कुषाण वंश - उत्पत्ति - प्रशासन तथा उपलब्धियां Kushan Vansh - utpatti - prashasan - uplabdhiya Notes

कुषाण वंश - उत्पत्ति - प्रशासन तथा उपलब्धियां Kushan Vansh - utpatti - prashasan - uplabdhiya Notes

कुषाण वंश

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कुषाण वंश 

कुषाण वंश :🔥

➤कुषाण मूल रूप से पश्चिमी चीन के निवासी थे । उन्हें यू – चिस भी कहा जाता है । 
➤शकों तक पहलवों को पराजित कर कुषाणों ने पाकिस्तान में बड़े साम्राज्य की स्थापना की । 
➤कुषाण वंश का प्रथम महत्त्वपूर्ण शासक कुंजुल कडफीसिस था । 
➤उसके बाद उसका पुत्र वेया कडफीसिस राजा बना । 
➤अगला शासक कनिष्क था ।
➤ वह कुषाण वंश का सबसे महान शासक था । 
➤उसके शासन काल का आरंभ 78 ई . के लगभग माना जाता है ।
➤ उसने एक नए युग की नींव डाली , जिसे शक संवत के रूप में जाना जाता है । 
➤कनिष्क के शासन काल में कुषाण साम्राज्य का क्षेत्रीय विस्तार अधिकतम क्षेत्रों में हुआ । 
➤उसका साम्राज्य मध्य एशिया से लेकर उत्तर प्रदेश के वाराणसी , कौशाम्बी और श्रावस्ती सहित उत्तर भारत तक विस्त त था । 
➤कुषाण के शासन का राजनीतिक महत्त्व इस तथ्य से सिद्ध होता है कि उसने उत्तर भारत तथा मध्य एशिया को एक ही साम्राज्य का अविभाज्य अंग बनाया । 
➤ विभिन्न अन्तर्क्षेत्रीय संस्क तियों का समन्वय हुआ तथा अन्तर्क्षेत्रीय व्यापार में व द्धि हुई । 
➤इतिहास में कनिष्क को बौद्ध धर्म के महान संरक्षक के रूप में जाना जाता है । 
➤उसने कुंडलवन ( वर्तमान में जम्मू - कश्मीर में श्रीनगर के निकट हरवान ) में चतुर्थ बौद्ध समिति का आयोजन कराया , जिसमें बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षुओं ने भाग लिया था । 
➤उसी सम्मेलन में बौद्ध धर्म दो शाखाओं में विभक्त हो गया था हीनयान तथा महायान ।
➤ कनिष्क ने स्थापत्य कला की दो शाखाओं - गांधार तथा मथुरा को भी संरक्षित किया , जिसके बारें में आप बाद में इसी पाठ में पढ़ेंगे ।
➤ उसने पुरुषपुर नगर ( वर्तमान पेशावर ) में बौद्ध अवशेषों को संरक्षित करते हुए विशाल स्तूप का निर्माण कराया था । 
➤15 वीं शताब्दी के प्रारंभ में जब चीनी तीर्थयात्री फाह्यान ने यहां यात्रा की थी तो यह इमारत पूर्ण भव्यता के साथ मौजूद थी । 
➤कुषाण वंश का तीसरी शताब्दी के प्रारंभ में पतन हो गया । 

कुषाण राजतंत्र तथा प्रशासन :🔥

➤कुषाणों की प्रशासनिक तंत्र के संबंध में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है ।
➤पूरा साम्राज्य छोटे - छोटे क्षेत्रों में विभाजित था तथा हर क्षेत्र एक महाक्षत्रप ( सेनापति ) द्वारा संचालित होता था । जिसका सहायक क्षत्रप होता था ।
➤ पूरे साम्राज्य में कितने क्षेत्र थे , यह ज्ञात नहीं है । 
➤ कुषाण घुड़सवार घुड़सवारी करते समय पतलून का प्रयोग करते थे ।
➤ मथुरा में पाई गई शीर्षविहीन मूर्ति से इस बात की जानकारी मिलती है । 
➤कुषाणों की सबसे महत्त्वपूर्ण विशिष्टता देवपुत्र शीर्षक का प्रयोग है , जिसका अर्थ है भगवान की संतान । 
➤यह कुषाण शासकों द्वारा दिव्यता के दावे की ओर संकेत करता है । 

कुषाणों की उपलब्धियाँ : 🔥

➤प्राचीन भारतीय इतिहास में कुषाण वंश जीवन के हर क्षेत्र में अपने विशेष योगदान की वजह से महत्त्वपूर्ण स्थान रखता हैं । 
➤उनके विशाल साम्राज्य की वजह से आंतरिक तथा बाहरी व्यापार में प्रगति हुईं इसके फलस्वरूप नए नगर केंद्रों का उदय हुआ ।
➤ कुषाण काल की सम्पन्नता की झलक उनके द्वारा प्रयुक्त होने वाली सोने तथा तांबे की मुद्राओं से भी मिलती है । 
➤साहित्य तथा चिकित्सा के क्षेत्र में भी भारत ने प्रगति की । 
➤आयुर्वेद का जनक माने जाने वाले चरक ने चिकित्सा आधारित पुस्तक ' चरक संहिता ' की रचना की , वहीं प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान अश्वघोष ने बुद्ध की विस्तृत जीवन चरित्र की रचना की । 
➤दोनों ही विद्वान कनिष्क के समकालीन माने जाते हैं ।
➤ कुषाणों ने मूर्तिकला की गंधार तथा मथुरा कला को संरक्षण प्रदान किया , जो कि बुद्ध तथा बोधिसत्वों की प्रारंभिक छवियों के स जन के लिए विख्यात है ।

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