उसने मुल्तान में एक बेड़ा बनाया और इसे के कीलों और मेढ़ों से लैस किया । 

➤उसने अपनी 1400 नावों में से प्रत्येक पर नेफ्था बम के साथ 20 तीरंदाजों को रखा और 4000 जाटों की विरोधी सेना का सामना किया ।

➤ नेफ्था को बरसा कर उसने उनके जहाजों को जला दिया ।

➤हालांकि , इन विवरणों को गढ़ा हुआ अथवा अतिरंजित कहा जा सकता है ।

➤ क्योंकि ऊपरी सिंधु पर कई नावें कभी नहीं हो सकतीं और दूसरी बात , पहाड़ी जन जातियाँ आमतौर पर नौसैनिक युद्ध में माहिर नहीं थीं ।

➤ उसके द्वारा जाटों से भूमि या पानी के माध्यम से बदला लेना आश्वासन के साथ नहीं कहा जा सकता । 

➤वह ग़ज़नी में लौट आया और चार साल बाद 1030 सी.ई. में उसकी मृत्यु हो गई । 

➤साल बाद 1030 में उसकी महमूद ग़ज़नी एक साहसी योद्धा था । 

➤उसके पास महान सैन्य क्षमताएं और राजनीतिक उपलब्धियां थीं । 

➤उसने ग़ज़ना / ग़ज़नी / ग़ज़नीह के एक छोटे से राज्य को एक विशाल और समृद्ध साम्राज्य में बदल दिया था , जिसमें वर्तमान अफ़ग़ानिस्तान , पूर्वी ईरान और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर - पश्चिमी भागों के अधिकांश हिस्से शामिल थे । 

➤अपने जंगी कौशल के अलावा वह ग़ज़नवी साम्राज्य में फ़ारसी साहित्य का संरक्षक भी था । 

➤समानिद बुखारा और खुरासन के सांस्कृतिक केंद्रों से प्रभावित हो कर उसने ग़ज़नी को फारसी विद्वता का केंद्र बनाया । 

➤वहाँ उसने कई कवियों और लेखकों को आमंत्रित कियाः · फिरदौसी अल्बरूनी युज़ारी उनसुरी आदि । 

➤उसके द्वारा ग़ज़नी राज्य में धूमधाम , प्रदर्शन और भव्यता ज़्यादातर भारत से लूट के धन के कारण संभव बन सकी ।

मथुरा की लूटपाट :🔥

➤महमूद द्वारा मथुरा की लूटपाट पवित्र शहर मथुरा , हिंदू धर्म का एक प्राचीन स्थल , उन दिनों मंदिरों से भरा था ।

➤ इसे देखकर महमूद ने सोचा था कि " यह आदमी द्वारा नहीं बल्कि जिन्न द्वारा बनाया गया है " ; जहां गहनों के साथ चमकती हुई स्वर्ण और चांदी की मूर्तियाँ इतने विशाल रूप में खड़ी थीं कि उन्हें तौलने के लिए तोड़ना पड़ा । 

➤उसे शहर की दीवार , जो एक मज़बूत पत्थर से निर्मित उत्कृष्ट संरचना थी और बाढ़ से बचाने के लिए यमुना नदी पर दो द्वार थे जो ऊँचे और बड़े चबूतरे पर खड़े थे , उनका सामना करना पड़ा । 

➤शहर के दो किनारों पर मंदिरों के साथ हजारों घर थे , जिनके साथ मंदिर जुड़े थे ।

➤ सभी की पक्की इमारतों के साथ लोहे की मज़बूत सलाखें थीं । 

➤इसके दूसरी ओर अन्य इमारतें लकड़ी के खंभों पर टिकी थीं । 

➤शहर के बीच में एक मंदिर था , जिसकी बारीकी और विशालता की गणना न तो कोई चित्र और न ही कोई विवरण कर सकता था । 

➤उसने इस मंदिर का आश्चर्य के साथ वर्णन किया है : " अगर कोई भी इसके बराबर एक इमारत का निर्माण करना चाहता है , तो वह 1 करोड़ दीनार को खर्च किए बिना ऐसा करने में सक्षम नहीं होगा और काम में 200 साल लगेंगे , भले ही सबसे सक्षम और अनुभवी कामगार इसे बनाने में लगे हों ।

➤ सभी मंदिरों को मिट्टी के तेल / किरोसीन तेल और आग से जलाकर नष्ट कर दिया गया और ज़मीन तक समतल कर दिया गया ।

➤ मथुरा शहर में 20 दिनों तक तोड़फोड़ और लूटपाट की गई । 

➤कहा जाता है कि शुद्ध सोने की पांच महान मूर्तियों , जिनमें माणिक की आंखें और अन्य कीमती पत्थरों के अलंकरण थे , साथ में बड़ी संख्या में चांदी की छोटी मूर्तियों को लूटा गया । 

➤उनका कुल वज़न सौ से अधिक ऊंटों के लिए भार के बराबर था ।

➤ लूट का कुल मूल्य तीन लाख रुपये आंका गया था जबकि कैद में रखे गए हिंदुओं की संख्या 5000 से अधिक थी । 

➤कई मंदिर मूल्यवान सामग्रियों की लूट के बाद छोड़ दिए गये क्योंकि वो इतने विशाल थे कि उन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता था । 

➤कुछ इतिहासकारों का मत है कि महमूद ने उन मंदिरों की सुंदरता , भव्यता के कारण उन्हें नष्ट नहीं किया ।

➤ यह उसके ग़ज़नी के राज्यपाल को भेजे गए पत्र में उनके गौरव और विलक्षणता के बयान पर आधारित है ।

सोमनाथ मंदिर की लूटपाट :🔥

➤महमूद द्वारा सोमनाथ की लूटमार 1025-26 ई . की सर्दियों में महमूद ने अपने अंतिम पड़ाव में गुजरात पर आक्रमण किया । 

➤उसने समृद्ध और अलौकिक सोमनाथ मंदिर को लूटा और अपनी विजय यात्रा के लिए खूब धन लूटा ।

➤ ऐसा कहा जाता है कि किसी भी समय एक सौ हजार तीर्थयात्री वहाँ इकट्ठे होते थे ।

➤ एक हजार ब्राह्मण मंदिर की सेवा और इसके खज़ाने की रक्षा करते ।

➤ इसके द्वार पर सैकड़ों नर्तकियाँ और गायक प्रदर्शन करते थे । 

➤मंदिर गर्भगृह में प्रसिद्ध लिंग जगमगाते हुए रत्नों से अलंकृत था ।

➤ यह आभूषणों से सजाए गए विशालकाय पत्थरों से अलंकृत और आभूषणों से झूलती हुई दीपवृक्षों की रोशनी से सजा था । 

➤जब तक यह प्राचीन महान और भव्य पूजनीय प्रतीक अपनी प्राचीन महिमा में अनतिक्रान्त था तब तक महमूद अपनी मूर्ति भंजन परंपरा को छोड़ नहीं सकता था और न ही उसका खज़ाना भारत के बेहतरीन रत्नों से भरा हो सकता था । 

➤इसलिए , उसका अभियान मुल्तान से लेकर अन्हलवाड़ तक और समुद्र तट पर जारी रहा । 

➤वह लगातार लड़ता रहा और कत्लेआम करता रहा , जब तक कि वह अरब सागर की लहरों से धोए गए मंदिर के किले में नहीं पहुँच गया ।

➤ मंदिर की सुरक्षा और सेवा में लगे पुरुषों के बावजूद अपने बल के साथ लगभग 50,000 हिंदुओं को मारते हुए , दीवारों को तोड़ दिया । 

➤महान पत्थर को नीचे गिरा दिया गया और इसके टुकड़ों को विजेता के महल को सुशोभित करने के लिए ले जाया गया । 

➤लूटे हुए मंदिर - द्वार ग़ज़नी में लगाए गए । 

➤दस लाख पाउंड का खज़ाना उन आक्रमणकारी- लुटेरों के लिए इनाम था , जो भारत और उससे आगे के कुख्यात अभियानों में उसके साथ शामिल हुए थे । 

➤सोमनाथ की तबाही ने ग़ज़नी के महमूद को चौंपियन और इस्लामिक आस्था का पथ प्रदर्शक तथा हिंदू विश्वास का विरोधी बना दिया । 

➤लगभग नौ शताब्दियों तक हर मुस्लिम की नज़र में उसके करतब शानदार किंवदंतियों के साथ जुड़े और सुशोभित हुए , जिनमें उनकी और उसकी सेना का गुणगान किया गया ।

आक्रमण के कारण :🔥

(1) इस्लाम धर्म का प्रचार -

(2) सम्पत्ति प्राप्त करना 

(3) साम्राज्य को दृढ़ बनाने के लिए

आक्रमण के प्रभाव :

(1) राजाओं की शक्ति को आघात -

(2) सैनिक दुर्बलता का ज्ञान -

(3) अतुल सम्पत्ति का विदेश जाना—

(4) स्थापत्य कला के नमूनों का अन्त- 

(5) पंजाब का भारत से सम्बन्ध-विच्छेद 

(6) अग्रदूत का कार्य - 

(7) आक्रमण के लिए नये मार्ग का खुलना -

(8) अधिकांश भारत का ज्ञान -

JOIN US NOW🔥


Post a Comment

Previous Post Next Post